गुलाम मोहम्मद मीर उर्फ मोमा कन्नाः आतंकवाद के सफाए में अहम किरदार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 21-11-2023
Ghulam Mohammad Mir alias Moma Kanna
Ghulam Mohammad Mir alias Moma Kanna

 

अहमद अली फैयाज

दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्र की सेवा में सुरक्षा बलों की मदद के लिए भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री पाने वाले दोनों कश्मीरी, मध्य कश्मीर के तंगमर्ग-मगाम बेल्ट के गरीब और अशिक्षित निवासी थे. जहां तंगमर्ग के मोहम्मद दीन जागीर को 1965 में पाकिस्तान के ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ को विफल करने के लिए पुरस्कृत किया गया था, वहीं मगाम के गुलाम मोहम्मद मीर उर्फ मोमा कन्ना को 1990 के दशक में पाकिस्तान के उग्रवाद को खत्म करने के लिए 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

फरवरी 2010 में कन्ना को पद्मश्री की घोषणा से घाटी के मुख्यधारा के राजनेताओं की ओर से विलक्षण प्रतिक्रिया हुई. प्रतिस्पर्धी अलगाववाद का युग अपने चरम पर था, मुख्यधारा के नेता सुरक्षा बलों के ‘सहयोगी’ को शीर्ष राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने की आलोचना और विरोध में अलगाववादियों को मात देते नजर आ रहे हैं.

यहां तक कि फारूक अब्दुल्ला, जो उस समय मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री थे, ने कन्ना के लिए एक सिफारिश जारी की थी. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस बात से इनकार किया कि उनकी पार्टी या सरकार से किसी ने भी विद्रोही विरोधी के लिए लिखा है. एक पूर्व नौकरशाह, जो बाद में मुफ्ती मोहम्मद सईद के मंत्रिमंडल और पार्टी में प्रमुख पदों पर रहे, ने ग्रेटर कश्मीर में एक ऑप-एड लेख में कन्ना के साथ-साथ उन लोगों की भी आलोचना की, जिन्होंने उन्हें पद्मश्री के लिए सिफारिश की थी.

राजनीति और नौकरशाही से लेकर मीडिया और शिक्षा जगत तक लगभग सभी ने दावा किया कि कन्ना ने हिरासत और फर्जी मुठभेड़ों में ‘सैकड़ों निर्दोष नागरिकों’ को मार डाला था और उनके खिलाफ ‘हत्या की सैकड़ों एफआईआर’ थीं. मीडिया में लगभग सभी रिपोर्टों में दावा किया गया कि कन्ना एक पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी था, जो बाद में भारत समर्थक ‘पाखण्डी’ बन गया. हालांकि, फारूक अब्दुल्ला ने जवाब दिया कि उन्होंने कन्ना की सिफारिश:राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं के आधार पर’ की थी.

जल्द ही यह पता चला कि, अब्दुल्ला के अलावा, कन्ना की सिफारिश सेना और बीएसएफ के शीर्ष अधिकारियों के साथ-साथ भारत के तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने भी की थी. फिर भी, स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने उस प्रतिविद्रोही को दुष्ट घोषित करने की कोशिश की, जो अचानक तूफान की चपेट में आ गया था.

13 साल से अधिक समय बाद, मंगलवार को, कन्ना ने अपने मगाम निवास पर आवाज-द वॉयस को बताया कि उन्हें ‘भारत राष्ट्र के लिए अद्वितीय सेवा’ के लिए पुरस्कृत किया गया. उन्होंने सुरक्षा बलों की मदद से 1989 से 1999 तक 5,000 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया. कन्ना ने जोर देकर कहा, ‘‘उनमें से हजारों को गिरफ्तार किया गया, सैकड़ों ने आत्मसमर्पण कर दिया और मेरी जानकारी पर विकसित और क्रियान्वित किए गए विभिन्न अभियानों में हजारों लोग मारे गए.’’

यह 73 वर्षीय व्यक्ति, जो पुलिस और सीआरपीएफ सुरक्षा के तहत एक साधारण मिट्टी से बने घर में रहता है और अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए परिसर में एक साधारण आरा मशीन चलाता है, ने दावा किया कि उसने कभी आतंकवादी के रूप में काम नहीं किया है.

