क्या आपको पता है कि भोजपुरी का सबसे हिट गाना कौन-सा है? क्या आप जानते हैं भिखारी ठाकुर का जन्म कहां हुआ

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-10-2023
Do you know which is the most hit song of Bhojpuri? Do you know where Bhikhari Thakur was born?
Do you know which is the most hit song of Bhojpuri? Do you know where Bhikhari Thakur was born?

 

राजीव कुमार सिंह

आज भोजपुरी फिल्म और संगीत इंडस्ट्री का काफी विस्तार हो चुका है. इस इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों और गायकों को फैंस का खूब प्यार मिलता है. भोजपुरी सिंगर्स और गानों के बारे में बात करें तो फेहरिस्त काफी बड़ी हो जाएगी. भरत शर्मा व्यास, मनोज तिवारी, कल्पना पोटवारी और देवी, इनके गाने तो आज भी काफी सुने और सराहे जाते हैं. 

आज के दौर में खेसारी लाल से लेकर पवन सिंह तक के गानों ने यूट्यूब पर व्यूज के रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं.लेकिन इनके गीतों से ऐसा लगता है कि भोजपुरी एक अश्लील भाषा है जिसे लहंगा और ढोंड़ी जैसे अश्लील शब्दों काफी लगाव है. 
 
लेकिन तभी हमें जरूरी तौर पर जानना चाहिए कि भोजपुरी भाषा में एक ऐसे कलाकार भी हुए हैं जिनको 'शेक्सपियर ऑफ भोजपुरी' कहा जाता है. इनका नाम है भिखारी ठाकुर, जिनके गाने सुने तो तन-मन को झकझोर देते हैं. 
 
अगर आप बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी इलाकों में जाएं तो शादी में आज भी सबसे ज्यादा बजने वाला गाना है-
 
चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे.  
मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे. 
करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर. 
करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर, 
अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ.
अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर ढर, 
बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ.

प्यार और विलाप के बारे में मशहूर गीत
हाय हाय राजा कैसे कटिये सारी रतिया
जबले ग‍इले राजा सुधियो ना लिहले, 
लिखिया ना भेजे पतिया. हाय हाय

भिखारी ठाकुर के और भी बहुत सारे मनभावन गीत हैं. अगर मौजूदा अराजकता को छोड़ दें तो भोजपुरी संगीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक सुगम संगीत का रूप है और इसमें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की विशिष्ट शैली में भोजपुरी भाषा के प्रदर्शनों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है.
 
संगीत का यह रूप ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश में और अन्य देशों जैसे नेपाल, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, गुयाना, नीदरलैंड्स, मॉरीशस और अन्य कैरेबियाई द्वीपों में बनाया, गाया और सुना जाता है.
 
हालांकि, भोजपुरी संगीत की उत्पत्ति को लेकर स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं है. आज के भोजपुरी संगीत गीत का सबसे प्रारंभिक रूप निर्गुण है जिसका संबंध कबीर से है. पहले छठ या शादी-ब्याह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर लोग ये लोकगीत गाते थे.
 
जब भोजपुरी क्षेत्र के लोगों को ब्रिटिश उपनिवेशों में बागान श्रमिकों के रूप में ले जाया गया, तो भोजपुरी संगीत का वैश्वीकरण हुआ और इसने मॉरीशस, नीदरलैंड्स और कैरेबियाई द्वीपों जैसे देशों में अपना दायरा बढ़ाया. 
 
यह उन देशों के लोक या आधुनिक संगीत रूप के साथ भी मिश्रित हुआ और इससे भोजपुरी संगीत के एक अलग रूप का जन्म हुआ जैसे सूरीनाम में बैठक गाना, त्रिनिदाद और टोबैगो में चटनी संगीत और मॉरीशस में गीत गवई.
 
भोजपुरी क्षेत्र में विभिन्न जातियों के अपने-अपने लोकगीत हैं. जैसे बिरहा अहीर या यादवों के गीत हैं, पचरा गीत दुसाध समुदाय के, कहरवा कहारों के हैं. भोजपुरी का पारंपरिक संगीत या तो विशेष अवसरों जैसे शादियों, बच्चे के जन्म, त्योहारों या विक्रम संवत के हर महीने में गाया जाता है.
 
भोजपुरी संगीत और इसके गीत जैसे विवाह संस्कार गीत,होरी/फगुआ गीत, पुरबी, धोबी गीत, निर्गुण, बिरहा, चैता, झूमर, सोहर, ठुमरी, दादरा, निर्बानी और कजरी हैं. जो सुनने में बहुत ही मीठी और सुरीली लगती हैं. इनके बोल और रस अगर आपके कानों तक पड़े तो शायद आपको बहुत ही मनोहर, जमीनी और अपनापन जैसा लगेगा. 
 
