जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
महानगर कोलकाता से यही कोई साढ़े सात घंटे की दूरी पर स्थित बंगाल के कूचबिहार जिले के सबसे मशहूर लोगों में से एक अल्ताफ़ हुसैन की मौत से सभी गमगीन हैं. वे कूचबिहार जिले में धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक थे. 'अल्ताफ़ मियां' के नाम से मशहूर उनका परिवार लंबे समय से कूचबिहार के ख्यात 'रास मेला उत्सव' की साज-सज्जा करता था.
अकेले चालीस साल से अल्ताफ़ हुसैन खुद कूचबिहार के प्रसिद्ध मदन मोहन मंदिर में हर साल पूर्णिमा के समय नवंबर में होने वाले 'रास मेला उत्सव' की साज-सज्जा करते थे. रास मेले का तोरणद्वार भी अल्ताफ़ हुसैन खुद अपने हाथों से बनाते थे.
उनकी मौत पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक ने गहरा शोक जताया है. अल्ताफ़ मियां की उम्र 70 साल थीं.पिछले चार दशकों से चला आ रहा अल्ताफ़ हुसैन का यह सफ़र इस शनिवार को थम गया। रविवार को उन्हें दफनाया गया.
दो साल से बीमार चल रहे थे अल्ताफ़ हुसैन
अल्ताफ़ हुसैन पिछले दो साल से बीमार चल रहे थे. उनके बीमार पड़ने से बेटा अमिनुर हुसैन के कंधों पर कूचबिहार के 'रास मेला उत्सव' की साज-सज्जा की जिम्मेदारी आ गई थी.
अल्ताफ़ हुसैन का इलाज़ कूचबिहार के एमजीएन मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चल रहा था. शनिवार को अल्ताफ़ हुसैन के सफ़र पर विराम लग गया. अल्ताफ़ हुसैन की मौत की खबर जैसे ही मिली,
कूचबिहार के हरिन चौरा इलाके के उनके घर पर उन्हें चाहने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी. क्या हिन्दू - क्या मुसलमान, बच्चे-बूढ़े से लेकर जवान तक आ पहुंचे. औरतें अलग गमगीन थीं.
देखते-देखते पूरा कूचबिहार गमगीन हो गया। खबर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक भी पहुंची. उन्होंने गहरा शोक जताते हुए कूचबिहार जिला प्रशासन को अल्ताफ़ हुसैन को राजकीय मर्यादा के साथ दफनाने का निर्देश दिया.
क्या है रास मेला उत्सव
'रास मेला उत्सव' असल में उस उत्सव को कहते हैं, जिसमें भगवान कृष्ण, राधा के साथ नृत्य में तल्लीन रहते हैं. इस नृत्य में ब्रज की गोपियों भी साथ होती हैं. भागवत पुराण और गीत गोविंद में भी राधा-कृष्ण के इस नृत्य-उत्सव का उल्लेख है. पारंपरिक रूप से कूचबिहार जिले का 'रास उत्सव' काफी मशहूर है.
यह उत्सव हर साल पूर्णिमा के समय नवंबर से दिसंबर माह तक चलता है. पंद्रह से बीस दिनों तक चलने वाले इस 'रास मेला उत्सव' की शुरुआत 15 नवंबर से होती है, जो दिसंबर के पहले हफ्ते तक चलता है। इस 'रास उत्सव' को कूचबिहार में 'विंटर कार्निवल' भी कहा जाता है.
कूचबिहार में दो सौ साल से चला आ रहा है 'रास मेला उत्सव'
कूचबिहार जिले में यह 'रास मेला उत्सव' दो सौ साल से चला आ रहा है. कहते हैं कि कूचबिहार के 17वें राजा हरेंद्र नारायण के समय में यह पहली दफा हुआ था. फिर जब उनके वंशज आए, तो यह रास मेला उत्सव और धूमधाम से होने लगा.
कहते हैं कि राजा मदन मोहन के ज़माने में इस उत्सव का स्वरूप थोड़ा बदला. उसी समय अल्ताफ़ हुसैन के पूर्वजों को इस उत्सव को सजाने की जिम्मेदारी दी गई. बड़े-बड़े तोरणद्वार बनने लगे.
इस 'रास मेला उत्सव' का आकर्षण दूर-दराज तक फैला और लोग इस उत्सव को देखने के लिए खींचते चले आए. अब तो इस 'रास उत्सव' को देखने के लिए लोग नवंबर माह का बेसब्री से इंतजार करते हैं.
दो बार इस 'रास मेला उत्सव' में विराम भी लगा है
कहते हैं कि कूचबिहार के इस मशहूर 'रास मेला उत्सव' पर दो दफा विराम भी लगा है यानी दो बार यह उत्सव नहीं हो सका. एक दफा सन् 1912 में जब हैजा की बीमारी फैली थी और दूसरी दफा 2020 में कोरोना के समय.