प्रमोद जोशी
गुरुवार 8 सितंबर को भारत और चीन की ओर से अचानक घोषणा की गई कि कोर कमांडरों के बीच 16 वें दौर की बातचीत के आधार पर पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स (पेट्रोलिंग पिलर-15) इलाक़े से दोनों सेनाएं पीछे हट रही हैं.
भारत और चीन ‘गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स’ इलाके से न केवल पीछे हटने पर सहमत हुए हैं, बल्कि पूर्ण शांति बहाली के लिए दोनों ओर बने अस्थायी निर्माणों को गिराने पर भी सहमत हुए हैं. जिस समय आप इस आलेख को पढ़ रहे हैं, यह प्रक्रिया पूरी हो गई है.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपेक्षाकृत कम विवाद वाले या सामरिक दृष्टि से चीन के लिए कम महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर चीन रियायतें सकता है, पर उसकी दिलचस्पी विवाद के सभी मसलों को तेजी से हल करने में नहीं है.
राजनीतिक कारण
इस घोषणा के पीछे राजनीतिक कारण हैं, जो 15-16 सितंबर को समरकंद में हो रहे एससीओ शिखर सम्मेलन से जुड़े हैं. 16 वें दौर की वार्ता 17 जुलाई को हुई थी, उसमें किए गए फैसले सितंबर में लागू करने की पृष्ठभूमि को भी समझने और भारत-चीन रिश्तों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है.
इस हफ्ते 15-16सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन होने जा रहा है, जिसके हाशिए पर चीन के राष्ट्रपति से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीधी मुलाकात हो सकती है.
सीमा पर स्थिति में सुधार आए बगैर नरेंद्र मोदी की शी चिनफिंग से मुलाकात संभव नहीं थी. उस स्थिति में राष्ट्रीय-राजनीति में उसकी आलोचना होती. अब जबकि सेनाएं पीछे हटी हैं, तो उम्मीद है कि दोनों नेता सकारात्मक सोच के साथ मिल सकते हैं.
इस समय चीन ताइवान को लेकर अमेरिका के साथ विवाद में फँसा है. वह भारत के साथ रिश्तों में ज्यादा कड़वाहट नहीं चाहता. साथ ही भारत भी चीन के साथ रिश्तों को एक हद से ज्यादा बिगाड़ना नहीं चाहेगा.
बदलते हालात
वैश्विक-घटनाक्रम भी बदल रहा है. समरकंद-सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ भी शामिल होंगे. भारत ने इस बीच अफगानिस्तान में तालिबान-प्रशासन से संपर्क स्थापित किया है और काबुल में हमारे दूतावास ने काम शुरू कर दिया है.
भारत की दृष्टि से यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस संगठन की रोटेशनल पद्धति के धार पर इस सम्मेलन से भारत की अध्यक्षता शुरू होगी, जो सितंबर 2023तक चलेगी. एससीओ का अगला शिखर सम्मेलन भारत में होगा.
खबरें हैं कि पाकिस्तान चाहता है कि भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू हो. रूस की कोशिश है कि भारत और चीन के रिश्तों में नरमी आए, पर यह सब इतना सरल नहीं है. पिछले हफ्ते भारत और जापान के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ के निहितार्थ पर भी हमें ध्यान देना होगा. साथ ही अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16विमानों के कल-पुर्जों की सप्लाई का जो फैसला किया है, वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
सैनिकों की वापसी
बहरहाल भारत और चीन के कोर कमांडरों के बीच 16दौर की बातचीत के बाद अब उन सभी चार जगहों से दोनों देशों के सैनिक पीछे हट गए हैं, जहां पर दो साल के दौरान आमने-सामने आ गए थे. पहले पैंगोंग त्सो के फिंगर एरिया और गलवान में पीपी-14पर सैनिक पीछे हटे. फिर गोगरा में पीपी-17से सैनिक हटे और अब गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स एरिया में पीपी-15से सैनिक हटे हैं.
