आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव और भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एसएम खान का रविवार को संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया. 67 वर्षीय खान पिछले कुछ समय से बीमार थे और एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. उनके परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं.
एसएम खान का अंतिम संस्कार सोमवार को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के उनके पैतृक कस्बे खुर्जा में किया जाएगा. उनकी मृत्यु के साथ भारतीय सूचना सेवा और जनसंपर्क के क्षेत्र में एक ऐसे युग का अंत हुआ, जिसने निष्ठा और समर्पण की मिसाल कायम की.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
15 जून 1957 को उत्तर प्रदेश के खुर्जा कस्बे में जन्मे एसएम खान ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से उच्च शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स से पढ़ाई की. भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) में उन्होंने 1982 में कदम रखा, जिसके बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई.
कैरियर की शुरुआत और सीबीआई में योगदान
एसएम खान ने अपने करियर की शुरुआत सूचना सेवा के माध्यम से की. उन्हें 1989 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के प्रवक्ता का पद सौंपा गया. 2002 तक, वह सीबीआई में सबसे लंबे समय तक कार्यरत प्रवक्ता रहे.इस दौरान, उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों को संभाला, जिनमें शामिल थे:
हर्षद मेहता वित्तीय घोटाला
बोफोर्स घोटाला
राजीव गांधी हत्याकांड
अन्य सफेदपोश अपराध
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में वह सीबीआई का चेहरा बने. उनके कार्यकाल में, सीबीआई की छवि को मजबूत बनाने में उनकी भूमिका को विशेष रूप से सराहा गया.
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम
2002 से 2007 तक, एसएम खान ने राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव के रूप में कार्य किया. इस भूमिका में उन्होंने मीडिया और जनसंपर्क के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्टता को साबित किया.उन्होंने राष्ट्रपति पद के आधिकारिक प्रवक्ता के रूप में कार्य किया.राष्ट्रपति की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय यात्राओं में साथ रहे.
डॉ. कलाम के साथ काम करने के अनुभवों को उन्होंने अपनी पुस्तक "अवामी सदर" में दर्ज किया.यह पुस्तक डॉ. कलाम के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान और बाद के उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करती है.
दूरदर्शन और जनसंपर्क में भूमिका
राष्ट्रपति भवन से विदाई के बाद, एसएम खान ने दूरदर्शन के महानिदेशक (समाचार) का पद संभाला. यहां उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सूचना प्रसार में नई ऊंचाइयों को छुआ.वह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और दादा साहब फाल्के पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित आयोजनों के लिए जिम्मेदार रहे.
उन्होंने भारत सरकार के फिल्म महोत्सव निदेशालय (डीएफएफ) के निदेशक के रूप में कार्य किया और कान्स व बर्लिन फिल्म महोत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व किया.सूचना और प्रसारण मंत्रालय में रहते हुए उन्होंने "प्रेस इन इंडिया" की शुरुआत की.
सामाजिक योगदान और नेतृत्व
एसएम खान को 2014 में इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर का ट्रस्टी और 2019 में उपाध्यक्ष चुना गया. उन्होंने इस संस्थान के माध्यम से देश में आपसी सद्भाव और समझ बढ़ाने के लिए काम किया.अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के प्रति उनका गहरा जुड़ाव था. वह एएमयू कोर्ट के सदस्य रहे और राष्ट्रपति द्वारा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के लिए नामित किए गए.
पुस्तक लेखन और अन्य उपलब्धियां
एसएम खान ने अपने जीवन और अनुभवों को साझा करने के लिए पुस्तक "अवामी सदर" लिखी. इस पुस्तक को 2017 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लॉन्च किया. इसकी पहली प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट की गई.
एक प्रेरणादायक विरासत
एसएम खान का जीवन समर्पण, निष्ठा, और प्रेरणा का प्रतीक था. उन्होंने सूचना सेवा और जनसंपर्क के क्षेत्र में बेमिसाल योगदान दिया.उनकी मृत्यु से भारतीय सूचना सेवा और जनसंपर्क के क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति हुई है. उनका जीवन और उनकी विरासत हमेशा नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी.