Exclusive Interview: अनाथालयों में रहने से लेकर IAS बनने तक B Abdul Nasar की प्रेरणादायक कहानी

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 29-06-2023
Exclusive Interview: अनाथालयों में रहने से लेकर IAS बनने तक B Abdul Nasar की प्रेरणादायक कहानी
Exclusive Interview: अनाथालयों में रहने से लेकर IAS बनने तक B Abdul Nasar की प्रेरणादायक कहानी

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

एक पुस्तक विक्रेता गोपाल जी ने मुझे अपनी दुकान पर मुफ्त में किताबें पढ़ने की अनुमति दी. बचपन में सभी धर्मों की किताबें पढ़ना पसंद था जिनसे मुझे शिक्षा मिली कि एक बार अगर ठान लो तो हर काम मुमकिन है. सीएस कोचिंग में मेरे कई दोस्त हिंदू थे जिन्होंने मुझे काफी प्रोत्साहित किया: आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी

हर साल यूपीएससी परिणाम की घोषणा के साथ, कई कहानियां सामने आती हैं जो न केवल परीक्षा में बैठने के दौरान उम्मीदवारों के वास्तविक संघर्ष को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती चरण में क्या अनुभव किया था. यह केरल कैडर के एक आईएएस अधिकारी की कहानी है जो पांच साल की उम्र में अनाथ हो गए थे, उन्होंने कई साल अनाथालय में बिताए और अब केरल सरकार के राजस्व विभाग के अतिरिक्त सचिव हैं. 
 
केरल के थालास्सेरी के मूल निवासी बय्यिल अब्दुल नासर (B Abdul Nasar) केवल पांच वर्ष के थे, जब उनके पिता का निधन हो गया और उनकी मां के लिए अपने छह बच्चों की जिम्मेदारी उठाना काफी असंभव हो गया. लेकिन वह हमेशा अपने बच्चों को उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा देना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने परिवार का बुनियादी खर्च वहन करने के लिए विभिन्न घरों में काम करना शुरू कर दिया.
 
 
एकल माता-पिता होने के नाते, मनहुम्मा (उनकी मां) के लिए छह बच्चों को खिलाने की जिम्मेदारी काफी कठिन हो रही थी, इसलिए रिश्तेदारों से परामर्श करने के बाद, उन्होंने अपने सबसे छोटे अब्दुल को थालास्सेरी में दारुस्सलाम नामक एक स्थानीय अनाथालय में भेजने का फैसला किया.
 
 
थालास्सेरी में दारुस्सलाम अनाथालय (फोटो सौजन्य: darussalamacademy.weebly.com)

आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी ने आवाज द वॉयस को बताया कि अमिताभ कांत वर्तमान में भारत के G20 शेरपा हैं जो आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी के रोल मॉडल बनें. जब नासर उच्च प्राथमिक अनाथालय संचालित विद्यालय में पढ़ रहे थे, तब नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, जो उस समय उप-कलेक्टर के रूप में तैनात थे, ने अनाथालय का दौरा किया. इतने युवा आईएएस अधिकारी को देखकर नासर एक दिन जिला कलेक्टर बनने का सपना देखने लगे. इनसे आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी की पहली मुलाकात थालास्सेरी अनाथालय में हुई थी जब वे महज 11 वर्ष के थे.
 
 
केरल में जिला कलेक्टर के रूप में कार्य करते हुए अमिताभ कांत (फोटो सौजन्य: सोशल मीडिया)

शुरुआत में उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कई बार अपनी मां और भाई-बहनों की याद आती थी लेकिन धीरे-धीरे वे उस माहौल में ढल गए और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया. कुछ वर्षों के बाद, उन्होंने अपनी एसएसएलसी (कक्षा 10) पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें एक अन्य प्रतिष्ठित अनाथालय में स्थानांतरित कर दिया गया. त्रिशूर के वतनपल्ली अनाथालय में शिफ्ट होने के बाद उन्होंने 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की.
 
अपनी स्कूली पढ़ाई ख़त्म करने के तुरंत बाद, उन्होंने बैंगलोर में हेल्थ इंस्पेक्टर डिप्लोमा के नौकरी-उन्मुख पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया, क्योंकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें परिवार के बोझ का सामना करना पड़ रहा था. हालाँकि, उसके बाद, वह अंग्रेजी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के लिए अपने मूल स्थान पर वापस चले गए.
 
अंग्रेजी साहित्य में बीए की पढ़ाई के दौरान भी, उन्होंने छात्रों को ट्यूशन देकर, टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम करके और यहां तक ​​कि समाचार पत्र वितरित करके भी कमाई जारी रखी.
 
