बेदिल देहलवी: भारत के इस महान फारसी शायर को कंठस्थ थी महाभारत!

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-02-2025
Bedil Dehlvi tomb
Bedil Dehlvi tomb

 

सतीश कुमार शर्मा (आईपीएस)

यह दावा कि भारत के फारसी भाषी कवि बेदिल देहलवी (1642-1720) को संपूर्ण महाभारत कंठस्थ थी, यह सत्य हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन यह अवश्य सत्य है कि देहलवी ने अपने काव्य के 16 ग्रंथों में कुल 1,47,000 श्लोक लिखे, जो विश्व के सबसे बड़े, सबसे लंबे और सबसे प्राचीन काव्य के 1,00,000 से 1,40,000 श्लोकों से भी अधिक है. देहलवी ने अपनी आत्मकथा, चहार अंसार भी काव्यात्मक गद्य में लिखी, जिसे भारतीय-मुस्लिम साहित्य में सबसे कठिन पुस्तक माना जाता है.

बेदिल (जिसका अर्थ है प्यार में अपना दिल खो देने वाला), का जन्म मिर्जा अब्दुल कादिर के रूप में अजीमाबाद (वर्तमान पटना) में तुर्की मूल के चुगताई जनजाति के परिवार में हुआ था. उनकी मूल भाषा बंगाली थी, लेकिन वे उर्दू, संस्कृत, तुर्की, फारसी और अरबी भाषा में भी निपुण थे. उनके माता-पिता की मृत्यु जल्दी हो गई थी, इसलिए उनका पालन-पोषण उनके चाचा मिर्जा कलंदर ने किया, जो युवा अब्दुल कादिर को उस समय के प्रसिद्ध सूफियों से मिलवाने ले गए. उन्होंने उनके भीतर एक दीप जलाया और उन्हें कविता की ओर आकर्षित किया.

उन्होंने अपनी पहली कविता 10 वर्ष की आयु में लिखी थी. विविध प्रभावों के संपर्क में आने से देहलवी की सोच व्यापक हुई और वे अन्य विचारों के प्रति सहिष्णु हो गये. उन्होंने राजकुमार मुहम्मद आजम शाह (औरंगजेब के पुत्र) के अधीन मुगल सेना में सेवा की, लेकिन राजकुमार की प्रशंसा में कसीदा लिखने के लिए कहे जाने पर उन्होंने इसे छोड़ दिया, जो एक कवि के रूप में उन्हें अरुचिकर लगा. दूसरा संस्करण यह है कि वे इसलिए चले गए, क्योंकि जब राजकुमार को पता चला कि देहलवी एक कवि हैं, तो उन्होंने टिप्पणी की, ‘‘एक कवि सेना में क्या कर रहा है?’’

किसी भी तरह, नियमित नौकरी के बोझ से मुक्त होकर, बेदिल ने व्यापक रूप से यात्रा की, सभी धर्मों के जानकार व्यक्तियों से मुलाकात की और हिंदू और बौद्ध दर्शन और विचारों की गहराई में उतर गए. उन्होंने फारसी में लिखा, क्योंकि यह दरबार और अभिजात वर्ग की भाषा थी. (दिल्ली में उर्दू शायरी का पहला दौर बेदिल की मृत्यु के लगभग एक दशक बाद शुरू हुआ.) शुरुआत में, उन्होंने फारसी पौराणिक कथाओं की सरल शैली में कविता लिखी, लेकिन बाद में उन्होंने देशी भारतीय शैली की ओर रुख किया और भारतीय फारसी कविता स्कूल (सबक-ए-हिंदी) की शुरुआत की.

बेदिल एक चुनौतीपूर्ण कवि हैं, क्योंकि उन्होंने आध्यात्मिक और दार्शनिक विषयों पर लिखा तथा जटिल कल्पना और जटिल रूपकों का प्रयोग किया. उन्होंने स्वयं स्वीकार किया, ‘‘मेरे सूक्ष्म अर्थों के लिए गहन अनुभूति की आवश्यकता होती है / मेरे विचारों के मार्ग को बनाए रखना आसान नहीं है / मैं अनेक पहाड़ियों वाला पर्वत हूँ.’’ बेदिल की कविता अस्तित्व के रहस्य को समझने और मानव जीवन में अर्थ खोजने का प्रयास करती है.

उनकी कविता में इस आद्य-अस्तित्ववादी तत्व के कारण, कुछ आलोचक उन्हें फ्रांसीसी अस्तित्ववाद का अग्रदूत मानते हैं, जबकि मुहम्मद इकबाल ने बेदिल को शंकराचार्य के बाद भारत का सर्वश्रेष्ठ कवि-दार्शनिक कहा है. बेदिल ने ज्यादातर गजलें और रुबाइयाँ लिखीं.

एक चौपाई में वे कहते हैं, हे कल्पना के ढेर के उपभोक्ता, आनंद कुछ और है / तुम भ्रम के कारण बेकार हो रहे हो, वास्तविकता कुछ और है / रत्न और सोने का स्वर्ग, तुम्हारे लालच को प्रकट करता है / (शुद्ध) स्वर्ग कुछ और है.

उनकी कविताएं समझने में आसान हैं. एक कविता में वे कहते हैं, मैं लहर की चुभन, नाजुक रूप /समुद्र की प्रस्तावना, हवा के पदचिह्नों में पढ़ता हूं.’’ एक अन्य पत्र में वे लिखते हैं, ‘‘मेरे अस्तित्व की टिमटिमाती रूपरेखा पर्दे में छिपी हुई / तुम्हारे विचार के दर्पण में प्रकट हुई.’’ और, अस्तित्व के रहस्य की ओर संकेत करते हुए, वह लिखते हैं, ‘‘बुलबुले की पहेली / कुछ भी नहीं उगलती / मेरे शब्द खोलो और देखो - इसका अर्थ है / ऐसा मत कहो.’’

बेदिल का स्थान हिंद फारसी, उर्दू, अफगान और ताजिक साहित्य के लिए वही है, जो टैगोर का स्थान बंगाली साहित्य के लिए है. उन्होंने इस क्षेत्र के कवियों और लेखकों की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है. उनकी रचनाएं पाठ्य पुस्तकों में शामिल हैं, उनकी कविताओं को लोक गायकों द्वारा गाया गया है, तथा उन्होंने अपनी कविता को समर्पित साहित्यिक मंडलियों को जन्म दिया है. भारत में बेदिल ने इकबाल और गालिब दोनों को प्रभावित किया.

गालिब, जिन्होंने कहा था, ‘‘बेदिल की शैली में रेख़्ता कहना असदुल्लाह ख़ान का पुनरुत्थान है.’’ ने अपना पहला दीवान बेदिल की भावना को समर्पित किया. अपने पूरे जीवन में बेदिल ने धार्मिक चरमपंथ का विरोध किया और मुस्लिम मौलवियों के भ्रष्टाचार को उजागर किया. वह स्वतंत्र विचार और सहिष्णुता में विश्वास करते थे और उन्होंने अमीर खुसरो द्वारा शुरू की गई इंडो-इस्लामिक संस्कृति की सामंजस्यपूर्ण परंपराओं को आगे बढ़ाया. विभाजन के इस युग में बेदिल की कविता पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है.