आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के महासचिव डॉ  सैयद  अहमद खान को बचपन में नानी के घर जाना था पसंद

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 01-07-2024
General Secretary of All India Medical Congress, Dr. Syed Ahmed Khan loved going to his grandmother's house in his childhood.
General Secretary of All India Medical Congress, Dr. Syed Ahmed Khan loved going to his grandmother's house in his childhood.

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
 
 बचपन का खेल, नानी दादी की कहानी, चंदा मामा को रात में गौर से देखना और गर्मी की छुट्टी में नानी के घर जाना गुजरते वक्त के साथ यादों में रह जाती हैं. जब बात गर्मियों में छुट्टियों की हो तो बचपन का वह जमाना नक्श करने लग जाता है. इस बाबत आवाज द वाॅयस ने आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के महासचिव डॉ डॉ सैयद  अहमद खान से बातचीत की.  उन्होंने बचपन की यादें साझा करते हुए भावनात्मक किस्से बयान किए.
 
 डॉ डॉ सैयद  अहमद खान  बचपन की दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि मेरा घर फैजाबाद क्षेत्र में पड़ता है . कुछ किलोमीटर की दूरी पर मेरा ननिहाल है. जब स्कूल में गर्मी की छुट्टी हुआ करती थीं तो मैं माता-पिता से कहता था कि हमें कहीं और नहीं, नानी के यहां जाना है. जहां हर चीज की आजादी हुआ करती थीं.

सुबह होते ही पड़ोस के बच्चों के साथ घर से दूर खेलने के चला जाता था. आम के बगीचे से कच्चे आम को तोड़ते, उसे पत्थर पर घिस कर नमक लगाकर खाते थे. वह जमाना वाकई मजेदार था. न खाने की फिक्र, न किसी चीज का टेंशन.

डॉ डॉ सैयद  अहमद बताते हैं कि नानी के यहां  ज्यादा प्यार मिलता था. आज भी मिलता है. मोहल्ले का हर कोई अपने नाती की तरह व्यवहार करता है. बचपन लोग सिर्फ नाम पूछते और दुकान पर चॉकलेट खरीद देते थे.

स्वाभाविक रूप से वहां सुविधाएं होती थीं. यानी तालाब, बगीचे और बड़े-बड़े मैदान हुआ करते थे, इसलिए वहां खेलने का अच्छा मौका मिलता था. उसमें बहुत खुशी महसूस होती थी. आम, लीची जैसी  चीजें बहुत आसानी से उपलब्ध थीं.
 
 डॉ डॉ सैयद  अहमद ननिहाली दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि गर्मियों की छुट्टियों और दादी की कहानी को याद करते हुए मुझे वास्तव में बचपन की याद आती है. गांव में जब हम नानी के यहां जाते थे तो कोई हमसे कुछ नहीं कहता था.

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बचपन की खुशियाँ, आज़ादी, बड़े होने का एहसास, दादी माँ का प्यार देने का तरीका, नानी की कहानी ये सभी वास्तव में बहुत मायने रखते थे.उस वक्त जो दोस्त हुआ करते थे, गुल्ली डंडा, कुश्ती और कबड्डी खेलते थे.वे दोस्त आज भी हैं . वह समय एक भावनात्मक लगाव वाला था जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं.
 
 जब मैं कक्षा 4 में था, एक बार हमारे शिक्षक ने हमें ज़ोर से डांटा था. डंडे से पीटने की शिकायत पिता से की तो पिता स्कूल आये और बोले कि मेरा बच्चा पढ़े या नहीं पढ़े. आप इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं. टीचर से कह दो कि आज के बाद छड़ी न उठाएं. ये बचपन का वक्त था. आज एहसास होता है कि शिक्षक हमारे लिए ही डंडे उठाते थे.
 
 बचपन के स्कूली दिनों के बारे में वह बताते हैं कि जब आठ साल का था, गन्ने के मौसम में ऐसा लगता था कि पूरा गांव हमारी दादी का है. इसलिए जब एक खेत में गन्ना तोड़ने  गया तो मालिक बहुत नाराज हुआ.

मैंने कहा कि देखो मैं नानी के पास आया हूं. तुम को कोई शिकायत है क्या? लेकिन उन्होंने बहुत प्यार से कहा कि ठीक है.  नानी के पास आए हो तो तुम नवासे हुए. तुम हमारे मेहमान हो, तोड़ लो. यह उस समय की बात है जब लोगों में बहुत प्यार था. ऐसा लगता था कि ननिहाल के गांव के सभी लोग अपने हैं.
 
 जब मैं छोटा था आपस में बच्चों से झगड़े होते थे, लेकिन ये झगड़ा ज्यादा देर तक नहीं रहता था. कुछ  समय के लिए, एक या दो घंटे से ज्यादा नहीं , खत्म हो जाता था. वह वक्त अब खत्म हो गया.
 
 डॉ सैयद अहमद गुजरे समय और आज के बच्चों के बारे में कहते हैं कि इंसान के अंदर जरूरतें इस कदर बढ़ गई हैं कि अब सब कुछ बदल गया है. लोगों का मिजाज, बच्चों की सोच, घूमने की आजादियां, समय की कमी हो गई है.

बच्चों की छुट्टी पर बच्चे इंडिया गेट, लाल किला, ताजमहल, कुतुब मीनार, दूसरे शहरों में घूमना पसंद करते हैं. लेकिन उस जमाने में सभी बच्चों की ख्वाहिश होती थी कि छुट्टी में नानी के यहां जाएं.