Story by ओनिका माहेश्वरी | Published by onikamaheshwari | Date 28-06-2024
वर्षों से मस्जिद की देखरेख में लगे बेचन बाबा हैं सद्भाव के प्रतीक
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
बेचन बाबा ने अपना जीवन वाराणसी की अनारवाली मस्जिद को समर्पित कर दिया है, जहां हिंदू और मुसलमान प्रार्थना करने आते हैं. बेचन की एकमात्र इच्छा है कि वे अपनी मृत्यु तक मस्जिद की सेवा करें.
चौखंबा बनारस के पुराने शहर में एक प्रसिद्ध इलाका है, जिसका नाम 14वीं-15वीं शताब्दी की मस्जिद चौरासी खंबा मस्जिद से पड़ा है, जो कभी यहां की प्रसिद्ध मस्जिद हुआ करती थी. साथ ही, यहां तारा शाह बाबा, मीरा शाह बाबा, अनार शहीद बाबा और चौखंबा बाबा की कब्रें भी हैं. समय बदला, जनसांख्यिकी बदली और संभवतः विभाजन के समय पूरा इलाका हिंदू बहुल हो गया.
इस बदलाव के साथ ही इलाके को नाम देने वाली मस्जिद भी मुख्यधारा से गायब हो गई. आज गूगल सर्च से आपको मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं मिलेगा. हो सकता है कि यह विभाजन की लहर का शिकार हो गई हो, जिसमें दोनों पक्षों ने बहुत कुछ खो दिया हो. लेकिन यह खोई नहीं थी. यह हमेशा से मौजूद थी और आज भी मौजूद है. और यहीं से कहानी शुरू होती है एक हिंदू परिवार की, जिसने सदियों तक मस्जिद की अच्छी देखभाल की और इसकी पवित्रता को बनाए रखा.
बेचन बाबा चौखंबा मस्जिद के तीसरी पीढ़ी के रखवाले हैं. वह न केवल जगह का ख्याल रखते हैं बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि अज़ान समय पर हो, भले ही कोई मुसलमान नमाज़ पढ़ने आए या नहीं (क्योंकि अब इस इलाके में बहुत कम लोग हैं).
आज मस्जिद में एक शांत और चुंबकीय आकर्षण है. इसके स्तंभ इसके मध्ययुगीन निर्माण का स्पष्ट प्रमाण हैं. यह अच्छी तरह से संरक्षित दरगाह उन सभी को आमंत्रित करती है जो भूतपूर्व संतों का आशीर्वाद मांगना चाहते हैं.
वाराणसी के हृदय में, जहां पवित्र गंगा कल-कल बहती है और धूपबत्ती का धुआं असंख्य मंदिरों से प्रार्थना की धीमी प्रतिध्वनि के साथ मिल जाता है, बेचन बाबा अनारवाली मस्जिद के प्रवेश द्वार पर बैठते हैं. एक मूक प्रहरी के रूप में, 72 वर्षीय हिंदू देखभालकर्ता लगभग 400 साल पहले रखे गए पुराने पत्थरों पर अपना आसन टीकाऐ हुए हैं.
बेचन ने अपना कार्यकाल इस प्राचीन मस्जिद की सेवा में समर्पित कर दिया है, जो ऐतिहासिक विवादों से जूझ रहे शहर में एकता की भावना का प्रतिनिधित्व करती है. बेचन बाबा रोज सुबह एक पुरानी झाड़ू उठाते हैं और उस मस्जिद की सफाई करते हैं जो चार दशकों से अधिक समय से उनका आश्रय और उनका कर्तव्य रहा है.
बेचन बाबा कहते हैं “मैं 45 साल से इस मस्जिद की देखभाल कर रहा हूं. हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग यहां प्रार्थना और पूजा करने आते हैं. मेरे पिता यहीं रहते थे और उनके बाद मैंने यह जिम्मेदारी संभाली. मैं बचपन से ही यहां हूं.”
वह मस्जिद के ठीक बाहर एक बिस्तर पर सोते हैं. वहाँ एक चाय की दुकान है (शायद उनके द्वारा चलाई जाती है) जो आसपास के स्थानीय लोगों को आकर्षित करती है. वे सभी इस बारे में बात करते हैं कि वे मस्जिद के आसपास कैसे बढ़े और यह दिल को छू लेने वाली कहानी है.
एक हिंदू के रूप में मस्जिद की देखभाल करना कैसा लगता है?
अदरक की खुशबू से लथपथ अपनी ताज़ी बनी मसाला चाय की चुस्की लेते हुए, वह हिंदुस्तानी में जवाब देते हैं: “सबके लिए एक ही भगवान है, बस नाम अलग-अलग हैं। कभी उसे ईश्वर कहते हैं, कभी अल्लाह, सब एक ही है. हम बनारसी हैं, हम एक साथ सद्भाव से रहने में विश्वास करते हैं.”
ईश्वर हिंदुओं के लिए भगवान या सर्वोच्च प्राणी के लिए संस्कृत शब्द है, और अल्लाह अरबी शब्द है जिसका इस्तेमाल मुसलमान भगवान के लिए करते हैं.
भले ही यह शहर हिंदू संस्कृति का केंद्र है, जहाँ लाखों लोग नियमित रूप से मृत्यु और अंतिम संस्कार के लिए इस विश्वास के साथ एकत्रित होते हैं कि इससे आत्माएँ स्वर्ग में पहुँच जाएँगी, वाराणसी में ऐसी मस्जिदें भी हैं जो मुगल सम्राटों के समय की हैं, जिन्होंने 16वीं से 18वीं शताब्दी तक भारत पर शासन किया था.
वे कहते हैं, "यहां सभी पांचों वक्त की नमाज अदा की जाती है." वे कहते हैं, "मेरे पिता के समय में इतनी आबादी नहीं थी और लोग यहां नहीं आते थे. लेकिन अब यहां बहुत सारे घर हैं, आबादी बढ़ गई है और बहुत सारे लोग यहां आते रहते हैं." उन्होंने कहा कि विभिन्न धर्मों के लोग मस्जिद में प्रार्थना करने आते हैं, जो इसे धार्मिक तनावों से ग्रस्त देश में सह-अस्तित्व का एक शक्तिशाली प्रतीक बनाता है.
वे कहते हैं, "मैं अपने घर नहीं जाता. मेरे बच्चे सुबह मेरे लिए खाना लाते हैं. मैं दिन भर यहीं रहता हूं और इस जगह पर आराम महसूस करता हूं. मेरे बच्चे घर पर रहते हैं." बेचन के शासन में मस्जिद में आने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है.
48 साल तक जब तक बेचन की पत्नी उनके साथ थी, वह भोजन और रात के आराम के लिए घर चले जाते थे. दंपति के पाँच बेटे थे और उसने कभी भी मस्जिद से उनके संबंध पर आपत्ति नहीं जताई. उनके बेटे अपने पिता के व्यवसाय के बारे में अपनी माँ के रुख से सहमत हैं.
भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 500 मील दक्षिण-पूर्व में स्थित प्राचीन शहर वाराणसी, जिसे अक्सर देश का आध्यात्मिक केंद्र माना जाता है, पिछले कुछ महीनों में ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कानूनी विवाद के बाद तनावपूर्ण रहा है. 17वीं शताब्दी में बादशाह औरंगजेब ने मस्जिद बनवाई थी. एक अदालत ने फैसला सुनाया है कि हिंदू मस्जिद के अंदर पूजा कर सकते हैं, जबकि दर्जनों कानूनी याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें दावा किया गया था कि यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर था.
बेचन की सोच वाराणसी या अयोध्या के धार्मिक विवादों से परे है. और वे कहते हैं कि बीते वर्षों में हुई धार्मिक कलह के कारण ही उनकी भूमिका के महत्व को और बढ़ा दिया है. वे कहते हैं कि अगर मैं हिंदू हूँ तो क्या हुआ ? मैं मस्जिद की सेवा करना जारी रखूँगा. वे अपने इस कार्य से हिन्दू-मुस्लिम एकता, सद्भाव और भाईचारे का संदेश प्यूरी दुनिया को दे रहे हैं.
वे कहते हैं, "वहां (ज्ञानवापी) जो कुछ भी हो रहा है, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है. मैं यहीं रहता हूं और यहां कुछ भी नहीं होने देता." वे पड़ोस में गोपाल मंदिर की ओर इशारा करते हुए दोनों पूजा स्थलों के सह-अस्तित्व पर जोर देते हैं. और बताते हैं कि यहां के लोगों में कोई धार्मिक मतभेद नहीं हैं और सभी यहां प्रेम और शांति से प्रार्थना करते हैं.
वे कहते हैं, "यहां नफरत का माहौल नहीं है. हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग यहां आते हैं और मेरे समय में कभी कोई दंगा नहीं हुआ." बेचन की एकमात्र इच्छा है कि वे अपनी मृत्यु तक मस्जिद की सेवा करें.
बाबा के बाद मस्जिद की देख रेख कौन करेगा ?
बेचन बाबा के मुताबिक "पहले मेरे पूर्वजों ने की, फिर मैंने. मेरे बाद मेरे बेटे करेंगे. आखिर इसकी देख रेख उनकी खानदानी विरासत है."
सौजन्य: सिटी टेल्स, द गार्जियन, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट