मंजीत ठाकुर
एपीजे अब्दुल कलाम को कौन नहीं जानता! इधर, भगवान स्वामीनारायण के पांचवे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रमुख स्वामीजी महाराज बेहद महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी गुरुओं में से एक रहे हैं.भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ उनकी मुलाकात गहरी दोस्ती में बदल गई और दोस्ती के जरिए अध्यात्म और विज्ञान की एक अद्भुत संगम धारा निकली.
प्रमुख स्वामीजी के साथ अपने बिताए वक्त को डॉ. कलाम ने एक किताब की शक्ल दी थी और इसमें उन्होंने बहुत सारे विचार व्यक्त किए थे और उसमें आध्यात्मिकता की धारा बहती दिखती है.
डॉ. कलाम का मिसाइलमैन वाला स्वरूप तो पूरे देश ने देखा है लेकिन उनके अंतर्मन का आध्यात्मिक रंग इस किताब आरोहण (मूल अंग्रेजी में ट्रांससेंडेंस) में दिखता है. इस किताब में डॉ. कलाम ने प्रमुख स्वामीजी के सान्निध्य में शुरू हुई अपनी अंतर्यात्रा के बारे में लिखते हुए विज्ञान, दर्शन, नेतृत्व और अध्यात्म का एक खूबसूरत मिश्रण पेश किया है.
इस किताब में डॉ. कलाम ने राजनीति, तकनीक, समाज और अंतरराष्ट्रीय हलचलों में जीवन दर्शन देखने की कोशिश कीहै.
इस किताब आरोहण में कलाम लिखते हैं, “दस साल के एक लड़के के तौर पर, मुझे याद आता है कि तीन अलग किस्म की शख्सियतें वक्त-वक्त पर हमारे घर पर आया करती थीं वैदिक विद्वान और प्रसिद्ध रामेश्वरम् मन्दिर के मुख्य पुजारी पक्षी लक्ष्मणा शास्त्रीगल, रेवरेण्ड फादर बोदल, जिन्होंने रामेश्वर द्वीप पर पहले चर्च की स्थापना की थी और मेरे पिता, जो एक मस्जिद के इमाम थे.
यह तीनों हमारे सहन में बैठते, हाथों में चाय का कप लिये, और तीनों हमारे समाज की समस्याओं पर चर्चा करके उसका हल निकाला करते.” कलाम लिखते हैं, “भारत में हज़ारों साल से विभिन्न विचारों को एकरूप करने और एकराय तक पहुँचने की स्वस्थ प्रवृत्ति रही है.
ऐसे में, स्वतः ही मुझे महसूस होने लगा था कि मेरे गाँव में इस तरह की अन्तर- धार्मिक बैठकें काफी अनुकरणीय हैं. क्योंकि अब, पूरे देश में और बाकी की दुनिया में भी, संस्कृतियों, धर्मों और सभ्यताओं के बीच ऐसी स्पष्ट और मिलनसारिता भरी बातचीत पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हैं.”
वैज्ञानिक डॉ. ब्रह्म प्रकाश के साथ का जिक्र करते हुए कलाम लिखते हैं, “उन्होंने मुझे सिखाया कि टीम बनाने और व्यक्ति की क्षमता से परे काम को पूरा करने के वास्ते किस तरह दूसरों के विचारों और नज़रियों के प्रति सहिष्णुता जरूरी है.
उन्होंने मुझे सिखाया कि जीवन एक अनमोल उपहार है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारियाँ भी आती हैं. उस उपहार के साथ, हमसे उम्मीद की जाती है कि हम अपनी प्रतिभा का उपयोग दुनिया को बेहतर बनाने में करें, अपना जीवन नैतिक और सन्तुलित रूप से जियें, और आध्यात्मिक जीवन के लिए तैयार हों, जो अनन्त है.”
कलाम ने लिखा है कि डॉ. ब्रह्म प्रकाश ने दुनिया को देखने का मेरा नज़रिया बदल दिया. एक बार उन्होंने मुझसे कहा, 'कलाम, अगर तुम इस दुनिया को संकीर्ण और अभद्र मानकर देखोगे, तो यह तुम्हारी एकाग्रता में घुस जायेगा.
नकारात्मक सोच किसी सफ़र पर बीस बस्ते लेकर चलने जैसा है. यह असबाब तुम्हारे सफ़र को दूभर बना देगा, और तुम्हारा आगे बढ़ना धीमा हो जायेगा.. इस किताब के प्रस्तावना में डॉ. कलाम ने जैन मुनि आचार्य महाप्रज्ञ के साथ मुलाकात का जिक्र किया है.
वह लिखते हैं कि उन्होंने मुझे सिखाया कि हमारी चेतना ही हमारी नैतिकता की जन्मभूमि है. उन्होंने कहा, 'हम तभी यह जान पाते हैं कि कोई चीज़ सही है, जब हमारी चेतना स्पष्ट हो. हमारी चेतना ही हमारी असली मित्र है.
हमने साथ में द फैमिली एण्ड नेशन लिखी और अपनी चेतना को सुनने के दो कदम उठाये-आत्मचेतन होने के लिए. ताकि हम अपनी चेतना से जुड़ सकें, और वह कर सकें जो हमारी चेतना कहती है.
मैं अपने वास्तविक गुरु प्रमुख स्वामीजी से अनजाने में ही मिला था. शायद मेरी जिज्ञासा और किस्मत ही मुझे उन तक ले गयी थी. इससे पहले भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर मैंने भूकम्प के बाद पुनर्वास के काम की समीक्षा के लिए भुज का दौरा किया था.
वहीं, 15 मार्च 2001 को मैं साधु ब्रह्मविहारी दास से मिला, जो प्रमुख स्वामीजी के शिष्य थे. उन्होंने मुझसे एक चौंकाने वाला प्रश्न पूछा, जिस पर एक आध्यात्मिक प्रतिक्रिया चाहिए थी.
उन्होंने पूछा : 'पहले परमाणु बम को डेटोनेट करने के बाद रॉबर्ट ओपनहाइमर ने गीता को याद किया था : “मैं ही विश्व का विध्वंसक हूँ." आपके मन में क्या आया जब आपने भारत के लिए पहला परमाणु बम बनाया?"
कलाम ने लिखा है, “मैं इस सवाल से अचम्भित रह गया, और मैंने कहा, 'ईश्वर की शक्ति विध्वंस नहीं करती, सृजन करती है, तोड़जी नहीं जोड़ती है.' इस पर उन्होंने उत्तर दिया, 'हमारे आध्यात्मिक गुरू, प्रमुख स्वामी महाराज, एक महान एकसूत्र करने वाले हैं. उन्होंने हमारी ऊर्जा को ध्वंस के मलबे में से जीवन निकालने में और उसे पुनर्जीवित करने में एकीकृत कर दिया है.'”
कलाम की इस किताब से आप उनकी जीवन दृष्टि को अधिक निकट से जान सकते हैं. वह लिखते हैं, “समरसतापूर्ण विश्व एक असम्भव यूटोपियन विचार लग सकता है. लेकिन पारलौकिक मार्गदर्शन से, और हर जीव की एकता को मानकर और प्रमुख स्वामीजी जैसे पथप्रदर्शक महात्माओं की मदद से इस असम्भव को भी हासिल किया जा सकता है.
एक समरसतापूर्ण विश्व, समरसतापूर्ण अन्तर्मन से ही शुरू होता है—यह एक अपरिहार्य आध्यात्मिक तथ्य है. अपनी आध्यात्मिकता को प्रज्ज्वलित करने के लिए, हमें अन्दर झाँकना होगा और अपने अहं को काबू में करना होगा. हमें अपने अन्दर की आत्मा की चिरन्तरता को पहचानने और उससे जुड़ने की जरूरत है.”