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Ghulam Mohammad Mir alias Moma Kanna receive Padma Shree from Pratibha Patil


 

कन्ना ने बताया, ‘‘मैंने 1989 में उग्रवाद के पहले दिन से ही सुरक्षा बलों की मदद करना शुरू कर दिया था, क्योंकि मेरा दृढ़ विश्वास था कि बंदूक संस्कृति, हिंसा और आतंकवाद हमें कहीं नहीं ले जाएंगे. चूंकि मैं कभी भी उग्रवादी नहीं था, इसलिए मेरे विद्रोही बनने का कोई सवाल ही नहीं है. मेरे बारे में वे सभी मीडिया रिपोर्टें बकवास थीं. मैंने कभी किसी नागरिक की हत्या नहीं की - हिरासत में या मुठभेड़ में. मैंने कभी किसी इंसान पर कोई अत्याचार नहीं किया. यही कारण है कि हत्या तो दूर, सामान्य अपराध के लिए भी मेरे खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं है.’’ कन्ना ने जोर देकर कहा. ‘‘आतंकवादियों द्वारा मेरे परिवार के 10 सदस्यों और रिश्तेदारों को मारने के बाद भी मैंने किसी को नहीं मारा.’’

कन्ना ने खुलासा किया कि कांग्रेस पार्टी में होने के नाते, वह 1980 के दशक में मुफ्ती मोहम्मद सईद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में जानते थे. उन्होंने कहा, ‘‘जब 1984 में गुलाम मोहम्मद शाह मुख्यमंत्री थे, तब मुझे वन विभाग में अस्थायी चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दी गई थी. दिसंबर 1989 में, जब मुफ्ती साहब भारत के गृह मंत्री बने और मैंने उनकी बेटी रुबैया के अपहरण के बारे में सुना, तो मैंने अपना योगदान दिया एक ईंट भट्ठा मालिक, जो मेरा दोस्त था, की मदद से बारामूला के उथुरा गांव में उसका पता लगाया. बाद में, जब मुफ्ती के लोगों ने उग्रवादियों के साथ समझौता किया, तो उसे रिहा कर दिया गया.’’

उन्होंने कहा, ‘‘वीपी सिंह की सरकार में जम्मू-कश्मीर के प्रभारी मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में मुझसे मुलाकात की. उन्होंने उग्रवाद को रोकने के लिए मेरी मदद मांगी.’’ सुल्तानपोरा का गुलाम अहमद इटू उर्फ अमा कन्ना पहला आतंकवादी था, जिसने मेरे सामने आत्मसमर्पण किया था. (बाद में, आतंकवादियों ने मगाम के पास अमा कन्ना को पकड़ लिया और कसाई के चाकू से उसका सिर काट दिया. इसे नसरुल्लापोरा में एक पेड़ पर लटका दिया गया).

बाद में नौगाम के कासिम खार और दब वकोरा के तीन आतंकवादियों ने भी कन्ना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. यह कश्मीरी युवाओं का पहला समूह था, जिसने वफादारी बदली और आतंकवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों की मदद की. एक साल के भीतर, यह एक बड़े नेटवर्क में विकसित हो गया.

कन्ना के मुताबिक, मगाम के हागरपोरा में कुछ नागरिकों और आतंकवादियों ने सीआरपीएफ 48वीं बटालियन के कांस्टेबल सम्राट सिंह की हत्या कर दी, उनकी 303 राइफल छीन ली और उन्हें बेरहमी से जलाकर मार डाला. कन्ना ने कहा, “एक सरकारी स्कूल शिक्षक ने उसे आग लगा दी. वह और सम्राट सिंह के अन्य हत्यारे अभी भी जीवित हैं. उनके खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई.”

कन्ना ने एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया कि उनके परिवार के सदस्यों और अन्य नागरिकों को मारने वाले अधिकांश आतंकवादी न केवल जीवित थे, बल्कि उन्हें सरकारी नौकरियां भी दी गई थीं. उन्होंने कहा, “एक कैबिनेट मंत्री ने ऐसे सभी हत्यारों और उनके रिश्तेदारों को सरकार में भर्ती कर लिया. एक मारे गए आतंकवादी का भाई, जिसने मेरे बेटे पर गोली चलाई थी, अब सिविल सचिवालय में तैनात है. दूसरी ओर उनके सभी पीड़ित, मेरे परिवार के सदस्यों की तरह, उच्च योग्यता और डिग्री के बावजूद बेरोजगार हैं.”

कन्ना ने कहा, “नौकरशाही और राजनीति में उनके समर्थक हैं. इनका नेटवर्क अभी भी बरकरार है. वे वर्तमान एलजी (उपराज्यपाल) और गृह मंत्री के दबाव के कारण चुप हैं. वे कभी भी अपना सिर उठा सकते हैं.”

