मंजीत ठाकुर
भारत की पहली टेस्ट टीम ने 1932 में इंग्लैंड का दौरा किया था और उस टीम में चार मुस्लिम खिलाड़ी थे. उनमें से एक थ डॉ. मोहम्मद जहांगीर खान. डॉ. मोहम्मद जहांगीर खान ने भारत की तरफ से कुल चार टेस्ट मैंच खेले और उनके उत्कर्ष का दौर 1930 का दशक था.
विभाजन के बाद,जहांगीर खानपाकिस्तान चले गए थे और वहां क्रिकेट के विकास के लिए एक खिलाड़ी, प्रशासक और चयनकर्ता के रूप में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके बेटे माजिद खान ने पाकिस्तान की कप्तानी की और इसी तरह उनके भतीजे जावेद बुर्की और इमरान खान ने भी उनकी राह पकड़ी.
जहांगीर खान का जन्म जालंधर में 1910 में हुआ था. लंबे कद के जहांगीर खान एक मध्यम तेज गेंदबाज और दाएं हाथ के आक्रामक बल्लेबाज थे. खान ने मार्च 1929 में लॉरेंस गार्डन, लाहौर में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में शानदार प्रवेश किया, 108 रन बनाए और फिर 25 रन देकर दो और 42 रन देकर सात विकेट लिए.
अपने दूसरे मैच में, उस लाहौर टूर्नामेंट में भी, यूरोपीय लोगों के खिलाफ गेंदबाजी की शुरुआत करते हुए उन्होंने दस विकेट (49 रन देकर छह और 48 रन देकर चार) लिए. उन्हें बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला था.
टेस्ट क्रिकेट में उनका पदार्पण उतना खास नहीं था,और इसलिए वह किसी का ध्यान नहीं खींच पाए. 1932 में लॉर्ड्स में, भारत के उद्घाटन टेस्ट में, उन्होंने दूसरी पारी में होम्स, वूली, हैमंड और पयंटर को 30 ओवर में सिर्फ 60 रन देकर आउट किया. उन्होंने पहली पारी में एक भी विकेट नहीं लिया था.
उस दौरे पर प्रथम श्रेणी के मैचों में, उन्होंने 19.47की औसत से 448 रन बनाए और 29.05 की औसत से 53 विकेट लिए.साइड-ऑन एक्शन और कुछ हद तक स्लिंग डिलीवरी के साथ उन्होंने काफी किफायती गेंदबाजी की थीजिससे उन्हें अपनी गति में बदलाव करने का मौका मिला था और इससे वह कई दफा अचानक तेज गेंदे फेंक देते थे.
जहांगीर तब महज 22 वर्ष के थे, और यह कहने की जरूरत नहीं है कि उस सीजन में वह कैम्ब्रिज के लिए एक कमाल के गेंदबाज साबित हुए. उन्होंने 1933 से 1936 तक ऑक्सफोर्ड के खिलाफ लॉर्ड्स में खेला और कैम्ब्रिज की पिछले दो सालों की लगातार जीत में वह तुरुप का इक्का साबित हुए थे. 1935 में और फिर 1936 में उन्होंने छह विकेट लिए थे.
उनकी सटीक गेंदबाजी और स्टेमिना की वजह से वह विपक्षी बल्लेबाजों को लंबे समय तक बांधे रखते थे. बाद में 1936 में वह भारतीय दौरे वाली टीम के साथ जुड़ गए और तीनों टेस्ट में खेले लेकिन उनकी किस्मत कोई खास नहीं रही. उन्हें एक भी विकेट नहीं मिला और लॉर्ड्स में 13 रनों की दो पारियां उनकी बल्ले से उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा.
टेस्ट के बाहर उन्होंने 21.90 की औसत पर 40 विकेट लिए और 17.25 की औसत पर 276 रन बनाए.
1936 में ही वहां गौरैया की घटना घटी थी जिससे उनका नाम हमेशा के लिए क्रिकेटीय इतिहास में दर्ज हो गया. लॉर्ड्स में एमसीसी के खिलाफ कैम्ब्रिज के लिए खेलते हुए, वह टी. एन. पियर्स को गेंदबाजी कर रहे थे, जिन्होंने उनकी गेंद को रक्षात्मक ढंग से खेल दिया. लेकिन सबने देखा कि विकेट की गिल्लियां गिर चुकी थीं. तभी स्टंप के पास एक मरी हुई गौरैया मिली.
उस बदकिस्मत परिंदे को बाद में स्टफ करके लॉर्ड्स के मेमोरियल गैलरी में प्रदर्शनी के लिए रखा गया. कहा जाता है कि गौरेया उड़ रही थी कि उसको जहांगीर खान की गेंद जा लगी थी हालांकि किसी ने ऐसा होते नहीं देखा.
कैंब्रिज में रहते हुए, जहांगीर को 1933 और 1934 में फोकस्टोन में खिलाड़ियों के खिलाफ जैंटलमेन का प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया गया था और वह एमसीसी की तरफ से भी खेले.
1940-41 से 1945-46 तक वह पहले दो सत्रों में कप्तान के रूप में उत्तरी भारत के लिए खेले, और विभाजन के बाद 1951-52 से 1955-56 तक पंजाब के लिए, जब वह 46 वर्ष के थे. 111 प्रथम श्रेणी मैचों में उन्होंने 22.12 के औसत से 3,319 रन रन बनाए और चार शतक ठोंके, 25.06 के औसत के साथ उन्होंने 326 विकेट लिए और 79 कैच लपके.
उनका उच्चतम स्कोर 1936 में कैम्ब्रिज के लिए नॉटिंघमशर के खिलाफ फेनर में 133 रन था और 1929-30 में लाहौर में यूरोपियों के खिलाफ मुस्लिमों के लिए 33 रन देकर उनका सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी स्कोर था.
उनका निधन 23 जुलाई 1988 को 78 साल की उम्र में लाहौर में हो गया.
***