औरंगाबाद पूर्व: इम्तियाज जलील का राजनीतिक भविष्य दांव पर  

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-11-2024
Aurangabad East: Imtiaz Jalil's political future at stake
Aurangabad East: Imtiaz Jalil's political future at stake

 

शाहबाज एम. फारूक मनियार      

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) महाराष्ट्र की पर्यटन राजधानी है. इस शहर को एक ऐतिहासिक और बहुसांस्कृतिक शहर के रूप में जाना जाता है. इतिहासकारों का मानना है कि अहमदनगर के निजामशाही के सैन्य नेता मलिक अंबर ने 1610 में खड़की के रूप में शहर की स्थापना की थी.

मुख्य शहर और आसपास का क्षेत्र प्राचीन काल से राजनीतिक गतिविधि का केंद्र रहा है. मुख्य शहर के पास पैठण सात वाहनों की राजधानी थी. देवगिरि यादव वंश की राजधानी थी. दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1327 में साम्राज्य की राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित कर दी. 

1636 में औरंगजेब दक्षिण में मुगल साम्राज्य का सूबेदार बन गया. इस शहर को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया. 1653 में, औरंगजेब ने शहर को औरंगाबाद में बदल दिया. इसे मुगल साम्राज्य के दक्कन क्षेत्र की राजधानी बना दिया. आसफजाही साम्राज्य के पहले कुछ वर्षों के लिए औरंगाबाद शहर उनकी राजधानी थी. बाद में राजधानी को हैदराबाद स्थानांतरित कर दिया गया.

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) अल्पसंख्यक बहुल शहर है. 2011 की जनगणना के अनुसार, शहर में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत, बौद्धों की 13.17 प्रतिशत और जैनों की आबादी 1.34 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि शहर की 42 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यक है. 

शहर में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं. औरंगाबाद पूर्व और औरंगाबाद मध्य, जो मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं. औरंगाबाद पश्चिम अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है. औरंगाबाद पूर्व निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता 37.5 प्रतिशत, तो 16.5 प्रतिशत दलित मतदाता हैं.

राज्य के पहले विधानसभा चुनावों में,  लेखक और विचारक रफीक जकारिया औरंगाबाद निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने. उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल में शहरी विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. न्यू औरंगाबाद और सिडको की योजना उनके मार्गदर्शन में बनाई गई थी. क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के कारण उन्हें ‘औरंगाबाद का रचनाकार’ कहा जाता था. उन्हें महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय के दूरदर्शी नेता के रूप में भी जाना जाता था.  

शिवसेना के आगमन के साथ, शहर में राजनीति हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर आधारित हो गई. शहर की राजनीति ‘खान हवा की बाण हवा’ (खान चाहिए, या (शिवसेना का) बाण) नारे और शहर का नाम बदलने के मुद्दे पर केंद्रित थी. 1989 से भाजपा-शिवसेना हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के आधार पर नगर निकाय में सत्ता में हैं.

औरंगाबाद पूर्व निर्वाचन क्षेत्र मुख्य रूप से भाजपा का गढ़ बना. भाजपा के हरिभाऊ बागड़े 1985 से 2004 तक लगातार चार बार विधायक रहे. कांग्रेस ने 2004 और 2009 में यह सीट जीती थी. अतुल सावे ने 2014 में एक बार फिर यह सीट भाजपा के हाथों छीन ली. वे 2019 में इसे बनाए रखने में कामयाब रहे.  

2012 के नांदेड़ नगर निगम (एनएमसी) चुनावों ने तेलंगाना में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के महाराष्ट्र की राजनीति में आने का रास्ता बनाया. मुख्य रूप से मुस्लिम मुद्दों पर राजनीति करनेवाले पार्टी की ओर से इम्तियाज जलील 2014 के विधानसभा चुनाव में अपने पहले प्रयास में औरंगाबाद मध्य निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने. 

छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) शहर में एआईएमआईएम के राजनीति में प्रवेश करने के बाद शहर में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और बढ़ गया. जहां 2014 के बाद से शहर में हर चुनाव मीम बनाम शिवसेना या एमआईएम बनाम भाजपा रहा है. निम्नलिखित आंकड़े बताते हैं कि उस वर्ष के विधानसभा चुनाव कोई अपवाद नहीं थे:

imtiyaz

विधानसभा 2014 

 1.    अतुल सावे (भाजपा)   64528 
 2.    गफ्फार कादरी (आईआईएम)   60268 
 3.    राजेंद्र दर्डा (कांग्रेस)   21203 
 4.    काला ओजा (शिवसेना)    9093 
 
पिछले दो लगातार चुनावों में, इस निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार चुने गए. राजेंद्र दर्डा को हैट्रिक बनाने का काम सौंपा गया. भाजपा के सामने अपने गढ़ को फिर से हासिल करने की चुनौती थी. भाजपाने अतुल सावे को मैदान में उतारा. एमआईएम  भी महाराष्ट्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उत्सुक थी. एमआईएम से गफ्फार कादरी मैदान में थे. 

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. भाजपा ने 2014 का विधानसभा चुनाव  मोदी लहर पर लड़ा था. एआईएमआईएम और भाजपा दोनों ने धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव जीतने की कोशिश की. एआईएमआईएम ओवैसी बंधुओं की बयानबाजी और भाषणों पर निर्भर थी, जबकि बीजेपी मोदी लहर पर चुनाव जीतना चाहती थी. हालांकि हिंदू और मुसलमानों के इस सीधे मुकाबले में कांग्रेस पिछड़ गई.

जैसा कि अपेक्षित था, अंतिम परिणामों में हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण देखा गया. बीजेपी के अतुल सावे 64,528 वोटों के साथ जीते. एआईएमआईएम की गफ्फार कादरी को 60,268 वोट मिले और वह महज 4,260 वोटों से हार गए. भले ही एआईएमआईएम उम्मीदवार हार गए, लेकिन उन्हें मिले वोट निश्चित रूप से पार्टी के लिए उत्साहजनक थे. 

इस चुनाव ने शहर की राजनीति को एक अलग मोड़ दिया. तीन बातें हुईं.पहला, शहर की हिंदू-मुस्लिम राजनीति ने कांग्रेस को लगभग अप्रासंगिक बना दिया. दूसरा, एमआईएम शहर में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी. तीसरा, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण तेज हो गया. 

विधानसभा चुनाव 2019 

  1.    अतुल सावे (भाजपा)   93966 
  2.     गफ्फार कादरी (एमआईएम)  80036 
  3.     कलीम कुरैशी (सपा)   5555 

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, प्रकाश अम्बेडकर ने अपने भारिप बहुजन महासंघ को वंचित बहुजन अघाड़ी में बदल दिया और दलितों, मुसलमानों और छोटी ओबीसी जातियों के साथ एक बड़ा गठबंधन बनाया. उन्होंने लोकसभा के लिए एमआईएम पार्टी के साथ गठबंधन किया.

इस गठबंधन ने औरंगाबाद लोकसभा में इम्तियाज जलील को लाभान्वित किया. उन्हें औरंगाबाद लोकसभा से सांसद के रूप में चुना गया था. शहर में एमआईएम की ताकत और बढ़ गई.  विधानसभा में गठबंधन से एक और चमत्कार होने की उम्मीद थी, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर गठबंधन जल्द ही टूट गया.

दोनों दलों ने 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़े. भाजपा ने केंद्र में अपने दम पर सत्ता हासिल की. भाजपा एक बार फिर मोदी के सामने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार थी. भाजपा और एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे. 

धार्मिक ध्रुवीकरण पर लड़े गये इस चुनाव में हिंदू-मुस्लिम वोटों का सीधा बटवारा देखा गया. भाजपा के अतुल सावे के पक्ष में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया गया. उन्हें 93,966 वोट मिले. एआईएमआईएम की गफ्फार कादरी के पक्ष में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण किया गया.

उन्हें 80,036 वोट मिले. गफ्फार कादरी 13,930 वोटों से हार गए. कुछ मुस्लिम वोट समाजवादी उम्मीदवार कलीम कुरैशी को भी गए, लेकिन अगर वे वोट गफ्फार कादरी को भी गए होते, तो भी अंतिम परिणाम नहीं बदलता.

इस चुनाव ने एक बात स्पष्ट कर दी: धार्मिक ध्रुवीकरण के माहौल में, भले ही एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को एक ही मुस्लिम वोट मिले, वह सीधा मुकाबला नहीं जीत सकता. मुस्लिम वोटों के साथ उसे दूसरे समुदायों के वोट भी हासिल करने की जरूरत है.