कन्ना ने खुलासा किया, “मेरे सौतेले भाई गुलाम अहमद मीर और दूसरे भाई गुलाम हसन मीर के बेटे गुलाम अहमद मीर को 28 मार्च 1991 को नोलारी, पट्टन में पकड़ लिया गया और बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई. तीन दिनों तक किसी ने शव नहीं उठाया. एक अन्य घटना में, मेरे बेटे निसार अहमद मीर पर गोली चलाई गई और वह गंभीर रूप से घायल हो गया. मेरे घर पर ग्रेनेड हमले में उनकी पत्नी शहजादा गंभीर रूप से घायल हो गईं. बाद में, चोटों के कारण उसने दम तोड़ दिया.”

कन्ना ने कहा, “हालांकि, भाजपा नेता केदार नाथ साहनी (सिक्किम के पूर्व राज्यपाल) और चमन लाल गुप्ता (पूर्व रक्षा राज्य मंत्री) ने मदद की थी और मेरे बेटे को बचाया था. उन्होंने उसके इलाज के लिए अमेरिका से डॉक्टर बुलाये थे.”

कन्ना स्वयं अपने जीवन पर हुए अनेक हमलों से बचे. उन्होंने बताया, ‘‘एक बार मैं वुसान में आईटीबीपी की चौथी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर के साथ यात्रा कर रहा था. हमारी गाड़ी को 100 किलो आईईडी से निशाना बनाया गया. भगवान ने हमें बचा लिया. एक अन्य घटना में, मुझ पर और 122 बटालियन बीएसएफ के सीओ पर 200 एके-47 राउंड फायर किए गए. फिर से हम चमत्कारिक ढंग से बच गए.’’ उन्होंने कहा. उन्होंने कहा, ‘‘मेरे घर में तीन बार आग लगाई गई.’’

कन्ना द्वारा जिंदा पकड़े गए लोगों में हरकत-उल-अंसार प्रमुख सज्जाद अफगानी भी शामिल है, जो बाद में जम्मू की कोट भलवाल जेल से भागने के प्रयास में मर गया. 1999 में कंधार में आईसी-814 अपहर्ताओं ने भी अफगानी के नश्वर अवशेषों की मांग की थी, जब तीन शीर्ष रैंकिंग के आतंकवादियों मसूद अजहर (जिन्होंने बाद में जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया), अल-उमर मुजाहिदीन प्रमुख मुश्ताक लाटरम और ब्रिटिश आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख (जिसने बाद में अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल का सिर काट दिया था) को भारतीय बंधकों के बदले में रिहा कर दिया गया था.

कन्ना ने कहा, “मैंने सज्जाद अफगानी को तब पकड़ लिया, जब वह हांजीबुग में एक हेडमास्टर के घर पर छिपा हुआ था. उसके पास बंदूक नहीं थी. लेकिन बाद में हमने उसके ठिकाने से एके गोला बारूद के चार बैग बरामद किए.” कन्ना ने याद किया, “तब डिप्टी सी.ओ. बीएसएफ 122 बीएन के राज कुमार और सिर्फ 20 अन्य कर्मी उस ऑपरेशन में मेरे साथ थे”

कन्ना के अनुसार, एक कर्नल मसूद उनकी सबसे बड़ी पकड़ थी. कन्ना ने कहा, “वह आईएसआई का नियमित सदस्य था और उसके सिर पर 25 लाख रुपये का इनाम था. मेरे मुखबिरों के नेटवर्क ने कड़ी मेहनत की और हमने उसे बटपोरा, कनिहामा में उसके ठिकाने पर पकड़ लिया. उस मुठभेड़ में कर्नल मसूद और तीन अन्य विदेशियों सहित छह आतंकवादी मारे गए. हमने आरआर 34वीं बटालियन के एक सैनिक को खो दिया.” उनके अनुसार, उनके कई ऑपरेशनों में 6 से 12 आतंकवादी मारे गए.

अब कई बीमारियों से जूझ रहे कन्ना पिछले 20 वर्षों से आतंकवाद विरोधी अभियानों से नहीं जुड़े हैं. कन्ना ने कहा, “मेरे देश ने मेरे परिवार के पुनर्वास या रोजगार के लिए कुछ नहीं किया है. लेकिन इससे मेरे मनोबल और भावना पर कोई असर नहीं पड़ा. मैंने अपने और अपने बच्चों के लिए जो रास्ता चुना, उस पर मुझे कभी खेद या पश्चाताप नहीं हुआ. मैं सभी परिणामों के लिए तैयार हूं.” उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी से कई बार मुलाकात की और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से पद्मश्री सम्मानित किया गया.

 

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