यह महज ‘डिसइंगेजमेंट’ है. यानी कि इन चारों जगहों पर दोनों देशों के सैनिक अपने इलाकों में कुछ किलोमीटर पीछे चले गए हैं। आमने-सामने नहीं रहे. जिन जगहों पर डिसइंगेजमेंट हुआ है, वहां पर ‘नो-पेट्रोलिंग ज़ोन’ बना दिए गए हैं.
जब तक कोई स्थायी व्यवस्था नहीं हो जाती, दोनों सेनाएं इस ज़ोन में गश्त नहीं लगाएंगी. डिसइंगेजमेंट का अगला चरण होता है, डी-एस्केलेशन. यानी भारी फौजी साजो-सामान को हटाना. इसके बाद होता है, डी-इंडक्शन. यानी सेना और भारी साजो-सामान को पुरानी स्थिति में वापस लाना.
इस समय भारत के तकरीबन पचास हजार सैनिक पूरे साजो-सामान के साथ इस इलाके में तैनात हैं. करीब इतने ही चीनी सैनिक भी दूसरी तरफ हैं. फौजों की पूरी तरह वापसी जब तक नहीं होती, तब तक नहीं कहा जा सकता कि स्थिति सामान्य हो गई है. बहरहाल जो कुछ हुआ है, उसे हालात सामान्य करने की दिशा में एक कदम माना जा सकता है.
देपसांग और डेमचॉक
अभी दो इलाके ऐसे हैं, जहाँ से वापसी का समझौता नहीं हुआ है. ये हैं देपसांग और डेमोचक (या डेमचॉक). डेमचॉक में चीनी सैनिकों ने पांच टेंट लगाए थे, जिनमें से तीन टेंट अब भी खड़े हैं.देपसांग में चीन ने पीपी-10से पीपी-13तक भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग रोकी थी.
पहले वाई जंक्शन के आगे तक भारतीय सैनिक गश्त के लिए जाते थे. अब चीनी सैनिक वहीं पर भारतीय सैनिकों को रोक देते हैं. इस इलाके में चीन ने 2013के गतिरोध के दौरान अपने सैनिक तैनात किए थे.
भारतीय सड़क
सामरिक लिहाज से देपसांग इलाका बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ने इस इलाके में 255किलोमीटर लंबी एक सड़क बनाई है, जो अब चीनी तोपखाने की मार में आ गई है. यह स्थान भारत के दौलत बेग ओल्दी हवाई पट्टी के नजदीक है और यहां से कराकोरम दर्रा करीब 30किलोमीटर दूर है.
2013 में भी इस इलाके में चीनी सैनिक घुसे थे और उन्होंने भारतीय इलाके में टेंट लगा लिए थे. भारत का ध्यान इस ओर गया और 2019में इस इलाके में देश की सबसे दुर्गम और सबसे महत्वपूर्ण सड़क बनकर तैयार हो गई थी. इसकी मदद से सेना को जम्मू कश्मीर के पूर्वोत्तर में स्थित लद्दाख के सीमांत क्षेत्र तक आने-जाने के लिए बारहों मास चलने वाली सड़क मिल गई है.
इस क्षेत्र में सन 1962 का चीन युद्ध तो हुआ ही था, उसके बाद 2013 और 2014 में देपसांग क्षेत्र में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आकर खड़ी हो गईं थीं. लेह और कराकोरम दर्रे के बीच सड़क का 255किलो मीटर लम्बा दाब्रुक-श्योक-दौलत बेग ओल्दी (डीएस-डीबीओ) सेक्शन 2019में तैयार हो गया था। इस रास्ते में पड़ने वाली बर्फानी नदियों पर 37पुल बनाए गए हैं.
अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370निष्प्रभावी होने के बाद से चीन की निगाहें सामरिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण इस इलाके पर हैं. इस इलाके से चीन की वापसी को ही हम सफलता मान सकते हैं. भारत को काफी धैर्य के साथ इस मसले को सुलझाना होगा.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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