EXCLUSIVE INTERVIEW - 2 : भारतीय सुफिज्म सनातन धर्म , मजहब की रूह है: रानी खानम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 18-02-2023
स्टूडियो में रानी खानम से बातचीत
स्टूडियो में रानी खानम से बातचीत

 

रानी खानम पहली मुस्लिम कलाकार हैं, जो कथक कर रही हैं. वह न सिर्फ कथक नृत्य करती हैं बल्कि इस नृत्य शैली को उन्होंने सूफीवाद से जोड़ा है और इसके साथ ही अपनी प्रस्तुतियो में एड्स जागरूकता और महिला सशक्तिकरण को भी आवाज दी है. पिछले दिनों आवाज- द वॉयस के स्टूडियो में आवाज- द वॉयस हिंदी के एडिटर मलिक असगर हाशमी और डिप्टी एडिटर मंजीत ठाकुर ने उनसे बात की. पेश है उस इंटरव्यू का दूसरा हिस्साः

प्रश्नः जब मुसलमान गाने लगता है तो बहुत सारे लोग एतराज करने लगते हैं. ऊपर से आप न-त्य कर रही हैं. सूफिज्म में जब आप नृत्य कर रहे होते है तो कुछ शब्द ऐसे होते हैं कि मसलन  अल्लाह का, हजरत अली का नाम आ जाए, पैगंबर साहब का नाम आ जाए. तो उसके नाम से कैसे नृत्य हो सकता है?

रानी खानम:कथक कोई डेकोरेटिव आर्ट नहीं है, वह हमारे सजावट की चीज़ नहीं इबादत की चीज है. दूसरी बात, सूफी जैसा कांसेप्ट भी डेकोरेटिव कभी नहीं है, सजावट की चीज नहीं होती है, वह इबादत की होती है. तो हम अपनी प्रस्तुति को नृत्य नहीं मानते हैं. एक हजरत उस्मान (र अ) की लाइन है जो सरकार अजमेर शरीफ ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (र अ) के उस्ताद थे.

कि नमी दानम कि आखिर चुकी दमेदार मे रक्सम,

मगर ना जम के पेशे या में रक्सं.

पूरी दुनिया इसी पर खत्म है. मैं नहीं जानता कि मैं क्यों नाच रहा हूं और किसलिए नाच रहा हूं और किसके लिए नाच रहा हूं. मगर ये तू है तो मेरे सामने है, तू मुझ में है ये तू नाच रहा है मैं नहीं नाच रहा.

अगर आप ध्यान दें तो कायनात की हर शय उसी की निगाह ए करम से मिलती है. वो खड़ा है बैठा है एक हाथ में सूरज एक हाथ में चंद्रमा लिए, हर चीज पैदा करता है कभी खत्म करता है, हर चीज नाच रही है उसके इशारे पर. हर वह शय जो छोटी है बड़ी है, दिखाई दे रही है नहीं दिखाई दे रही है. पानी में मछली नाचती है, हवा दरख्त नाचता है, हम नाचते हैं. कोई पागलपन में नाचता है, कोई इश्क में नाचता है. नाचते सब हैं तो हम भी नाच दिया तो कौन सी बड़ी बात!

सो इश्क में नाच, नाचना वह एक नाच है. आप नाच दुनिया के लिए नहीं उसके लिए नाच रहे हैं. जब वह नाच होती है तो जो हाथ चलता है, पैर चलते हैं तो वह उसी की इबादत में चलते हैं. उसकी रूहानियत एक अलग होती है. 

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प्रश्न आप सूफीवाद और कथक पर रिसर्च भी कर रही है?

रानी खानम: जब सूफिज्म का ख्याल आया तो मैंने कलाम इस तरह शुरू किया नाच का और फिर धीरे धीरे काम करने लगी. मुझे 2003 में मलेशिया से बुलावा मिला. वहां दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक म्यूजियम है जिन्होंने मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था. हम यह दिखाना चाहते थे कि हमारे यहां इतना ग्रेस है कि भारत इतना खुला है कि एक आर्टिस्ट भी बगैर किसी मुश्किल के अपना काम को दिखा सकता है. इसलिए उन्होंने बुलाया और मैंने वहां अपनी बेस्ट परफॉरमेंस दी.

आप देश के लिए नाच रही हैं, इतने बड़े ऑडिटोरियम में राजा रानी बैठे हुए हैं और मैं उनके सामने नाच रही हूं ये बहुत बड़ी इज्जत की बात है. दूसरा एक शो था जिसमें पूरी दुनिया के काफी प्राइम मिनिस्टर्स मौजूद थे उसमें मुझे ये मौका मिला कि मैं, मुझे बोला गया कि आप किया करेंगे. खैर मुझे जिंदगी का एक मकसद मिला.

