मानवता की मिसाल: मोहम्मद मसरूर आलम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 05-02-2024
Example of humanity: Mohammad Masroor Alam
Example of humanity: Mohammad Masroor Alam

 

रीता फरहद मुकंद 
 
राम की कहानी को इस्लामी दुनिया के साथ साझा करने के लिए मुसलमानों ने रामायण का फ़ारसी में अनुवाद करना हो या गणपति विसर्जन के दौरान नमाज के बाद गणपति का स्वागत टोपी पहनाकर करना हो, ये सभी एकता की मिसाल पेश करती हुईं भारत की समावेशी संस्कृति को दर्शाती हुई तस्वीरें हैं. भारत में हिंदू और मुस्लिम न केवल सांप्रदायिक सद्भाव के साथ रहते हैं, बल्कि संकट के समय में एक-दूसरे की मदद के लिए आगे भी आते हैं.

पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में रहने वाले मोहम्मद मसरूर आलम का जीवन धर्म, जाति और अन्य बाधाओं से परे सांप्रदायिक एकता को मजबूत करने का आधुनिक प्रतीक है. वह अब अखिल भारतीय रज़ा समिति के अध्यक्ष हैं, जो भारत के महाराष्ट्र में स्थित एक सुन्नी मुस्लिम इस्लामवादी समूह है, जिसका गठन 1978 में अल्हाज मोहम्मद सईद नूरी द्वारा किया गया था. वह भारत के सभी हिस्सों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और कई अन्य राज्यों में लोगों की मदद करने के लिए पहुंचे हैं.
 
 
मोहम्मद मसरूर आलम 2001 में गुजरात में थे, जब 26 जनवरी को सुबह 08:46 बजे भयानक भुज भूकंप ने राज्य को हिलाकर रख दिया, जिसमें लगभग 20,023 लोग मारे गए और लगभग 167,000 लोग घायल हो गए, जबकि लगभग 340,000 इमारतें मलबे में गिर गईं उस वक़्त मोहम्मद मसरूर आलम मलबे से तबाह हुए लोगों की मदद के लिए लोगों की एक टीम में शामिल हो गए. आपदा के शिकार हुए विभिन्न समुदायों के लोग अस्थायी तंबू में रह रहे थे. उन सभी को मोहम्मद मसरूर आलम और टीम के अन्य सभी लोगों ने अपने प्रयासों से भोजन, बर्तन, कपड़े, कंबल और कई अन्य जरुरत की चीजें भी दीं.
 
मोहम्मद मसरूर आलम ने कहा जब हमने उनके लिए अच्छे काम किए तो हमें भी बेहतर और खुशी महसूस हुई.
 
मोहम्मद मसरूर आलम के मुताबिक जरूरतमंदों की मदद के लिए एक उचित गैर-सरकारी संगठन शुरू करने की इच्छा उनके दिल में उमड़-घुमड़ रही थी. उन्होंने कहा कि मैं जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहता था क्योंकि मैंने देखा कि उन्हें कई बार नज़रअंदाज कर दिया गया जाता था. मेरा यह भी मानना है कि हमें धर्म, जाति या नस्ल को देखे बिना सभी लोगों की समान रूप से मदद करनी चाहिए.
 
 
2007 में, मोहम्मद मसरूर आलम अखिल भारतीय रज़ा समिति के अध्यक्ष बने. उन्होंने 2007 में अप्रैल के दौरान अपने विशाल रक्तदान शिविर में 152 रक्तदान शिविर आयोजित किये.
 
किशनगंज जिले में आई बाढ़ के दौरान, मोहम्मद मसरूर आलम और उनकी टीम 26 गांवों तक पहुंची और उन्हें गर्म खिचड़ी परोसी और साथ ही उन्हें दाल, चावल, नमक, गेहूं का आटा, चीनी, चाय पत्ती और अन्य वस्तुएं भी दीं.  
 
यह जल-जमाव वाले क्षेत्रों से होकर गुजरने वाला एक कठिन परिश्रम था, जिसमें सभी समुदायों की सेवा करने के लिए एक बार में किसी को भी बहा ले जाने का खतरा था. 
 
मोहम्मद मसरूर आलम अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे और पीड़ितों ने कृतज्ञतापूर्वक उन्हें अच्छी ख़बर का दूत कहा. वहीँ इस्लामपुर क्षेत्र में गैस सिलेंडर विस्फोट के दौरान, जहां 37 परिवार जल गए थे और दो लोग जीने के लिए संघर्ष कर रहे थे, मसरूर आलम और उनकी टीम ने उन्हें हर संभव मदद दी और उस कठिन समय के दौरान उनकी आवश्यकताएं प्रदान कीं.
 
मोहम्मद मसरूर आलम ने लोगों को उनके राशन कार्ड प्राप्त करने में मदद की और ठंड के मौसम में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को गर्म कंबल और भोजन दिया. कभी-कभी, किसी गांव में सूखी टहनियों या किसी दुर्घटना के कारण अचानक आग लग जाती थी और टीम भोजन, प्लेट, बर्तन, गिलास और यहां तक कि प्रेशर कुकर के साथ मदद करने के लिए उन क्षेत्रों में पहुंच जाती थी क्योंकि कुछ परिवारों के पूरे घर जलकर राख हो जाते थे.
 
COVID-19 महामारी के दौरान भारत में खाद्य असुरक्षा को बढ़ा दिया था, जिससे व्यापक ग्रामीण क्षेत्रों और कुछ शहरी क्षेत्रों में भूख का संकट पैदा हो गया था, जिससे नौकरी छूट गई और आय कम हो गई. 
 
कोरोनोवायरस से संबंधित मौतों पर नज़र रखने वाले कार्यकर्ताओं ने बताया कि भुखमरी, थकावट और दुर्घटनाओं के कारण 300 से अधिक व्यक्तियों की जान चली गई है. इस दौरान मसरूर आलम और टीम ने गांव में लोगों से मुलाकात की और उन्हें घर के अंदर रहने की सलाह दी, उन्हें मास्क लगाना और स्वच्छता के बारे में सिखाया और 8000 से अधिक परिवारों को भोजन दिया, जिनमें ज्यादातर मजदूर और ट्रक चालक थे.
 
 
2014 में मोहम्मद मसरूर आलम ने दस गरीब मुस्लिम लड़कियों की सामूहिक शादी में मदद की और 2015 में, उन्होंने छह लड़कियों की मदद की, जो उनके माता-पिता के लिए एक बड़ी वित्तीय राहत थी.
 
मोहम्मद मसरूर आलम पांच भाइयों में से एक हैं और उनकी एक बहन है. बचपन से ही वह दूसरों की पीड़ा के बारे में गहराई से चिंतित रहते थे और हमेशा दूसरों की मदद के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्य करना चाहते थे.
 
जब उन्होंने कंप्यूटर में करियर बनाने का लक्ष्य शुरू किया, तो गुजरात में भुज भूकंप के बाद, उनका जीवन एक नई दिशा में चला गया और उन्होंने संकट के समय में सभी समुदायों के सभी लोगों को दाल, चावल, आटा, चाय की पत्ती, चीनी और ऐसी कई खाद्य वस्तुएं अकाल और भूकंप के दौरान देने में मदद करना शुरू कर दिया था और इस बात में कोई शक नहीं कि आज भी वे इस मदद को कायम रखते हुए मानवता का फर्ज अदा कर रहें हैं.