आवाज द वाॅयस/श्रीनगर
नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चर्चा का विषय बने हुए हैं.हाल ही में उनका एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कटरा में 'तूने मुझे बुलाया शेरावालिये' भजन गाते और झूमते हुए नजर आ रहे हैं.यह दृश्य देखने के बाद उनके समर्थक और आलोचक, दोनों ही तरह की प्रतिक्रियाएं देने लगे हैं.
वीडियो में फारूक अब्दुल्ला मंदिर परिसर में खड़े हैं और भक्ति भाव से शेरावालिये भजन गाते हुए दिखाई दे रहे हैं.उनके साथ कुछ अन्य लोग भी इस भजन में सम्मिलित हैं और सब मिलकर इस भक्ति गीत का आनंद ले रहे हैं.फारूक अब्दुल्ला की इस भक्ति भावना ने उनके प्रशंसकों को प्रभावित किया है और इसे सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया जा रहा है.
यह घटना तब सामने आई जब फारूक अब्दुल्ला कटरा गए थे.कटरा, जोकि माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए प्रसिद्ध है, वहां पहुंचे हुए फारूक अब्दुल्ला ने महाकुंभ के संदर्भ में भी एक बयान दिया था.उन्होंने महाकुंभ के महत्व पर जोर देते हुए कहा था, "महाकुंभ सदियों से होता आ रहा है और यह हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है." उन्होंने मां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं भी दी थीं.
#WATCH | Katra | National Conference leader Farooq Abdullah was seen singing the bhajan 'Tune Mujhe Bulaya Sherawaliye' in Katra (23.01) pic.twitter.com/LaRwlHH2rR
— ANI (@ANI) January 24, 2025
फारूक अब्दुल्ला का यह भक्ति प्रदर्शन और महाकुंभ पर बयान राजनीति और धर्म के बीच के रिश्तों को लेकर चर्चाओं को और तेज़ कर रहा है.एक ओर जहां उनके समर्थक इस पहल को धार्मिक आस्था और जनता के साथ जुड़ाव के रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ विपक्षी उनके धर्म के प्रति समर्पण और राजनीतिक विचारधाराओं पर सवाल भी उठा रहे हैं.
फारूक अब्दुल्ला का यह भजन गाना और महाकुंभ पर बयान उन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे विरोधियों के लिए एक चुनौती बन सकता है.इससे पहले फारूक अब्दुल्ला विभिन्न मुद्दों पर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन इस बार उनका भक्ति भाव उन्हें एक नई पहचान दिला सकता है, खासकर उनके समर्थकों के बीच.
इस वायरल वीडियो और उनके बयान से यह भी साफ़ होता है कि फारूक अब्दुल्ला अपनी धार्मिक आस्थाओं को किसी भी राजनीतिक लाभ से ऊपर मानते हैं.यह घटनाएं एक बार फिर यह साबित करती हैं कि भारतीय राजनीति में धर्म और राजनीति का मिश्रण हमेशा ही एक जटिल और संवेदनशील विषय बनकर उभरता है.