विधानसभा चुनाव 2024 

2019 से 2024 तक का दौर महाराष्ट्र चुनावों में विकास का दौर रहा है. परस्पर विरोधी विचारधारा वाले दल नए  गठबंधन बनाने के लिए एक साथ आए. भाजपा ने अतुल सावे की उम्मीदवारी बरकरार रखी. कांग्रेस ने लाहू शेवाले को महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के रूप में मैदान में उतारा है. 

यहां महाविकास अघाड़ी में असमंजस की स्थिति थी. पांडुरंग तांगड़े ने राकांपा (शरद पवार) पार्टी से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था. रेणुका दास वैद्य ने भी शिवसेना (उबाटा) पार्टी से अपना नामांकन दाखिल किया. महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में तीनों दलों के उम्मीदवार मैदान में थे.

रेणुका दास वैद्य का आवेदन अवैध पाया गया, लेकिन पार्टी नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन पांडुरंग तांगड़े की बगावत को रोकने में कामयाब रही.हालांकि एआईएमआईएम पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है. लोकसभा में इम्तियाज जलील की हार पार्टी के लिए एक झटका थी.

गफ्फार कादरी को पार्टी विरोधी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के कारण इस बार टिकट देने से इनकार कर दिया गया. उनकी जगह पार्टी ने इम्तियाज जलील को मैदान में उतारा. टिकट से वंचित होने के बाद, गफ्फार कादरी ने  पार्टी छोड़ दी. वह कांग्रेस से टिकट पाने की कोशिश कर रहा था.

कांग्रेस ने  टिकट देने से इनकार कर दिया. अंत में, उन्होंने समाजवादी पार्टी से नामांकन दाखिल किया. पार्टी विद्रोह को रोकने में विफल रही. यदि मुस्लिम वोटों को विभाजित किया जाता है, तो इम्तियाज जलील को बहुत नुकसान हो सकता है.

2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी जीत के बाद, प्रकाश आंबेडकर ने वंचितों के साथ एआईएमआईएम के टूटे गठबंधन को दिल से लिया.  उनका आरोप है कि इम्तियाज जलील के कारण गठबंधन टूट गया, जो 2019 के विधानसभा चुनावों में चूक गए.

एआईएमआईएम के बीच शीत युद्ध में लगे हुए हैं. दोनों दल एक-दूसरे के मुख्य प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम राजनीतिक प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है.   लोकसभा 2024 में वंचित ने अफसर खान को मैदान में उतारा था. इससे मुस्लिम वोट बंट गया. इसका सीधा असर इम्तियाज जलील पर पड़ा. वह हार गए.

विधानसभा चुनाव 2024 में जैसे ही इम्तियाज जलील की उम्मीदवारी की घोषणा हुई, वंचित ने अपने पहले घोषित उम्मीदवार को बदल दिया. अफसर खान को द वंचित द्वारा पुनः नामित किया गया.एक तरफ इम्तियाज जलील को दो मुस्लिम उम्मीदवारों, गफ्फार कादरी और अफसर खान से चुनौती मिल रही है.

दूसरी ओर उनका मुकाबला भाजपा के अतुल सावे से है. मुस्लिम वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए इम्तियाज जलील को कड़ी मेहनत करनी होगी. ओवैसी बंधु शहर में डेरा डाले हुए हैं. उनकी जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि इम्तियाज जलील मुस्लिम वोटों का विभाजन कितना रोक पाते हैं . पिछले 10 साल में अपने काम के दम पर वह दूसरे समुदायों से कितने वोट हासिल कर पाते हैं. 

भाजपा के अतुल सावे को अपेक्षाकृत आसान मुकाबला मिल रहा है. महाविकास अघाड़ी के उनके अपने सहयोगी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस उम्मीदवार कमजोर है. अतुल सावे एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील के साथ सीधी लड़ाई में है. भाजपा ' ‘बटेंगे तो कटेंगे’, 'वोट जिहाद' जैसे नारे लगाकर और शहर का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर करके हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने की पूरी कोशिश कर रही है.  

हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पर लड़ा गया यह चुनाव इम्तियाज जलील के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है. उन्होंने विपक्ष के वोटों के विभाजन के कारण 2014 का विधानसभा और लोकसभा 2019 का चुनाव जीता. वह पिछले 10 वर्षों से महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका राजनीतिक हनीमून पीरियड खत्म हो गया है.

अगर वह चुनाव हार जाते हैं, तो उन्हें भविष्य में अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा. 

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान और नागरिक शास्त्र विभाग में वरिष्ठ शोधार्थी हैं.)


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