गुलाम कादिर
विश्व हिजाब दिवस (WHD) और यास्मीन मोहम्मद की कहानी दो विपरीत दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करती हैं, जिनमें एक ओर मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने को बढ़ावा देने का अभियान है, जबकि दूसरी ओर हिजाब पहनने के खिलाफ जागरूकता फैलाने की कोशिश.इन दोनों विचारों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर गहरे विवाद और विचार-विमर्श होते हैं, जो वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित करते हैं.
विश्व हिजाब दिवस: एक आंदोलन की शुरुआत
1 फरवरी, 2013 को पहले वार्षिक विश्व हिजाब दिवस (WHD) का आयोजन किया गया, जिसे बांग्लादेशी-न्यू यॉर्कर नज़मा खान ने शुरू किया.नज़मा का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सम्मानित करना था, जो हिजाब पहनकर शालीनता से जीवन जीने का चुनाव करती हैं.
यह दिवस एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसमें महिलाएं अपने धार्मिक अभिव्यक्ति के अधिकार का पालन करते हुए हिजाब पहनने के लिए प्रेरित होती हैं.नज़मा खान ने यह विचार तब शुरू किया जब उन्होंने न्यू यॉर्क शहर में हिजाब पहनने के कारण भेदभाव और अपमान का सामना किया था.
नज़मा का कहना है, "हिजाब पहनने के कारण मुझे कई बार अपमानित किया गया.यह अनुभव मुझे हिजाब पहनने को लेकर उठाए जाने वाले सवालों का समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित किया." उनका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने को समझने और स्वीकारने की ओर अग्रसर करना था.
अबयहदुनिया भर में 150 से अधिक देशों में मनाया जाता है और इसमें कई प्रमुख व्यक्ति, स्वयंसेवक, और राजदूत शामिल होते हैं.2017 में, न्यूयॉर्क राज्य ने इस दिन को आधिकारिक मान्यता दी, और साथ ही यूके में भी इसे राजनीतिक मंचों पर समर्थन मिला.
विश्व हिजाब दिवस के प्रभाव और बढ़ती जागरूकता
WHD के समर्थन में कई देशों के राजनेताओं और मशहूर हस्तियों ने भी अपनी आवाज़ उठाई है.2018 में, स्कॉटलैंड ने तीन दिवसीय प्रदर्शनी आयोजित की, जिसमें स्कॉटलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री निकोला स्टर्जन और कई अन्य नेताओं ने इसका समर्थन किया.इसके अलावा, फिलीपींस ने भी यह प्रस्ताव पारित किया कि हर साल फरवरी के पहले दिन को राष्ट्रीय हिजाब दिवस के रूप में मनाया जाए.
इसके साथ ही, WHD संगठन ने 2018 मेंगैर-लाभकारी संगठन का दर्जा प्राप्त किया, जिसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और पूर्वाग्रह को खत्म करना है.नज़मा खान का मानना है कि महिलाओं को यह चुनने का अधिकार होना चाहिए कि वे क्या पहनें, और इस दिवस का उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाना है.
यास्मीन मोहम्मद: हिजाब के खिलाफ एक वैकल्पिक दृष्टिकोण
दूसरी ओर, यास्मीन मोहम्मद, एक कनाडाई मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखिका और पूर्व मुस्लिम, हिजाब पहनने के खिलाफ एक मुखर आवाज़ हैं.यास्मीन ने अपनी आत्मकथा में अपने जीवन के उन कठिन दिनों का वर्णन किया, जब वह अल-कायदा के एक कार्यकर्ता के साथ जबरन शादी करने के बाद उससे भागने के लिए मजबूर हुईं.यास्मीन का मानना है कि हिजाब महिलाओं के उत्पीड़न का एक उपकरण है और इसे धार्मिक अभिव्यक्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
यास्मीन ने 1 फरवरी को 'नो हिजाब डे' अभियान की शुरुआत की, जो एक ऑनलाइन अभियान है, जिसका उद्देश्य हिजाब के खिलाफ जागरूकता फैलाना और उन महिलाओं का समर्थन करना है, जो अपने शरीर और पहनावे के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना चाहती हैं.उनका कहना है, "हिजाब एक उत्पीड़न का प्रतीक है, जो महिलाओं को समाज में उत्पीड़ित करता है."
यास्मीन ने इस्लाम के खिलाफ अपनी आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिमी समाज इस्लाम को बढ़ावा देने के बजाय कट्टरपंथी इस्लाम को सक्षम बना रहा है, जिससे मुस्लिम महिलाओं की स्थिति और खराब हो रही है.उन्होंने अपनी किताब "Unveiled: How Western Liberals Empower Radical Muslims" में इस विषय पर विस्तार से लिखा है.उनका मानना है कि महिलाओं को हिजाब के पहनने से मुक्त होना चाहिए और यह एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है.
धार्मिक और सांस्कृतिक संघर्ष: क्या हम एक समाधान पा सकते हैं?
विश्व हिजाब दिवस और यास्मीन मोहम्मद के दृष्टिकोण दोनों ही मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म देते हैं.एक ओर जहां नज़मा खान हिजाब पहनने के अधिकार को बढ़ावा देती हैं, वहीं यास्मीन मोहम्मद इसे एक उत्पीड़न के रूप में देखती हैं.इन दोनों विचारों के बीच धार्मिक सहिष्णुता, महिलाओं के अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गहरे सवाल उठते हैं.
यह सवाल कि क्या हिजाब एक धार्मिक प्रतीक है या एक सामाजिक दबाव का हिस्सा, अभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है.जहां एक ओर विश्व हिजाब दिवस हर साल महिला सशक्तिकरण और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, वहीं यास्मीन मोहम्मद जैसे लोग इस पर सवाल उठाते हैं और महिलाओं की स्वतंत्रता के अधिकार की वकालत करते हैं.
इन दो दृष्टिकोणों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए जरूरी है कि हम हर महिला की स्वतंत्रता और उसके व्यक्तिगत निर्णयों का सम्मान करें, चाहे वह हिजाब पहनने का चुनाव करती है या नहीं.यह एक ऐसा मुद्दा है, जो न केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए विचार करने योग्य है.
( वरिष्ठ टिप्पीकार हैं )