मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली / पूर्वी चम्पारण
बिहार की राजधानी पटना से करीब 153 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोतिहारी जिला खुद के साथ बापू का नाम जुड़वाना पसंद करता हैं. आजादी के बाद से अब तक यहां की साक्षरता दर में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक पूर्वी चम्पारण जिले में महिलाओं की साक्षरता दर 40 प्रतिशत से भी कम है.
इसके बावजूद पूर्वी चम्पारण जिले से हर साल कई छात्र देश की सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी में कामयाबी हासिल कर रहे हैं, जिसमें बड़ी संख्या लड़कियों की है. हम आपको एक ऐसे ही जोड़ी से मिलवा रहे हैं, जिन्होंने कठिनाईयों के बाद भी हार नहीं मानी और यूपीएससी 2018 में अपनी मंजिल को पा लिया.
मोतिहारी शहर के रहने वाले गौहर हसन ने 137वां और इसी जिले के रामगढ़वा ब्लॉक के अधकपड़िया गांव की रहने वाली शफकत आमना ने 186 वीं रैंक हासिल की थी. इस समय ये जोड़ी महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ जिले में पुलिस की वर्दी में समाज और देश की सेवा कर रही है.
इन दोनों का यहां तक पहुंचने की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है और अन्य छात्रों के लिए उनका जीवन मार्गदर्शक है. खास तौर पर शफकत आमना का जीवन बहुत ही संघर्ष वाला रहा है.
शफकत आमना महिला शक्ति की मिसाल
शफकत आमना का घर जिले से करीब 40 किलोमीटर दूर अधकपड़िया गांव में हैं. इस गांव के बारे में मशहूर है कि एक वक्त था कि ये इलाका बंदूक की आवाज से हर रोज गूंजता था. यहां आज भी लड़कियों को बाहर तालीम के लिए भेजना गलत समझा जाता है.,
बहुत मुश्किल से इस गांव की लड़कियां ग्रेजुएशन कर पाती हैं और कई लड़कियों की शादी मैट्रिक के बाद ही कर दी जाती हैं. ऐसे में शफकत आमना महिला शक्ति की जिंदा मिसाल हैं. शफकत के पिता जफीर आलम एक सरकारी सेवानिवृत्त शिक्षक हैं.
शफकत आमना इस बारे में आवाद-द वॉयस से बात करते हुए कहती हैं कि ‘‘मेरी शुरुआती शिक्षा जवाहर नवोदय स्कूल, बेतिया में हुई, उसके बाद डीपीएस बोकारो से इंटर पास किया. मोतिहारी शहर में स्थित उमंग पांडेय कॉलेज से ज्योग्राफी से ऑनर्स करने के बाद सिविल सर्विस की तैयारी के लिए 2016 में दिल्ली आ गईं.
जहां जामिया मिल्लिया इस्लामिया के रेजिडेंशियल कोचिंग में रहकर तैयारी की.’’ और इस तरह शफकत आमना ने तीसरी बार की कोशिश में यूपीएससी में कामयाब हो गईं.
पिता से मिली प्रेरणा
शफकत आमना के पिता सेवानिवृत्त शिक्षक हैं और उन्होंने बीपीएससी की परीक्षा भी दी है. शफकत बताती हैं कि ‘‘मुझे पिता से प्रेरणा मिली हैं. कामयाबी के लिए संघर्ष और ईमानदारी से पढ़ाई जरूरी है. जब मुझे पहली और दूसरी बार कामयाबी नहीं मिली, तो मैं मायूस नहीं हुई, बल्कि कमियों की निशानदेही करके कोशिश की और कामयाब हुईं.’’
कन्या शिक्षा की जागरूकता बढ़ी
गांव के स्कूल के बारे में शफकत बताती हैं कि हमारे यहां जो हालत सरकारी स्कूलों के हैं, वही हालत देश के गांव के सभी सरकारी स्कूलों की है. वहां अच्छी पढ़ाई नहीं होती हैं.
समाज लड़कियों को पढ़ाने को लेकर जागरूक नहीं हैं लेकिन लड़कियां खुद उच्च शिक्षा के लिए आगे आ रही हैं. मैं जिस गांव से हूं, वहां के लोग अब बच्चों को पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं और शहरों में भेज रहे हैं. जो आने वाले समय में सामाजिक बदलाव की बड़ी पहल हैं.
यूपीएससी के लिए गौहर ने छोड़ी नौकरी
गौहर के पिता जमील अहमद मोतिहारी इंजीनियरिंग कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं. उनके दादा सैयद अहमद हसन भागलपुर विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष थे. गौहर हसन की शुरुआती शिक्षा समस्तीपुर पूसा से हुई, जहां उनके चाचा नौकरी करते थे. मैट्रिक की परीक्षा साल 2005 में पास किया.
