आदिल फ़राज़
इस हफ़्ते, इज़रायली प्रधानमंत्री ने ग्रेटर इज़राइल का नया नक्शा जारी किया, जिसने पूरी अरब दुनिया को चौंका दिया.यह नक्शा, जिसमें फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, और जॉर्डन के कुछ हिस्सों को इज़राइल का हिस्सा दिखाया गया, न केवल वैश्विक राजनीति में एक नया विवाद उत्पन्न कर रहा है, बल्कि यह उस ज़ायोनी अवधारणा को फिर से उभार रहा है, जिसका लक्ष्य मध्य पूर्व में इज़राइल के विस्तार का है.
इस कदम के बाद, अरब देशों से प्रतिक्रिया भी मिली, लेकिन ज्यादातर देशों ने इस पर मूक रहकर इज़राइल की विस्तारवादी नीतियों को सहमति दी है.जॉर्डन, मिस्र जैसे देशों, जिन्होंने पहले इज़राइल को एक वैध राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था, अब इस नक्शे पर खामोश रहे हैं.
इसने एक नया सवाल खड़ा किया है कि क्या इज़राइल की इन विस्तारवादी योजनाओं के खिलाफ अरब देशों में एकजुट विरोध उठेगा? क्या इज़राइल की ज़ायोनी नीतियों को वैश्विक स्तर पर चुनौती दी जाएगी? फिलहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि अरब देशों में इज़राइल के खिलाफ किसी मजबूत और निर्णायक कदम की कमी है.
ग्रेटर इज़राइल का नया नक्शा और उसका प्रभाव
इज़राइल के इस नक्शे में फिलिस्तीन के अलावा, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन के कुछ हिस्सों को इज़राइल के हिस्से के रूप में दिखाया गया है.लेकिन यह केवल एक कड़ा संकेत है, क्योंकि ज़ायोनी विचारधारा का मूल लक्ष्य नील नदी से लेकर फरात नदी तक के क्षेत्र को इज़राइल का हिस्सा बनाना है.
इस नक्शे में तुर्की, ईरान, मिस्र, इराक और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हो सकते थे, लेकिन इस समय यह नक्शा केवल अरब देशों तक सीमित है.इज़रायल के मंत्री बेजेल स्मोट्रिच ने 2023में कहा था कि यह नक्शा 'ग्रेटर इज़राइल' की अवधारणा को दर्शाता है, जिसमें जॉर्डन को इज़राइल का हिस्सा बताया गया था.
इस नक्शे के जारी होने पर सऊदी अरब, जॉर्डन और फिलिस्तीन की सरकारों ने निंदा की है.सऊदी अरब ने इसे एक अतिवादी कदम बताते हुए कहा कि इससे इज़रायली कब्ज़े को बढ़ावा मिलेगा और यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है.फिलिस्तीन और जॉर्डन ने भी इस कदम की कड़ी आलोचना की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन आलोचनाओं से इज़राइल की नीतियां बदल जाएंगी?
इसका उत्तर स्पष्ट है – नहीं.इज़राइल जानता है कि अरब देशों के पास इसे रोकने की न तो सामर्थ्य है और न ही इच्छाशक्ति.गाजा युद्ध के दौरान, जब इज़राइली सेना ने मुस्लिम देशों की उदासीनता का सामना किया, तो यह स्पष्ट हो गया कि इज़राइल को कोई गंभीर विरोध नहीं मिलेगा.
महामहिम महमूद अब्बास और फिलिस्तीन
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास, जो हमेशा से इज़राइल समर्थक रुख अपनाते रहे हैं, की भूमिका भी इस विवाद में अहम है.गाजा में इज़राइल के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोग फिलिस्तीनी भूमि की मुक्ति के लिए बलिदान दे रहे हैं, लेकिन महमूद अब्बास की सरकार गाजा को एक अलग राज्य के रूप में खत्म करने की कोशिश कर रही है.
अब्बास के रुख से फिलिस्तीनी आंदोलन कमजोर हो सकता है, क्योंकि वह औपनिवेशिक ताकतों के हाथों का मोहरा बन चुके हैं.हालांकि, गाजा में संघर्षरत लोग फिलिस्तीनी भूमि की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार हैं, लेकिन महमूद अब्बास की नीतियों ने इस संघर्ष को आंतरिक विखंडन में बदल दिया है.
'वादा किया हुआ देश' की पौराणिक अवधारणा
ग्रेटर इज़राइल की अवधारणा को समझने के लिए हमें उसके धार्मिक और ऐतिहासिक संदर्भों में झांकना होगा.ज़ायोनिज़्म, एक यहूदी राष्ट्रीय आंदोलन, ने यह धारणा बनाई कि यहूदी समुदाय को नील नदी से लेकर फरात नदी तक फैले हुए विशाल भूभाग पर अपना राज्य स्थापित करना चाहिए.यह धारणा 'वादा किए गए देश' की अवधारणा से उत्पन्न हुई है, जिसे थियोडोर हर्ज़ल ने प्रचारित किया.
ज़ायोनिज़्म के संस्थापक हर्ज़ल के अनुसार, यह भूमि प्राचीन यहूदी राज्य की भूमि थी और इसका विस्तार करना यहूदियों का धर्मिक और ऐतिहासिक अधिकार था.इस मान्यता के अनुसार, इज़राइल का विस्तार केवल फिलिस्तीन तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसमें जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, इराक, तुर्की, और अन्य मध्य पूर्वी देशों का भी समावेश होना चाहिए.यह अवधारणा इसराइल के लिए एक पवित्र लक्ष्य बन चुकी है, जिसे वह धीरे-धीरे अपनी नीतियों में लागू कर रहा है.
मध्य-पूर्व में बदलते समीकरण
इज़राइल की इस विस्तारवादी नीति को न केवल अरब देशों से, बल्कि वैश्विक समुदाय से भी चुनौती मिल रही है.खासकर तुर्की के राष्ट्रपति रजब तईप एर्दोगान, जो ओटोमन साम्राज्य की पुनर्निर्माण की बात करते हैं, को इस पर स्पष्ट रुख अपनाने की आवश्यकता है.सवाल यह है कि क्या तुर्की, जो सीरिया के मामलों में इज़राइल के साथ मिलकर काम कर रहा है, भविष्य में ग्रेटर इज़राइल के विस्तार का हिस्सा बनेगा? या फिर वह इज़राइल के खिलाफ खड़ा होगा? यह केवल समय ही बताएगा.
ग्रेटर इज़राइल की अवधारणा केवल एक राजनीतिक योजना नहीं, बल्कि एक धार्मिक और ऐतिहासिक विचारधारा पर आधारित है, जो न केवल फिलिस्तीन, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व को प्रभावित करती है.ज़ायोनिज़्म के अनुयायी मानते हैं कि नील नदी से लेकर फरात नदी तक का क्षेत्र उनका पवित्र अधिकार है.इसके चलते इज़राइल की विस्तारवादी नीतियों ने मध्य-पूर्व में एक नई अशांति पैदा कर दी है, जिसे केवल समय ही सुलझा सकता है.
हालांकि, वर्तमान स्थिति में अरब देशों के पास इज़राइल की इस योजना को रोकने की ताकत नहीं दिखाई देती, और इज़राइल की नीतियां निरंतर मजबूत होती जा रही हैं.
(लेखक वरिष्ठ टिप्पीकार हैं. यह उनके विचार हैं)