अवैस अम्बर: टाट पट्टी पर बैठ कर की पढ़ाई , अब हज़ारों विद्यार्थियों को दे रहे मुफ़्त शिक्षा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 28-05-2024
Awais Ambar: Now giving free education to thousands of boys who studied by sitting on sacks
Awais Ambar: Now giving free education to thousands of boys who studied by sitting on sacks

 

सेराज अनवर/ पटना 

जज्बा,जुनून इंसान को उस बुलंदी पर ज़रूर पहुंचा देते हैं, जिस मुकाम पर आप खुद को देखना चाहते हैं. ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है अवैस अम्बर.बोरा पर बैठ खुद शिक्षा ग्रहण करनेवाला एक दिन भारतीय शिक्षा व्यवस्था की ज़रूरत बन जायेगा,किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी.यह न केवल हालात को बदलने की ज़िद, मिशन,मंजिल की तलाश में अवैस की संघर्ष गाथा फर्श से अर्श पर छा जाने की सच्ची दास्तान है,बल्कि जिद्दोजहद भरा यह सफर एक साधारण परिवार में जन्म लेनेवाले उस जूझारू नौजवान की है,जिसका सपना समाज के कमजोर एवं गरीब वर्ग के छात्रों को बिना भेदभाव के उच्च तकनीकी शिक्षा से लैस कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना था.
 

महज़ एक दशक की छोटी यात्रा के बाद अवैस आज बुलंदी के उस मुकाम पर हैं, जिन्हें देश के नामचीन विश्वविद्यालय खुद से जोड़ कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.बिहार के जहानाबाद के एक छोटे से गांव एरकी के इस नौजवान को शिक्षा के क्षेत्र में महती योगदान के लिए दिवंगत राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी नवाज़ चुके हैं. अम्बर रोजमाइन एजुकेशनल एंड चेरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन हैं.
 
रोजमाइन पैसे और सुविधा के अभाव में इंजीनियरिंग व दीगर तकनीकी शिक्षा से वंचित छात्र-छात्राओं को देश भर के कालेजों में नामांकन करा कर उन्हें उनके पैरों पर खड़ा करता है.इसके लिए छात्रों को एक पैसा फीस के रूप में नहीं देना होता.बस उन्हें हास्टल में रहने और खाने पीने का खर्च उठाना पड़ता है.रोजमाइन के इस महत्वपूर्ण योगदान के बदले छात्रों को एक पैसा नहीं देना होता है.
 
लेकिन बस एक वचन देना होता है कि रोजमाइन संस्था से जुड़े छात्र अपनी शादी बिना दहेज के करेंगे.इसके लिए रोजमाइन बजाब्ता शपथ दिलवाता है और दूसरा वचन रोजमाइन यह लेता है कि शिक्षा प्राप्त कर लेने और अपने पैरों पर खड़ा हो जाने के बाद छात्र किसी एक गरीब बच्चे का भविष्य संवारेगा.आज की तारीख़ में अवैस अम्बर बिना कॉलेज,यूनिवर्सिटी खोले एक दशक के अपने छोटे सफर में रोजमाइन्स ने 30 हजार से ज्यादा छात्रों को तकनीकी शिक्षा में दक्ष करा कर उन्हें रोजगार के लायक बना दिया है. 
 
 
कौन है अवैस अम्बर? 
सात भाई और तीन बहनों के परिवार का सदस्य रहे ओवैसे अम्बर के पिता ग्यासुद्दीन बिजली विभाग के कर्मी के तौर पर रिटायर हुए.12 सदस्यों के लालन-पालन का बोझ उठाने वाले ग्यासुद्दीन बस इतना चाहते थे कि उनका बेटा कुछ पढ़-लिख कर सऊदी अरब चला जाये और अपना व अपने परिवार के लिए रोटी कमा सके.लिहाजा ग्यासुद्दीन ने अम्बर का नाम जहानाबाद में ही गांव के करीब के मुरलीधर हाई स्कूल में लिखवा दिया.दो साल वहां पढ़ने के बाद जब अम्बर पटना के पटना कॉलेजियट स्कूल पहुंचे तो जैसे उनके सामने सपनों का खुला संसार था.
 
महत्वकांक्षा और आगे बढने के जुनून से लबरेज अवैस यहां अम्बर की बुलिंदियों को छू लेने का सपना पालने लगे.लेकिन उनका यह सपना जोखिम भरा था क्योंकि पिता उन्हें कोई रिस्क लेते नहीं देखना चाहते थे,वह चाहते थे कि अम्बर किसी भी तरह सऊदी अरब का वीजा हासिल कर ले,बस.दूसरी तरफ अम्बर कम उम्र में ही जान चुके थे कि उनके अंदर एंट्रोप्रोन्योरशिप का जखीरा छिपा है.उनके सामने खुद की रोजी-रोटी से ज्यादा पूरे समाज की चिंता थी. वह यह तय कर चुके थे कि देश की शिक्षा व्यवस्था माफियाओं के चंगुल में फंसा हुआ है.और ऐसे हालात में गरीबों, वंचितों और बच्चों को उच्च शिक्षा के दरवाजे तक पहुंचना बड़ा कठिन है. इसलिए वह रिस्क लेने को तैयार थे. लिहाजा उन्होंने 2005 में रोजमाइन एजुकेशनल ऐंड चैरिटिबल ट्रस्ट की स्थापना की.
 
यह काम जोखिम भरा था.जेब में पैसे नहीं थे. ट्रस्ट के आफिस का किराया देने के लायक भी नहीं. तो बस उन्होंने पटना में घर और आफिस एक ही मकान में शुरू कर दिया. 2007 में रोजमाइन ट्रस्ट एक रजिस्टर्ड संस्था के रूप में सामने आ चुका था. ट्रस्ट के उद्देश्यों का जिक्र करते हुए अम्बर कहते हैं- “बाजार बन चुके पूरे भारत की शिक्षा व्यस्था माफियाओं की गिरफ्त में है. ऐसे में उच्च शिक्षा, खास कर तकनीकी शिक्षा अमीरों द्वारा खरीदी जा रही हो तो गरीबों और योग्य छात्र-छात्राओं की तालीम का क्या होगा”.
 
 
इसलिए अम्बर ने यह ठान लिया कि चाहे जैसे भी हो वह योग्य मगर साधारण परिवार के छात्रों तक तकनीकी शिक्षा पहुंचायेंगे.इसके लिए अम्बर ने एक वैरागी की तरह यात्रा शुरू कर दी. वह यूपी के बिजनौर पहुंचे और वहां आर्थिक रूप से कमजोर बैकग्राउंड के छात्र- छात्राओं की तलाश में जुटे. 2008 तक उन्होंने ऐसे 30 छात्रों को खोज निकाला जो कमजोर माली हालत के कारण तकनीकी शिक्षा से वंचित थे. इस तलाश के बाद अम्बर की अगली मुहिम उन तकनीकी कालेजों तक पहुंची जहां किसी कारणवश इंजीनियरिंग व दीगर संकायों की कुछ सीटें खाली रह जाती थीं.
 
अम्बर ने इन कालेजों को अपने भरोसे में लिया और उन्हें इस बात के लिए तैयार किया कि वह उनके छात्रों का नामांकन करेंगे और सिर्फ युनिवर्सिटी फीस ले कर उन्हें अपने यहां पढ़ायेंगे. उनसे कोई डुनेशन नहीं लिया जायेगा. अम्बर की इस मुहिम का तीसरा पड़ाव ऐसे कार्रपोरेट घरानों की खोज के लिए था, जो अपने कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) के तह जरूतमंद छात्रों की फीस अदा कर सकें. काफी भागदौड़ और मशक्कत के बाद उनकी यह पहली मुहिम कामयाब हुई. इस कामयाबी ने अम्बर के सपनों को तो जैसे पंख ही लगा दिया. और फिर यह सिलसिला चल निकला. अंबर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि आंडमन निकोबार तक की तकनीकी शिक्षण संस्थानों में सुर्खियों में आ गये.
 
उनके इस सामाजिक दायित्व की धमक तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक पहुंची. अनेक सामाजिक और शौक्षमिक संगठनों ने राष्ट्रपति तक उनके योगदान की खबर पहुंचायी. फिर अम्बर के जीवन में वह प्रेरक क्षण आ गया जब अब्दुल कलाम ने उनकी इस उपलब्धि पर अपने हाथों से सम्मानित किया और भविष्यवाणी करते हुए कहा- यू विल फ्लाई.. यू विल फ्लाई. यह कलाम द्वरा किसी व्यक्ति को सम्मानित करने का आखिरी क्षण था. इस समारोह के बाद अचानक कलाम साहब ने दुनिया से रुख्सत ले ली.महज एक दशक की छोटी यात्रा के बाद अवैस आज बुलंदियों पर चमकने वाले ऐसे सितारे की मानिंद हैं जिन्हें देश की नामी गिरामी युनिवर्सिटीज खुद से जोड़ कर गर्वान्वित महसूस कर रही हैं. इसी क्रम में 2017 में दो शिक्षण संस्थानों ने उन्हें खुद से जोड़ने की घोषणा की.
 
इनमें पंजाब टेक्निकल युनिवर्सिटी (पीटीयू) ने ओवैस को अपना अधिकृत सलाहकार( काउंसलर) नियुक्त किया तो मोती बाबू इंस्टिच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी ने (एमबीटीआई) उन्हें अपना चीफ एक्जेक्युटिव ऑफिसर (सीईओ) नियुक्त किया. ऐसा नहीं है कि अपनी उम्र के महज तीसरे दशक में ओवैसे ने इतनी ही उपलब्धि हासिल की है. इससे पहले हरियाणा के कुरक्षेत्र के TERI College ने ओवैस अम्बर की काबिलियत को स्वीकार करते हुए 2016 में अपने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में शामिल कर लिया था.ओवैसे अम्बर अपने मिशन में दिन रात लगे हैं.उनकी स्पष्ट मान्यता है कि सही शिक्षा से संतुलित समाज का निर्माण होता है. तभी देश मजबूत और खुशहाल होता है.अम्बर कहते हैं कि हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व इस दिशा में काम करता रहा है.
 
यही कारण है कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक और मनमोहन सिंह से लेकर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सर्वाधिक जोर शिक्षा को संवारने के लिए है. लेकिन यह मिशन तब कामयाब हो सकता है जब सरकार के साथ समाज भी इस दिशा में आगे आ कर काम करे. रोजमाइन इसी आंदोलन का हिस्सा है. 
 
 
क्या है रोज़माइन मिशन? 
किसी भी धर्म, किसी भी जाति के छात्र हों बस अगर आपके पास धनाभाव है तो आपके लिए है रोजमाइन.12वीं में पचास प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले छात्रों का सीधा तकनीकी कालेजों में नामांकन करवाने की जिम्मेदारी रोजमाइन की है.इन मिशनों के अलावा रोज़माइन इस अभियान में भी लगा है कि देश में GER( ग्रॉस एनरौलमेंट रेशियो) की दर बढ़ाया जाये.रोज़माइन की चिंता है कि भारत में जीईआर पिछले पचास सालों में मात्र 13 प्रतिशत तक पहुंच पायी है. जबकि जीईआर की दर अमेरिका में 80 प्रतिश है.इस दिशा में देश की तमाम राज्य सरकारें जुटी हैं लेकिन उसका उचित रिजल्ट सामने नहीं आ पा रहा है. लिहाजा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भी रोजमाइन बड़ी शिद्दत से जुटा है.
 
मालूम हो कि रोजमाइन ट्रस्ट दो राष्ट्रपतियों और 14 राज्यों के राज्यपाल से सम्मान प्राप्त है.2015 में देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और 2019 में नेपाल की तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी औरअंडमान- निकोबार द्वीप समूह के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर एके सिंह द्वारा भी शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अम्बर को सम्मानित किया गया.इसके साथ 2022 में Indian CSR Award और AICTE के चेयरमैन के हाथों भी अवार्ड मिले.राज़माइन की बुनियाद सात हजार रुपये किराये के मकान में रखी गयी थी.
 
आज देशभर में इस संस्थान की 50 से अधिक शाखाएं हैं. प्रारम्भ में पटना के न्यू डाकबंगला रोड स्थित हीरा इनक्लेव में 980 स्क्वायर फीट पर चलनेवाली रोज़माइन आज पूरे देश में 50 हज़ार स्क्वायर फीट एरिया से अधिक में चल रही है. नेपाल में भी एक ब्रांच काम कर रहा है.पटना मुख्यालय है.आशियाना -दीघा रोड में इसका हाईटेक कार्यालय का उद्घाटन पिछले महीने ही हुआ है.इसके अलावा हरियाणा, उत्तरप्रदेश, झारखंड, बंगाल, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, अंडमान निकोबार, उड़ीसा, चंडीगढ़ में बजाब्ता शाखा कार्यरत हैं.
 
अम्बर कहते हैं कि रोजमाइन का नया और हाइटेक भवन छात्रों के भविष्य संवारने का दर्पण ही नहीं बलकी यह समाज का आइना भी है. समाज का आइना इसलिए भी है कि चंदे से बनने वाले भवन और उसे चलाने के लिए चंदा करने की परंपरा तो ख़ूब देखा है .रोजमाइन ने इस परम्परा को तोड़ते हुए मेहनत, मशक़्क़त की ऐसी इमारत खड़ी की है जो पीढ़ियों तक मशाल ए राह बनेगी.
 
रोजमाइन एजुकेशनल एंड चेरिटेबल ट्रस्ट ने एक नया ट्रेंड सेट करते हुए नए भवन का उद्घाटन रोजमाइन ट्रस्ट के चेयरमैन अवैस अंबर की मां नफीसा खातून से कराया. हिन्दु-मुस्लिम के भेदभाव के बिना रोज़माइन देश की क़ौमी एकता का प्रतीक भी है. अम्बर कहते हैं कि रोज़माइन की प्राथमिकता सिर्फ इतनी है कि पैसा और सुविधाओं के अभाव में इंजीनियरिंग व अन्य तकनीकी शिक्षा से वंचित छात्र-छात्राओं को देशभर के कॉलेजों में नामांकन करा उन्हें उनके पैरों पर खड़ा किया जाय. छात्रों को एक पैसा फीस के रूप में नहीं देना होता है. सिर्फ उन्हें छात्रावास में रहने और खाने-पीने का खर्च उठाना पड़ता है.
 
 
किसी भी धर्म-जाति के छात्र हों, अगर आपके पास पढ़ने के लिए पैसे नहीं हैं तो रोज़माइन 12वीं में 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करनेवाले छात्रों का सीधा तकनीकी कॉलेजों में नामांकन करवाने की जिम्मेदारी लेती है.उनका कहना है कि देशभर में उच्च शिक्षा में 68 से 70 प्रतिशत सीटें खाली हैं, यह हम नहीं, देश के शिक्षामंत्री कह रहे हैं. मेरा सिर्फ यह कहना है कि उक्त खाली सीटों पर सरकार से रोज़माइन का समझौता हो. एक पढ़ा-लिखा मुल्क पढ़े-लिखे के बराबर खड़े हो जा सकता है.रोजमाइन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के लिए एतिहासिक पल तब आया जब विवांता द्वारका नई दिल्ली में आयोजित भारतीय शिक्षा और एडटेक शिखर सम्मेलन प्रदर्शनी पुरस्कार समारोह में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के चेयरमैन डॉ.अनिल सहस्रबुद्धे ने रोज़माइन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन अवैस अंबर को बेस्ट सोशल एक्टिविस्ट ऑफ द ईयर (शिक्षा के क्षेत्र में ) 2022 अवार्ड से सम्मानित किया.
 
इस मौक़े पर एआईसीटीई के चेयरमैन डॉ.अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि रोजमाइन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट ने तकनीकी शिक्षा को बख़ूबी बढ़ावा दिया है, तकनीकी क्षेत्र में कई ऐसे कोर्स हैं जिनको छोटे-छोटे गांव-कस्बों के छात्र-छात्रा जानकारी के अभाव में नहीं कर पाते और बीए,बीएससी की तरफ चले जाते हैं.लेकिन रोजमाइन एजुकेशनल ट्रस्ट ने अपने 15 साल के बेमिसाल सफर में तकनीकी कार्यक्रम को देश के आख़िरी घर तक पहुंचाने में जो मेहनत की है वो क़ाबिले तारीफ़ है. और इसका नतीजा ये है कि आज 10000 से अधिक छात्र-छात्रा रोजमाइन ट्रस्ट के माध्यम से जीरो ट्यूशन फी पर अपनी पढ़ाई अपने मन पसंद कोर्स में कर रहे हैं. ये कार्यक्रम ब्रांड होन्चोस एडु स्किल्स द्वारा आयोजित किया गया था जिसमें कई बड़ी यूनिवर्सिटीज़,कॉलेज और स्कूल शामिल हुए. 
 
 
शिक्षा पर सबका अधिकार 
शिक्षा पर सबका अधिकार का एजेंडा लेकर अवैस अम्बर ने पूरे बिहार का दौरा किया.शिक्षा किसी भी व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के विकास की केंद्र होती है.शिक्षा के बिना कोई भी राष्ट्र समाज या व्यक्ति प्रगति नही कर सकता है.शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति समाज या देश का मूल्यांकन किया जा सकता है.इससे पूर्व एक मुहिम शुरू की गायी जिसका नाम रखा गया ‘गो गर्ल, ग्रो गर्ल’ ( Go Girl, Gro Girl) .
 
इस मुहिम का उद्देश्य था कि लड़कियों तक पहुंचो और उनका विकास सुनिश्चित करो. अम्बर की यह मुहिम एक भविष्यद्रष्टा की मुहिम इसलिए थी कि उन्होंने जब इसकी शुरुआत की उसके पांच साल बाद केंद्र सरकार ने ऐसी ही मुहिम बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ के नाम से शुरू की. अम्बर की इस मुहिम का असर देशव्यापी स्तर पर पड़ा और देखते ही देखते रोजमाइन की गतिविधियों की स्वीकारोक्ति इतनी बढने लगी कि उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक से रोजमाइन के शाखायें खोलने के ऑफर आने लगे.
 
देखते ही देखते बिहार और यूपी की सीमाओं को लांघते हुए रोजमाइन ने हरियाणा, चंडीगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, आंडमान व निकोबार आइलैंड, कर्नाटक व जम्मू कश्मीर या यूं कहें कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने कार्यालय खोलते हुए समूचे भारत को अपने आगोश में ले लिया.अम्बर कहते हैं कि देश के ग्रॉस इनरोलमेंट रेशियो को बढ़ाने के लिए जेईई मेन्स और नीट जैसे इम्तिहान के होने पर एकबार विचार होना चाहिए.
 
सीधे प्रवेश के प्रवधान को आसान करना चाहिए.15% की इनरोलमेंट की व्यवस्था जो स्टेट यूनिवर्सिटी में है उसके बारे में छात्र-छात्राओं को जागरूक करना चाहिए.बच्चों को इस बात से अवगत कराना चाहिए कि बिना किसी एंट्रेन्स एग्जाम के भी वे इंजीनयर बन सकते हैं और उनका दाखिला मात्र 50% के अंक पर कन्याकुमारी से कश्मीर तक के कॉलेजो में हो सकता है.