उसके बाद यूपीएससी बनने के ख्वाब को पूरा करने के लिए दिल्ली पहुंचे और यहां से उन्होंने कंप्यूटर में डिप्लोमा किया. जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इंजीनियरिंग करने के बाद नोएडा स्थित एक कंपनी में नौकरी भी की. कुछ दिनों के बाद यूपीएससी के सपने को पूरा करने के लिए गौहर हसन ने नौकरी छोड़ दी.
पांचवी बार में मिली कामयाबी
आपको किस चीज ने यूपीएससी में आने के लिए प्रभावित किया? इस सवाल के बारे में गौहर हसन ने बताया कि ‘‘मैं जॉब कर रहा था. कुछ खास लोगों से मुलाकात होती थी. ख्याल आया कि आम लोगों के बीच पहुंच कर काम किया जाए.
बुनियादी समस्याओं पर काम किया जाए.’’ वह आगे कहते हैं कि ‘‘मैंने यूपीएससी के लिए साल 2014 में पहली बार परीक्षा दी. इसके बाद लगातार चार बार यूपीएससी की परीक्षा दी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. मगर 2018 में पांचवी कोशिश में यूपीएससी क्वालीफाई कर लिया.’’
आमिर सुबहानी से घर वाले प्रभावित
1987 में यूपीएससी के टॉपर रहे आमिर सुबहानी के हवाले से गौहर हसन ने बताया कि उनके पिता बिहार के मौजूदा मुख्य सचिव आमिर सुबहानी से प्रभावित हैं, जिसका प्रभाव उनके ऊपर भी पड़ा.
गौहर और शफकत बंधे शादी के बंधन में
यूपीएससी में कामयाबी हासिल करने के बाद दोनों के घर वालों ने आपसी रजामंदी से 2 फरवरी 2021 को गौहर हसन और शफकत आमना की शादी कर दी. ये शादी मोतिहारी शहर की जामा मस्जिद में सादगी के साथ हुई.
इस समय दोनों महाराष्ट्र में नांदेड़ जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर सेवा दे रहे हैं. गौहर हसन नांदेड़ ग्रामीण में हैं और शफकत आमना भी इसी जिले के एक उपविभाग में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर सेवा दे रही हैं.
छात्रों को सलाह
मैट्रिक और इंटरमीडिएट के छात्र अगर यूपीएससी में जाने की कोशिश करें, तो आप उन्हें क्या सुझाव देंगे? इस सवाल पर गौहर हसन कहते हैं कि जो छात्र अभी मैट्रिक या इंटर में हैं, उन्हें चाहिए कि वह उसी पर ध्यान दें.
जो छात्र ग्रेजुएशन पास कर चुके हैं, उन्हें चाहिए कि वह क्लास 6 से 12जी तक की किताबों को अच्छे से पढ़ें. पहले छात्र लेखनी और बोलने पर ध्यान दें, उसके बाद सिलेबस पर ध्यान दें. शफकत आमना भी गौहर हसन की इस बात से सहमत हैं और कहती हैं कि छात्रों को पहले मैट्रिक और इंटर की परीक्षा के बाद ग्रेजुएशन पर फोकस करना चाहिए
, उसके बाद ही यूपीएससी पर ध्यान देना चाहिए. वह आगे कहती हैं कि जो छात्र इस मैदान में आना चाहते हैं, तो उसके लिए जरुरी हैं कि वह सामान्य ज्ञान को पढ़े.
फैमिली का सपोर्ट मिला
गौहर हसन कहते हैं कि सिविल सेवा में अहम ये होता हैं कि आपकी फैमिली का कितना सहयोग मिलता है. अगर किसी के घर वाले सपोर्ट करते हैं, तो उससे छात्र को हौसला मिलता है. वह आगे कहते हैं कि कामयाबी को हासिल करने में सबको परेशानी होती हैं,
कुछ को जल्द कामयाबी मिल जाती हैं और कुछ को सब्र के साथ मेहनत करनी होती हैं. मेरे पीछे माता-पिता का सहयोग रहा है, जिसके कारण आज मैं यहां हूं. शिक्षक अविंद्र कुमार मेरे पिता के छात्र थे, उन्होंने मेरी शुरुआती शिक्षा के वक्त बहुत मदद की.
जामिया की कोचिंग से फायदा हुआ
शफकत और गौहर ने बताया कि उन्हें जामिया मिल्लिया इस्लामिया के आरसीए से काफी फायदा हुआ. शफकत आमना बताती हैं कि मैं जब दिल्ली पहुंची, तो एक साल आरसीए में क्लास की, जहां से बहुत फायदा हुआ. वहीं गौहर हसन बताते कहते हैं कि यूपीएससी तक पहुंचने में जामिया का बहुत योगदान है, यहां के कोचिंग संस्थान से उन्हें बहुत फायदा हुआ है.
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