स्वतंत्रता संग्राम और प्रो. अब्दुल बारी: भारत के मज़दूर आंदोलन के नायक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-03-2025
Prof Abdul Bari's son with Mahatma Gandhi on his funeral
Prof Abdul Bari's son with Mahatma Gandhi on his funeral

 

साकिब सलीम

“मैं आपको इतने कम समय में 14 यूनियनों को सफलतापूर्वक संगठित करने के लिए बधाई देता हूँ.” सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्रो. अब्दुल बारी को लिखे एक पत्र में ये शब्द लिखे थे. प्रो. अब्दुल बारी बिहार से कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे और 28 मार्च 1947 को उनकी हत्या के समय भारत में मजदूरों और कामगारों के सबसे लोकप्रिय नेता थे.

एस. के. सेन ने अपनी पुस्तक, वर्किंग क्लास मूवमेंट्स इन इंडिया: 1885-1975 में लिखा है, “वास्तव में, बारी एक महान मजदूर नेता थे, जिनकी मुख्य उपलब्धि प्रबंधन से रियायतें प्राप्त करने के लिए नीचे से आंदोलन का निर्माण करना था.”

असहयोग आंदोलन से ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद के करीबी सहयोगी, प्रो. अब्दुल बारी को बिहार में औद्योगिक श्रमिकों को संगठित करने की जिम्मेदारी दी गई थी. 1929 में वे जमशेदपुर पहुंचे, जहां एक स्टील प्लांट था और कुछ ही हफ्तों के भीतर टाटा टिनप्लेट कंपनी में औद्योगिक श्रमिकों की हड़ताल का आयोजन किया.

1929 से 1937 तक बारी का ध्यान जमशेदपुर और बिहार के अन्य क्षेत्रों के बीच बंटा रहा. 1937 में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से जमशेदपुर में मजदूर संघ का नेतृत्व संभाला. मजदूरों के बीच बारी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई और एक साल के भीतर उन्होंने यूनियनों को एक ताकत में बदल दिया.

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1939 में कंपनियों ने मजदूर आंदोलन में दरार पैदा करने के लिए जमशेदपुर में सांप्रदायिक दंगा कराने के लिए हिंदू और मुस्लिम गिरोहों को प्रायोजित करने की कोशिश की. लेकिन, मजदूर संघ की ओर से समय पर की गई कार्रवाई ने यह सुनिश्चित किया कि लोग नापाक साजिश को समझ सकें और दंगा ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सके.

उसी वर्ष, कांग्रेस को एक संकट का सामना करना पड़ा, जहां सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाले समाजवादी और गांधीवादी आमने-सामने आ गए. प्रो. अब्दुल बारी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले समूह का पक्ष लिया. यह उनके लिए श्रेय की बात थी कि बोस, जे.पी., स्वामी सहजानंद और अन्य लोगों द्वारा बारी से नियंत्रण छीनने के लिए जमशेदपुर में अभियान चलाने के बावजूद मजदूर संघ गांधी के गुट के साथ रहा.

1940 में, जब मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने भारत के विभाजन की मांग की, तो बारी को मुस्लिम जनता के बीच सम्मेलन आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई, ताकि उन्हें एकजुट भारत के महत्व से अवगत कराया जा सके.

उन्होंने बिहार भर में विभिन्न मुस्लिम इलाकों में खिदमत खाने की स्थापना की और मुस्लिम लीग के खिलाफ अभियान चलाया. 1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया और बारी को भी जेल में डाल दिया गया. अपनी रिहाई के बाद, बारी ने 1945 में फिर से कोयला खदान मजदूरों, रेलवे मजदूरों, धातु मजदूरों और किसानों को राष्ट्रवादी कांग्रेस की लाइन पर संगठित करना शुरू किया.

स्वतंत्रता संग्राम के लिए इन सभी वर्गों को संगठित करने की उनकी योजना थी, जिस पर उस समय के शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व, विशेष रूप से राजेंद्र प्रसाद का पूरा विश्वास था. मुख्य लक्ष्य मजदूरों के बीच समाजवादियों और कम्युनिस्टों के प्रभाव का मुकाबला करना था. 1946 के मई महीने तक, उन्होंने निम्नलिखित स्थानों पर मजदूर यूनियनों का गठन कर लिया था -

  • टाटा वर्कर्स यूनियन
  • टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन
  • केबल वर्कर्स यूनियन
  • इंडिया स्टील वायर प्रोडक्ट्स वर्कर्स यूनियन
  • टाटानगर फाउंड्री वर्कर्स यूनियन
  • जेम्को वर्कर्स यूनियन
  • ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन
  • जुगसलाई म्युनिसिपल वर्कर्स यूनियन
  • मोबंदर मजदूर यूनियन
  • मोसाबोनी माइन वर्कर्स यूनियन
  • नोवामिंडी मजदूर यूनियन
  • गोवा माइन वर्कर्स यूनियन
  • आसनसोल आयरन एंड स्टील वर्कर्स यूनियन
  • झरिया कोल फील्ड यूनियन

बाटानगर वर्कर्स यूनियन जैसी कई अन्य छोटी यूनियनों का गठन भी उन्होंने किया था. 1946 में, उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को प्रस्ताव दिया कि इन सभी यूनियनों को कांग्रेस के तहत एक ही पार्टी में विलय कर दिया जाना चाहिए.

मई 1946 में बारी ने सरदार पटेल को लिखा, ‘‘वर्तमान सफलता बहुत उत्साहवर्धक है और मुझे पूरा यकीन है कि आपके समर्थन और सहानुभूति से मैं हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ के तत्वावधान में एक बहुत शक्तिशाली अखिल भारतीय मजदूर संगठन स्थापित करने में सक्षम हो जाऊंगा.

यह भारत के किसी भी संगठन जितना शक्तिशाली होगा और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं वर्तमान छद्म अखिल भारतीय संगठनों, जैसे अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस और अखिल भारतीय मजदूर महासंघ को उखाड़ फेंकने में सक्षम हो जाऊंगा.

ऐसा नहीं है कि मैं भावनाओं के आधार पर बोल रहा हूं, लेकिन यह मेरी सोची-समझी राय है कि वर्तमान कांग्रेसियों पर जितने भी दोष लगाए जा सकते हैं, उनके बावजूद वे राजनीतिक क्षेत्र में निरंतर काम करने के लिए सबसे अच्छे लोग हैं.

सच तो यह है कि कांग्रेस ने भारत में ट्रेड यूनियनवाद पर कभी ध्यान नहीं दिया और इसी वजह से हम मैदान से बाहर हैं. अगर आप और आपके कुछ साथी ट्रेड यूनियनवाद को अपनाने के लिए कांग्रेसियों के बीच एक राय बनाने का प्रयास करें, तो मुझे यकीन है कि कांग्रेस ऐसा करेगी. मैं कुछ ही समय में एक बहुत शक्तिशाली श्रमिक संगठन की कमान संभालने में सक्षम हो जाऊंगा. मैं आपसे विनती करता हूं कि आप मुझे कुछ शर्तें दें और मैं इसे पूरा करने में सक्षम हो जाऊंगा.’’

बारी ने पटेल से पहले अखिल भारतीय एचएमएसएस सम्मेलन का अध्यक्ष बनने के लिए कहा. महात्मा गांधी दंगों और कैबिनेट मिशन को नियंत्रित करने में व्यस्त थे, इसलिए पटेल ने इस प्रस्ताव को टाल दिया. यह एक दुखद घटना है कि इस मजदूर नेता की 28 मार्च 1946 को पटना में हत्या कर दी गई.

वे उस समय बिहार कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे और गांधीजी से मिलने जा रहे थे. गांधीजी द्वारा संपादित हरिजन ने उनकी मृत्यु पर टिप्पणी की, ‘‘(भगवान ने) बिहार को एक फकीर के दिल वाले बहुत बहादुर व्यक्ति की महान सेवा से वंचित कर दिया.’’