बिरहा: बिरहा शब्द संस्कृत के विरह शब्द से बना है जिसका अर्थ है अलगाव. बिरहा एक लंबी कथा है जिसे मधुर अंशों की एक श्रृंखला में गाया जाता है.
 
कजरी : कजरी मानसून के मौसम में या सावन के महीने में गाई जाती है. 
 
निर्बानी: ये गीत दलित (हरिजन) महिलाओं द्वारा विवाह के अवसर पर गाए जाते हैं. 
 
सोहर: यह गीत बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है. 
 
कहां जन्म हुआ था भिखारी ठाकुर का ?

अब सवाल है कि भिखारी ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?भिखारी ठाकुर को भोजपुरी संगीत, गीत, कविता, नाच का जनक कहा जाता है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर (दियारा) गांव में दलसिंगार ठाकुर और शिवकली देवी के घर, एक नाई परिवार में हुआ था. 
 
भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया.वे जीविकोपार्जन के लिये गांव छोड़कर खड़गपुर चले गए. वहां उन्होंने काफी पैसा कमाया लेकिन वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे. नतीजा यह हुआ कि वह कलकत्ता और फिर जगन्नाथ पुरी चले गये. 
 
वापस अपने गांव आकर उन्होंने एक नृत्य मण्डली बनायी और रामलीला खेलने लगे. रामलीला में उनका मन बसता था. वह अपनी मंडली के लिए गाना लिखते, गाते एवं सामाजिक कार्यों से भी जुड़े, और अपने नाटकों द्वारा उन्होंने समाज में फैली सामाजिक बुराई, असमानता, और कुण्ठता को लोगों के बीच रंगमंच के जरिए दिखाने लगे. 
 
इसके साथ ही उन्होंने किताबें लिखनी भी शुरू कर दी. उनकी पुस्तकों की भाषा बहुत सरल थी जिससे लोग बहुत आकृष्ट हुए. उनकी लिखी किताबें वाराणसी, हावड़ा एवं छपरा से प्रकाशित हुईं.
उनके नाटक घूमते-घूमते गांवों और ग्रामीण समाज के चारों ओर विकसित हुए.
 
जहां प्रवासी मजदूरों और गरीब श्रमिक अपनी आजीविका की खोज में गए जैसे दिल्ली, कोलकाता, पटना, बनारस और अन्य छोटे-बड़े  शहरों शहरों में बहुत प्रसिद्ध हो गए. अब तो वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली में भी उनकी रचनाएँ देखने को मिल जाती हैं. 
 
देश की सभी सीमाएं तोड़कर उन्होंने अपनी मंडली के साथ-साथ मॉरीशस, केन्या, सिंगापुर, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम, युगांडा, म्यांमार, मैडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, त्रिनिडाड और अन्य जगहों पर भी दौरा किया जहां भोजपुरी संस्कृति कम या ज्यादा समृद्ध है.
 
बिदेसिया

भिखारी ठाकुर की सबसे प्रसिद्ध रचना उनकी लोक नाटक बिदेसिया है. यह नाटक इतना मशहूर हुआ कि उनके नाटक की शैली का नाम ही बिदेसिया पड़ गया. बाद में कितने नाटक एक ही शैली में कितने लोगों द्वारा लिखी गई. और ये भारत से बाहर मॉरिशस जैसे भोजपुरी भाषी देश में भी पहुँच गया. 
 
मूल रूप से "बिदेसिया" एक ऐसे आदमी जो कलकत्ता कमाने गया (और बिदेसी हो गया ) की पत्नी धनिया के वियोग और एक बटोही से अपने पति के लौट आने के अरज करते सन्देश की कहानी है.
 
उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ 
 
बिदेसिया
(सइयां गइले कलकतवा ए सजनी
गोड़वा में जूता नइखे, हाथवा में छातावा ए सजनी,
सइयां कइसे चलिहें राहातावा ए सजनीं)
भाई-बिरोध
बेटि-बेचवा
कलयुग प्रेम
गबरघिचोर
गंगा असनान
बिधवा-बिलाप
पुत्रबध
ननद-भौजाई
बहरा बहार
कलियुग-प्रेम
राधेश्याम-बहार
बिरहा-बहार
नक़ल भांड व नेटुआ के नाच

10 जुलाई 1971 को 83 वर्ष के उम्र में भिखारी का निधन हो गया. मृत्यु के बाद उनकी थिएटर शैली की उपेक्षा हुई. समय के साथ यह एक नए रूप में आकार लिया है और उसकी 'लौंडा डांस' शैली काफी लोकप्रिय हो गई है. जो कि पहले बिहार में नटुआ नाच के नाम से प्रसिद्ध थी.
 
जिसमें एक पुरुष महिला जैसी वेशभूषा में महिलाओं के वस्त्र पहन कर नृत्य करता है. जैसे कि यह बिहार में कम आय और नीचे वर्ग के लोगों में अधिकांशतः सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य है.