खैर वह सब करने के बाद मुझे लगा कि इस्लामिक प्रभाव वाले कला में राग रागिनी कैसे बनी, नाच कैसे आया, गाने कैसे आए, समां कैसे बनी कैसे कहां कहां से निकलती है. ये बहुत बड़ा काम था और फिर मेरा इसमें बहुत बड़ा काम हुआ कि न्यूयॉर्क में मुझे एक प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप मिली.

इस्लाम में बोलते हैं कि नाच हराम है ऐसा नहीं है, कहीं नहीं लिखा है. खामोशी है बस. अल्लाह ने सबको हक दिया है और बड़ी बात ये है कि आपको सामने बैठ कर अपनी बात कह रही हूं. सच्चाई है इसलिए हम काम भी कर रहे हैं और मैं चाहती भी हूं कि और लोग भी काम करें. तो इस तरह से ये रिसर्च मिलना शुरू हुआ. इस्लामिक कॉन्फ्रेंस में मैंने काम किया और अब सीनियर फेलोशिप मिला है तो कोशिश करेंगे.

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प्रश्नः आप जब जाते हैं विदेशों में, तो क्या दूसरे देशों भी डांस फॉर्म है आपका. कदरदान बड़े हैं, कैसा लगता है. 

रानी खानम:विदेश में सूफिज्म ब्रांड के तौर पर दिखता है. समझ लीजिए इस बात को, और ये ब्रांड यहां चल रहा है. ब्रांडिंग करना और काम करने में फर्क है. ब्रांडिंग में लोगों को लगता है कि आसान है, बाहर में जाएंगे तो लोग बहुत ज्यादा पढ़ते हैं लिखते हैं, सुनते हैं. भारत में बहुत कलरफुल सुफिज्म है. हम चिश्तिया सिलसिले से वास्ता रखते हैं. तो चिश्तिया में रंग का बहुत है.

रंगीन सूफिज्म हमारे यहां का रंग है ये. हमारा वाइट नहीं है क्योंकि तुर्की को जो वह एक दम अलग है, हमारे इंडिया का अलग है. हम अपनी जमीन की बात करते हैं.

मैं इंडिया से हैं हम इंडियन सुफिज्म की बात करती हूं. हम सनातम धर्म से आए हैं. हम चीजों को लेकर आए है, इंडिया वाले सूफिज्म में रूह है, हमारे चीजों में है हम उसको आगे करेंगे और होना भी नहीं चाहिए. ये हमारी आस्था है,निजी आस्था है.

आप निजी आस्था का पालन कैसे करते हैं ये आप पर निर्भर करता है. इस चीज को लेकर बहुत ज्यादा काम होता है.

 

प्रश्नः ये आपका ऊपर वाले से कनेक्शन का जरिया है, कथक भी सूफिज्म भी. आप महिला अधिकारों के लिए भी डांस कर रही है, आप पीड़ितों के लिए भी काम कर रही है. बहुत सारे चीजें इसके साथ जुड़ी हुई है, वह विचार कैसे आया और उसको आप कैसे आगे बढ़ा रही हैं? 

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रानी खानम: सूफिज्म सही और गलत में फर्क बताता है. मोहब्बत दिखाता है, दर्द पैदा करता है. जब आप में दर्द पैदा होता है मोहब्बत पैदा होती है. जो आसपास होती है वह आपको तकलीफ देती है तो आपको उसमें से आवाज आती है, अलग तो कुछ नहीं, मुझे तो नहीं लगता कि कुछ अलग है.

अगर आपको जिंदगी का मकसद नहीं पता तो आपका जीना बेकार है. आप सिर्फ रोटी खाने के लिए, रात को सो कर सुबह उठेंगे तो ये सभी कर लेते हैं. आपने हमने किया क्या? कमाल तो नहीं कर दिया.

मेरा एक मानना है कि अगर आप कलाकार हैं तो आप कुछ कीजिए. समाज में आपका दायित्व भी बनता हैं सिर्फ तारीफ कर दीजिए, अवॉर्ड ले लीजिए. बैठ कर इंटरव्यू दे दूं. उससे आप पूरे नहीं होंगे, आपको लगता हैं कि आपने कुछ दिया. मुकम्मल का एहसास तब होता हैं जब देता हैं न कोई आदमी देता हैं तो मुकम्मल का एहसास होता है. अल्लाह अगर आपको सोच देता है और वह ये सोच देता है कि किसी के दर्द का आवाज उठाई तो आप जरूर उठाइए. 

यह मैंने महसूस किया है कि जो मुस्लिम महिलाओं को ज्यादा दबाया जाता है. बाहर बहुत सारे देशों में, अलग है. लेकिन हमारे यहां मुस्लिम औरतें बहुत ज्यादा परेशान हैं. आप यकीन कीजिए मैंने सुप्रीम कोप्ट के विशेष जजों के सामने किया था, ये कहकर कि आप मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को भी पहचानिए. आप उनको खानकाह में नहीं डाल सकते कि इस्लामिक लॉ में तो ये होता है, ऐसा क्यों हमें नहीं चाहिए.

मैं एक औरत हूं मेरे हुकूक है मेरे रास्ते हैं, मेरा हक चाहिए मुझे वही हक चाहिए जो मर्दों को मिलता है. मैं क्यों दायरे में बंध जाऊं. मैं तो यही कहती हूं कि आप बराबरी का हक दीजिए. किसी खाके और खाने में मत बांटिए. इसलिए मैंने वह बात बोल दिया, लिख के दे दिया. आप जब शादी करते हैं तो कमिटमेंट होता है तो उसमें क्यों नहीं लिखा जाता.

आप देखिए शियाओं के अंदर 2 फीसद तलाक होता हैं. सुन्नी में सबसे ज्यादा तलाक होता है. आप जब निकाह करते हैं तो उस समय तो आपके गवाह बहुत सारे लोग खड़े होते है जब आप तलाक देते हैं तो उस समय आपको गवाह की जरुरत नहीं है, क्यों नहीं है?

आप ऐसे कैसे निकाल दिया. शियाओं में जब आपको तलाक देना है तो गवाह की जरूरत है. आप अगर छोटी सी चीजें दुरुस्त करते जाएं तो हजारों, लाखों औरतों की जिंदगी बच जाएगी. तो करना कोई नहीं चाहेगा क्यों करना चाहे. तो सारी चीजें हैं और सरकारें न कान देती हैं और न करती है.

अभी जो हमारी हुकूमत है,उन्होंने तीन तलाक के ऊपर काम किया है बहुत अच्छा काम किया है. कम से कम उन्होंने ये किया कि छह महीने की रिवायत रखी. ये बहुत ही सराहनीय काम है,

 

प्रश्नः आपका एक इंस्टीट्यूट भी है, थोड़ा उसके बारे में बताएं. 

रानी खानम:इंस्टीट्यूशन असल में आर्टिस्ट ही होता है. हम सिखाते हैं और वह सीखते भी हैं क्योंकि हमारा ओवर ट्रेडिशनल है दुनिया का. इंडियन आर्ट फार्म ऐसा है खास कर.

शाह के गिर्द चक्कर लगाने को शार्गिद कहते हैं. यानी उस्ताद के विचारों को हमेशा साथ रखना. तो ये जो गुरु शिक्षक है इसका पालन करने की मैं कोशिश करती हूं. जिंदगी में एक ही शार्गिद मिल जाए बहुत है. 

प्रश्नः अभी हिंदुस्तान में विरासत को बचाने के लिए सड़क पर उतरे हैं उनमें से बहुत सारे लोग को विरासत का पता नहीं है. हम हिन्दुस्तानी तहजीब, जिसको गंगा जमुनी तहजीब कहते हैं. जिससे हिन्दुस्तान जाना जाता है, सूफिज्म भी हैं भक्ति भी है. उसको हम लोग कैसे युवाओं तक पहुंचा सकते हैं?

रानी खानम: अपनी जबान से, अपनी आवाज से, मैं अपनी नाच से, हम अपने काम से पहुंचाते हैं. जब बच्चे तालीम लेने आते हैं तो पहुंचाते हैं. एक हैं कम्पोजिट बाबा फरीद शंकर, होली खेलेंगे कहके बिस्मिल्लाह ला इलाहा इल्लल्लाह ला इलाहा इलल्लाह. अब देखिए सब कुछ साफ हो गया. अब ये जो बिस्मिल्लाह का जो लफ्ज हैं होली का मतलब वह लफ्ज नहीं हैं, उसका जो रंग है वह मोहब्बत का रंग है. तो हमारी गंगा जमुनी तहजीब भी इसी जमीन से बनी है.

मेरा काम हैं ये सब चीजें करते रहना, अपनी आवाज बुलंद करना, अपने फन के जरिये, अपनी अदाकारी के जरिये, लोगों तक पहुंचना. जितने भी लोग हैं आ जाएं. आप अपने फन के जरिये दिखाते हैं तो ये शुरुआत हैं और चलते रहेगा. आगे से जुड़ते हैं लोग और मुझे लगता हैं कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. हम कोशिश करते हैं कि सब मिलके साथ रहे और अच्छे काम करे.  

(लिप्यंतरणः मोहम्मद अकरम)


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