मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
दिल्ली के लुटियंस जोन में स्थित इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर (आईआईसीसी) के शासी निकाय का चुनाव इस बार हाई प्रोफाइल हो गया है. 11 अगस्त को होने वाले सेंटर के चुनाव में सीनियर कांग्रेस लीडर सलमान खुर्शीद और अफजल अमानुल्लाह जैसे वरिष्ठ पूर्व आईएएस ने अपने पूरे पैनल के साथ अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोकी है. अध्यक्ष पद के इन दावेदारों में एक नाम पूर्व आईआरएस अबरार अहमद का भी है.
मगर यह बहुत कम लोगों को पता है कि अबरार अहमद, न केवल आईआईसीसी के स्थापना काल से जुड़े हुए हैं, बल्कि उन्होंने दो बार सेंटर की जमीन हाथ से जाते-जाते बचाई है.आवाज द वाॅयस से बातचीत में अबरार अहमद ने इसका खुलासा किया.
उन्होंने बताया कि एक बार तो आईआईसीसी की जमीन हाथ से निकल ही चुकी थी. इत्तेफाक से इसकी जानकारी उन्हें मिल गई और भाग दौड़कर किसी तरह सेंटर की जमीन स्थानांतरित होने से बचाई गई.
उल्लेखनीय है कि 1980-81 में जब इस्लामिक कैलंडर की 14वीं हिजरी पूरी होने पर दुनियाभर के मुसलमान जश्न मना रहे थे, तब दिल्ली में रहकर उच्च पदों की नौकरी के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कुछ छात्रों ने देश में एक ऐसे सेंटर की परिकल्पना की ताकि यहां बैठ कर वे न केवल अध्ययन कर सकें, इस्लामिक दृष्टि से भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को आगे भी बढ़ाएं.
अबरार अहमद ने आवाज द वाॅयस से बातचीत में कहा, “उसके बाद भाग दौड़ शुरू हुई. इसमें अधिक सक्रियता दिखाई अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने. अबरार अहमद वैसे तो यूपी के हमीरपुर से हैं, पर शिक्षा उन्होंने एएमयू से ली है.
उनके अनुसार, इस मसले को लेकर जब वे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिले तो वह आईआईसीसी के लिए जमीन आवंटित करने को राजी हो गईं.अबरार अहमद ने बताया कि काफी प्रयासों के बाद जमीन का आवंटन और संस्था का पंजीकरण कराया गया.
इस जमीन के बदले हमदर्द के मालिक हकीम अब्दुल हमीद ने अपनी तरफ से केंद्र सरकार को 10 लाख रुपये का भुगतान किया था.अबरार अहमद दावा करते हैं कि वे जमीन आवंटन से लेकर जमीन के पंजीकरण कराने, संस्था के नियम-कायदे के निर्माण और नीति तय करने में अन्य लोगों के साथ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि तब आईआईसीसी के छोटे-मोटे काम चंदे से हो जाया करते थे. मगर जब आईआईसीसी के भवन निर्माण की बारी आई तो 90 के दशक में 10 करोड़ रुपये जैसी भारी रकम इकट्ठा करने में उनके पसीने छूट गए.
उन्होंने बताया कि जमीन आवंटन के पांच वर्षों तक आईआईसीसी के भवन निर्माण का कोई काम नहीं हुआ. आज जहां सेंटर का भवन है, वहां पहले खंडहर हुआ करता था. उन्होंने बताया कि जब हमें सेंटर की मिटिंग करनी होती थी तो खंडहर की जमीन की सफाई किया करते थे.
उन्होंने बताया कि ऐसे ही एक मिटिंग के दौरान उन्हें जमीन और संस्था के रजिस्ट्रेशन की स्थिति की जानकारी लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके लिए वे जब सरकारी दफ्तरों की खाक छान रहे थे तब पता चला कि आईआईसीसी की जमीन दक्षिण भारत की किसी गैर सरकारी संस्था को स्थानांतरित करने की तैयारी चल रही है.
अबरार अहमद ने बताया कि तब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों की जमघट तत्कालीन सांसद एवं मेवात के चैधरी तैयाब हुसैन की कोठी पर लगा करती थी. वहां पहुंचकर अबरार ने अपने साथियों को इस बारे में बताया. उसके बाद वह और उनके दोस्तों ने भाग-दौड़कर किसी तरह आईआईसीसी की जमीन स्थानांतरित होने से बचा लिया.
अबरार अहमद ने खुलासा किया दूसरी बार उन्होंने आईआईसीसी की जमीन हकीम अब्दुल हमीद के पास जाने से बचाई. उन्होंने बताया कि ऐसे ही एक बैठक में किसी के उकसावे में आकर हकीम अब्दुल हमीद ने आईआईसीसी की जमीन पर यह कहते हुए दावा ठोंक दिया कि चूंकि इसकी कीमत सरकार को उन्होंने चुकाई है, इसलिए यह जमीन अब उनकी है.
वह इस जमीन पर हमदर्द के लिए रिसर्च सेंटर स्थापित करना चाहते हैं. अबरार अहमद ने बताया कि यह सुनकर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए. मगर उन्होंने इसका कड़े शब्दों में विरोध किया और बताया कि यह जमीन कौम की अमानत है. यहां आईआईसीसी की इमारत ही बनेगी.
अबरार अहमद कहते हैं कि बाद में वह और उनके साथी हकीम अब्दुल हमीद के घर गए. उनसे बैठक में ऊंची आवाज में बात करने के लिए माफी मांगी. साथ ही उन्हें समझाया कि उन्होंने जमीन के लिए 10 लाख रुपये का भुगतान अवश्य किया है, पर यह भूखंड आईआईसीसी के नाम पंजीकृत है. यहां वह हमदर्द का रिसर्च सेंटर नहीं खोल सकते.
अबरार अहमद ने बातचीत में कहा कि काफी समझाने के बाद हकीम अब्दुल हमीद उनकी बात समझ गए. फिर बड़ी मशक्कतों के बाद 10 करोड़ रुपये का फंड इकट्ठा कर वहां आलीशान आईआईसीसी की इमारत बनाई गई, जो आज भी लोदी रोड पर 72 हजार वर्ग फीट पर बड़े शान से खड़ी है.