फहीमुद्दीन हारिस: शालीमार की झुग्गी बस्ती में बदलाव की एक कहानी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-04-2025
Faheemuddin Haris: A story of transformation in a Shalimar slum
Faheemuddin Haris: A story of transformation in a Shalimar slum

 

जावेद अख्तर / कोलकाता

देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और हिंदू-मुस्लिम विवादों के बीच एक मुस्लिम युवक, फहीमुद्दीन हारिस, ने एक ऐसी बस्ती में बदलाव की एक अनोखी मिसाल पेश की है, जहां गरीबी और अभाव ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था. हावड़ा जिले के शालीमार स्थित इस बस्ती में लोग मुश्किल परिस्थितियों में रहते थे.

school

यहां पानी की कमी, शौचालयों की अनुपस्थिति, शिक्षा का अभाव और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की तमाम समस्याएं थी, लेकिन आज फहीमुद्दीन हारिस के संघर्ष और सामाजिक कार्य के कारण इस बस्ती की तस्वीर बदल चुकी है.

क्या था शालीमार की बस्ती का हाल?

हावड़ा जिले के शालीमार में स्थित यह बस्ती एक अभावग्रस्त क्षेत्र था. यहां के लोग झुग्गियों में रहते थे और दिन में एक बार खाना खाकर अपना गुज़ारा करते थे. पानी का कोई पक्का इंतजाम नहीं था, लोग नदी के पानी से नहाते थे और शौच के लिए खुले स्थानों पर जाते थे.

यहां बिजली कनेक्शन अवैध रूप से जोड़कर चलाए जाते थे और बच्चों को खेलने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं था. छोटे बच्चे ट्रकों और वैगनों के बीच खेलते थे, जिससे यहां दुर्घटनाएं भी आम हो चुकी थीं.

शिक्षा का नामोनिशान नहीं था और बच्चे दिन भर खेलकूद में व्यस्त रहते थे, जबकि उनकी पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं थी.

school

फहीमुद्दीन हारिस: बदलाव की उम्मीद

फहीमुद्दीन हारिस, एक युवा सामाजिक कार्यकर्ता, ने इस क्षेत्र की दुखद स्थिति को देखकर यह ठान लिया कि यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए.

वह "सेकंड ब्रिज" नामक एक गैर-सरकारी संगठन के सह-संस्थापक और निदेशक हैं.जब फहीमुद्दीन ने शालीमार की बस्ती का दौरा किया, तो उनकी स्थिति देखकर वह बहुत दुखी हुए और उन्होंने यह फैसला किया कि इस बस्ती के लिए कुछ करना चाहिए.

उन्होंने अपना मिशन तय किया और इस क्षेत्र के लोगों की मदद करने के लिए काम शुरू किया.फहीमुद्दीन ने इस क्षेत्र में आने वाली समस्याओं को समझा और उनके समाधान के लिए काम करना शुरू किया.

उनका संगठन "सेकंड ब्रिज" बस्ती के लिए कई योजनाओं पर काम कर रहा था. इस दौरान एक जर्मन गैर-सरकारी संगठन भी उनके साथ जुड़ा और इस बस्ती की मदद करने का फैसला किया.

इससे बस्ती में काफी बदलाव आया और लोगों की जीवनशैली में सुधार हुआ.

बस्ती में बदलाव के उपाय

फहीमुद्दीन हारिस की कोशिशों से इस बस्ती में कुछ महत्वपूर्ण सुधार हुए. सबसे पहले, उन्होंने बस्ती में पानी के पंप लगवाए ताकि लोगों को पीने के पानी की समस्या से निजात मिल सके. इसके अलावा, शौचालयों का निर्माण किया गया ताकि लोग खुले में शौच करने से बच सकें. अब, बस्ती के लोग नदी में नहाने के लिए नहीं जाते और उनके पास शौचालय जैसी सुविधाएं हैं.

school

बच्चों की शिक्षा के लिए भी फहीमुद्दीन ने महत्वपूर्ण कदम उठाए. उन्होंने बस्ती में एक स्कूल की स्थापना की, जहां बच्चों को न केवल शिक्षा मिल रही है, बल्कि उन्हें रोज़ाना भोजन भी दिया जा रहा है.

इस स्कूल में अब 85 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. बच्चों के लिए कोचिंग भी दी जाती है, जिससे उनकी शिक्षा का स्तर सुधरने लगा है. पहले यहां के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन वहां शिक्षा की गुणवत्ता खराब थी और वे कुछ भी नहीं सीख पाए थे. अब, सेकंड ब्रिज की मदद से इन बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल रही है और वे पढ़ाई में आगे बढ़ रहे हैं.

school

सामाजिक कार्य में फहीमुद्दीन की भूमिका

फहीमुद्दीन हारिस के लिए यह सिर्फ एक सामाजिक काम नहीं था, बल्कि एक जीवन की चुनौती थी. उनके पास सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री है और उन्होंने अपनी शिक्षा और अनुभव का उपयोग इस बस्ती में बदलाव लाने के लिए किया। उनका संगठन अब शालीमार के लोगों के लिए एक बड़ी उम्मीद बन चुका है.

school

फहीमुद्दीन ने न केवल बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सुविधाजनक स्कूल स्थापित किया, बल्कि उन परिवारों की ज़िंदगी को भी बेहतर बनाने का प्रयास किया, जिनके पास मूलभूत सुविधाओं की कमी थी.

बच्चों के जीवन में बड़ा बदलाव

इस बदलाव का सबसे बड़ा असर यहां के बच्चों पर पड़ा है। पहले, ये बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे, लेकिन वहां शिक्षा की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि वे न तो पढ़ना जानते थे और न ही लिखना.

अब, सेकंड ब्रिज के स्कूल में इन बच्चों को न केवल शिक्षा मिल रही है, बल्कि उनकी ज़िंदगी में एक नया दिशा भी आ चुका है. इन बच्चों को पढ़ने-लिखने के साथ-साथ उनके अभिभावकों को भी एक नई उम्मीद मिली है.

school

फहीमुद्दीन हारिस ने अपनी मेहनत और समर्पण से शालीमार की झुग्गी बस्ती में बदलाव की मिसाल पेश की है. उनकी कोशिशों से इस बस्ती में न केवल बुनियादी सुविधाएं आई हैं, बल्कि यहां के बच्चों की शिक्षा और जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है.

आज, इस बस्ती की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है और यहां के लोग अब पहले से कहीं ज्यादा बेहतर जीवन जी रहे हैं.

फहीमुद्दीन हारिस का कार्य समाज के लिए एक प्रेरणा है, जो यह दिखाता है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो किसी भी कठिन परिस्थिति को बदला जा सकता है.