1994 में, नासर को उनकी पहली सरकारी नौकरी केरल स्वास्थ्य विभाग में स्वास्थ्य निरीक्षक के रूप में मिली. स्वास्थ्य विभाग में एक वर्ष की सेवा के बाद, वह उच्च प्राथमिक शिक्षक के रूप में काम करने के लिए अपने मूल स्थान पर वापस चले गए, लेकिन जल्द ही वह पिछली नौकरी में लौट आए.
 
कलेक्टर बनने का लक्ष्य रखते हुए, उन्होंने केरल राज्य सिविल सेवा कार्यकारी (डिप्टी कलेक्टर) पद के लिए आवेदन किया और स्वास्थ्य निरीक्षक के रूप में काम करते हुए इसके लिए तैयारी शुरू कर दी. हालाँकि, उन्होंने सेवाओं से छुट्टी ले ली क्योंकि उनकी पत्नी एमके रुक्साना उनके समर्थन में आ गईं. स्कूल टीचर के पद पर कार्यरत होने के कारण रुकसाना ने परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी ली.
 
नासर राज्य स्तरीय सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के लिए अत्यधिक समर्पित थे और तैयारी के लिए विभिन्न स्थानों पर गए. वह 2002 में प्रारंभिक परीक्षा और 2004 में मुख्य परीक्षा में बैठे. वह उन कुछ उम्मीदवारों में से थे जिन्हें साक्षात्कार दौर के लिए बुलाया गया था और 2006 में, उन्हें केरल राज्य सिविल सेवा के लिए चुना गया और डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया.
 
 
आईएएस अधिकारी बी अब्दुल नासर (फोटो सौजन्य: सोशल मीडिया)

आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी ने आवाज द वॉयस को बताया कि इस  दौरान 2012 में मेरी अम्मी का निधन हो गया और इसके बाद मेरी पत्नी और बाकी सब ने मुझे आगे पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया. उनका सपना एक आईएएस अधिकारी बनने का था और सपने को जीतने की दिशा में पहला कदम पहले ही पूरा हो चुका था. उन्हें वर्ष 2015 के लिए 'केरल में सर्वश्रेष्ठ डिप्टी कलेक्टर' नामित किया गया था.
 
यह अक्टूबर 2017 में था, जब कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने अब्दुल नासर को आईएएस अधिकारी के पद पर पदोन्नत करने के संबंध में एक आदेश जारी किया था.
 
जुलाई 2019 में केरल के कोल्लम के जिला कलेक्टर के रूप में नियुक्त होने से पहले उन्होंने केरल सरकार में आवास आयुक्त के रूप में काम किया. आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी ने आवाज द वॉयस को बताया कि "यह मेरे लिए बड़ा ही खास और यादगार दिन था जब 1 जुलाई 1975 में मेरे पिताजी का देहांत हुआ और 1 जुलाई 2019 को कोल्लम के जिला कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया."
 
नासर की कड़ी मेहनत और समर्पण की कई लोगों ने सराहना की है, और एक अनाथालय में 13 साल तक रहने के बाद आईएएस अधिकारी बनने की उनकी कहानी की कई युवा सिविल सेवा उम्मीदवारों द्वारा प्रशंसा की गई है.
 
आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी का मुख्य शौक खेल देखना, यात्रा करना और सोशल मीडिया में शामिल होना हैं. उनके फेसबुक पर 11 हजार फॉलोवर्स हैं. इस तरह अब्दुल नासर ने अपनी मेहनत के बल पर अनाथालय से आईएएस तक का सफर तय कर लिया है.
 
 
आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी फेसबुक पेज 

आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी ने आवाज द वॉयस को बताया कि "मैं जल्द ही अपनी आत्मकथा प्रकाशित करने वाला हूं." नासर की कड़ी मेहनत और समर्पण की चर्चा हो रही है वहीँ कई युवा भी उनसे प्रेरणा ले रहें हैं जो एक अनाथालय में 13 साल तक रहने के बाद यह सफलता हासिल की.
 
 
आईएएस अधिकारी अब्दुल नासर बी ने आवाज द वॉयस को बताया कि अपनी सफलता का श्रेय मैं अपनी माताजी को देता हूँ जिन्होनें मेरी शिक्षा के लिए न जाने क्या-क्या किया, बेशक वो पड़ोसियों के घर का काम हो या घर में ही छोटा काम करना हों, जिसमें मेरे भाईयों और बहनों ने भी योगदान दिया. आज मेरा बड़ा भाई सरकारी नौकरी से रिटायर हो चूका है वो म्युनिसिपल में सुपरवाइजर थें. और भावुक होते हुए उन्होनें कहा कि मुझे इस बात बात का खेद हमेशा रहेगा कि मेरे माता पिता मुझे इस मुकाम पर अपनी नजरों से से नहीं देश सकें लेकिन आज भी उनका शिरवाद मेरे साथ है.