रोज़गार के हर क्षेत्र में महिलाएं सशक्त

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-03-2025
Women empowered in every field of employment
Women empowered in every field of employment

 

 

 

narendraनरेंद्र कुमार शर्मा

रोज़गार की दुनिया में आज महिलाएं किसी से कम नहीं हैं. समय के साथ उनकी भूमिका समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अहम होती जा रही है. जब हम रोजगार की बात करते हैं, तो हमारी आँखों के सामने संगठित क्षेत्रों में काम करने वाली बड़ी कंपनियों या ऑफिसों के लोग उभरते हैं.

लेकिन असल में, समाज के असली नायक वे लोग हैं जो असंगठित क्षेत्रों में काम करके न केवल अपनी आजीविका चला रहे हैं, बल्कि रोजगार के नए आयाम भी गढ़ रहे हैं.इस कार्य में महिलाओं का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है. खासकर राजस्थान के जैसे राज्यों में, जहां महिलाएं अपनी मेहनत और हिम्मत से रोज़गार की नई राहों को खोल रही हैं.

केसरी देवी की चाय की दुकान - परिवार के लिए एक नई उम्मीद

48 वर्षीय केसरी देवी की दिनचर्या सुबह जल्दी शुरू होती है. जयपुर के झालाना इंस्टीट्यूशनल एरिया की मुख्य सड़क पर उनका छोटा-सा चाय का ठेला है, जहां वे चाय, बिस्कुट, सिगरेट, तंबाकू और अन्य रोजमर्रा के सामान बेचती हैं.

उनके पति पहले दैनिक मजदूरी करते थे, लेकिन उनकी खराब स्वास्थ्य के कारण अब वे घर पर ही रहते हैं. ऐसे में केसरी देवी ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए खुद कमाने का निर्णय लिया.

वे कहती हैं, "शुरुआत में डर था, लेकिन अब पूरी मेहनत से काम करती हूं." उनका स्टॉल दिनभर चलता है, लेकिन शाम को दफ्तर से लौटते लोगों की भीड़ बढ़ जाती है. हालांकि उन्हें हमेशा इस डर के साथ काम करना पड़ता है कि कहीं उनकी दुकान सरकारी जमीन पर होने के कारण हटाई न जाए. लेकिन इन समस्याओं के बावजूद केसरी देवी अपने काम में पूरी निष्ठा के साथ लगी रहती हैं और उम्मीद करती हैं कि उनका काम कभी बंद न हो.

गीता देवी की कपड़े धोने और प्रेस करने की दुकान

55 वर्षीय गीता देवी ने भी अपनी मेहनत से एक नया रास्ता अपनाया. आठ साल पहले जब उनका परिवार रोजगार की तलाश में जयपुर आया, तो उनके पति और बड़े बेटे की कमाई इतनी नहीं थी कि पूरे परिवार का भरण-पोषण हो सके.

ऐसे में गीता देवी ने कपड़े धोने और प्रेस करने का काम शुरू किया. उनकी दुकान स्थायी नहीं है, लेकिन फिर भी वे हर दिन काम करके अपनी और अपने परिवार की रोज़ी-रोटी चला रही हैं. वे कहती हैं, "यहां रोजगार के कई अवसर हैं, बस हमें मेहनत से काम करना आना चाहिए."

हालांकि, उनकी दुकान भी सरकारी ज़मीन पर बनी है, और इसे कभी भी हटाया जा सकता है. फिर भी वे अपनी मेहनत से अपना काम जारी रखे हुए हैं.

साप्ताहिक हाट बाजार में महिला दुकानदारों की भागीदारी

जयपुर में हर हफ्ते कई इलाकों में साप्ताहिक हाट बाजार लगते हैं, जहां कई महिलाएं अस्थायी रूप से दुकानें लगाकर अपने उत्पाद बेचती हैं. झालाना में भी ऐसा ही एक बाजार लगता है, जिसमें महिलाएं कपड़े, बर्तन, खिलौने, घरेलू सामान और अन्य आवश्यक वस्तुएं बेचने आती हैं.

37 वर्षीय कविता और 57 वर्षीय अनुपमा देवी इसी बाजार में अपनी कपड़ों की दुकान लगाती हैं. कविता इंदिरा बाजार से कपड़े खरीदकर लाती हैं और उन्हें यहां बेचती हैं. वे बताती हैं, "हमारा ग्राहक वर्ग बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन खासतौर पर युवा लड़के और लड़कियां हमारे कपड़ों को पसंद करते हैं."

अनुपमा देवी भी कभी इंदिरा मार्केट तो कभी सकलौटी जैसे होलसेल मार्केट से कपड़े खरीदकर जयपुर के विभिन्न साप्ताहिक बाजारों में बेचने जाती हैं. इस तरह के बाजार में महिलाएं न केवल अपनी मेहनत से रोज़गार कमाती हैं, बल्कि खुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र भी बनाती हैं.

संध्या की किचन के सामान की दुकान

जयपुर के एक अन्य साप्ताहिक बाजार में संध्या अपनी दुकान लगाती हैं, जिसमें वे किचन में उपयोग होने वाले छोटे-छोटे प्लास्टिक के सामान बेचती हैं. उनकी दुकान की खासियत यह है कि उनका कोई भी उत्पाद 20 रुपये से अधिक का नहीं होता, जिससे ग्राहक अधिक संख्या में आते हैं.

संध्या का कहना है, "मेरा सपना है कि कभी मेरी अपनी स्थायी दुकान हो, लेकिन फिलहाल यह भी काफी है." उनके जैसे कई अन्य छोटे व्यवसायियों के लिए यह बाजार जीवनयापन का एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है.

 बागवानी का कार्य - धापू देवी और सोनी देवी का संघर्ष

रोज़गार की दुनिया सिर्फ दुकानदारी तक सीमित नहीं है. कई महिलाएं मेहनत करके भी अपनी आजीविका चला रही हैं. झालाना के सरकारी भवनों में बागवानी का काम करने वाली धापू देवी और सोनी देवी इस संघर्ष का उदाहरण हैं.

ये दोनों महिलाएं सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक काम करती हैं, जिसमें वे पौधों की देखभाल, सफाई, खाद डालने और पानी देने जैसे कार्य करती हैं. महीने में उन्हें लगभग 4,000-5,000 रुपये की आमदनी होती है, जो उनके परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होती, लेकिन फिर भी ये महिलाएं इसे अपनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं.

धापू देवी कहती हैं, "यह काम कठिन ज़रूर है, लेकिन हमें इससे रोज़गार मिला है. जब तक हमें कोई और अच्छा अवसर नहीं मिलता, हम यही काम करेंगे."

इन सभी महिलाओं की कहानियां यह साबित करती हैं कि रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. चाहे वह छोटी-सी चाय की दुकान हो, कपड़े प्रेस करने का काम हो, साप्ताहिक बाजार में कपड़े और घरेलू सामान बेचना हो या फिर बागवानी करना - हर जगह महिलाएं न केवल काम कर रही हैं, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा कर रही हैं.

ये महिलाएं न केवल अपनी मेहनत से खुद को सशक्त बना रही हैं, बल्कि समाज में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन रही हैं. हालांकि, उनका सफर कभी आसान नहीं होता। स्थायी दुकान का न होना, सरकारी जमीन पर व्यवसाय करने का खतरा, कम आमदनी और कभी-कभी समाज की बेवजह की बंदिशें - इसके बावजूद ये महिलाएं अपने हौसले से इन चुनौतियों को पार कर रही हैं और साबित कर रही हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं.