क्या मीडिया ट्रायल जारी रहेगा ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-11-2024
Will media trials continue?
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राहत मिन्हाज

 मीडिया ट्रायल क्यों हो रहे हैं? उत्तर सीधा है. इसका मुख्य कारण लंबी प्रक्रिया और न्यायिक कार्यवाही में विश्वास की कमी है. जिस संदर्भ में भारत-बांग्लादेश के साथ-साथ तीसरी दुनिया के विकासशील देशों का मीडिया भी एक तरह के 'ट्रायल' की ओर झुकता है. मीडिया ट्रायल हानिकारक क्यों हैं? उत्तर: किसी भी व्यक्ति की जीवन भर की प्रतिष्ठा एक पल में नष्ट हो सकती है. प्रोफेशनल लाइफ बर्बाद हो सकती है. सामाजिक रिश्ते ख़राब हो सकते हैं.

मीडिया ट्रायल से व्यक्ति का सामान्य जीवन भी बाधित हो सकता है. किसी व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा से समझौता किया जा सकता है.सूचना प्रौद्योगिकी के विकास और इंटरनेट के प्रसार ने मीडिया परीक्षण की प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया है.

इसमें दुष्प्रचार, डीपफेक समेत कई तरह के सामान जोड़े गए हैं. हालाँकि, निष्पक्ष पत्रकारिता को बनाए रखने के लिए मीडिया की इस नकारात्मक प्रथा से बचना चाहिए. अगर पूरी तरह नहीं रोका गया तो कम से कम मीडिया ट्रायल को ईमानदारी से रोकने की कोशिश करें.

दुष्प्रचार, डीपफेक के युग में चुनावी पत्रकारिता, बदला लेना एक मानवीय प्रवृत्ति है. लोग हमेशा बदला लेना चाहते हैं. किसी भी कीमत पर दुश्मन को हराना और ख़त्म करना चाहता है. इसीलिए लोग जो हाथ में मिलता है उसका उपयोग करते हैं. इस मामले में जनसंचार माध्यमों का प्रयोग भी प्राचीन काल से होता आ रहा है.

एक आयरिश नागरिक जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 में भारत में पहली खबर प्रकाशित की थी. उनके बंगाल गजट (हिक्कीज बंगाल गजट) या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर का मुख्य लक्ष्य वॉरेन हेस्टिंग्स (वॉरेन हेस्टिंग्स) थे. जिनके साथ हिक्की का हितों का टकराव था. इस वजह से हिक्की ने हेस्टिंग्स, उनकी पत्नी और जज एलिजा इम्पे के खिलाफ कुछ भी लिखा. हिक्की के लेखन में उन्हें समलैंगिक भी कहा गया है.

मीडिया ट्रायल से व्यक्ति का सामान्य जीवन भी बाधित हो सकता है. किसी व्यक्ति या उसके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा से समझौता किया जा सकता है.यहां एक ब्रिटिश कहावत प्रासंगिक है. जैसा कि कहा जाता है, यदि आप किसी कुत्ते को मारना चाहते हैं, तो उसे एक बुरा नाम दें . यानी अगर आप किसी को मारना और नष्ट करना चाहते हैं तो आपको उसे एक बुरा, घृणित नाम देना होगा. जो भारत की मीडिया में काफी समय से चल रहा है.

' मीडिया ट्रायल ' मुहावरा कैसे आया?

आमतौर पर किसी बेहद सनसनीखेज घटना या मशहूर-कुख्यात व्यक्ति या उससे जुड़ी घटना का मीडिया ट्रायल होता है. बांग्लादेश में मीडिया ट्रायल का एक प्रमुख परीक्षण मामला पत्रकार दंपति सागर सरवर और मेहरून रूनी की हत्या है.

इस अनसुलझी मर्डर मिस्ट्री में कितने मीडिया ट्रायल के शिकार हुए हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है.भारत में ऐसी घटनाओं के अनेक उदाहरण मिल जाएंगे. अरूषी हत्या कांड या कोरोना काल के प्रारंभिक दौर में तब्लीग जमात के खिलाफ दुष्प्रचार तो आपको याद ही होगा.

ऐसे में 3 फरवरी 1967 को विश्व प्रसिद्ध पत्रकार डेविड फ्रॉस्ट ने बीमा व्यवसायी एमिल सवुंद्रा का साक्षात्कार लिया. इस अवसर पर फ़्रॉस्ट की उनसे काफ़ी बहस हुई. आईटीवी के एक कार्यकारी ने बाद में सवाल किया कि क्या एमिल सवुंद्रा का मुकदमा शो से प्रभावित हो सकता है.

उस समय एमिल सवुंद्रा पर अनियमितताओं और धन के दुरुपयोग के आरोप में अदालत में मुकदमा चलाया जा रहा था. तब से देखा गया है कि बहुत संवेदनशील मामलों में मीडिया किसी विशेष फैसले के पक्ष में स्थिति पैदा कर देता है. ताकि न्याय बाधित हो.

भारत में मीडिया ट्रायल पर कुछ महत्वपूर्ण काम हुआ है. मामले को लेकर कई पीड़ितों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. परिणामस्वरूप, भारत की न्यायपालिका ने इस संबंध में एक स्पष्ट परिभाषा निर्धारित की है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या के अनुसार, मीडिया ट्रायल है- 'किसी अदालत में किसी भी फैसले की परवाह किए बिना अपराध की व्यापक धारणा बनाकर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर टेलीविजन और समाचार पत्र कवरेज का प्रभाव.'

सीधे शब्दों में कहें तो मीडिया ट्रायल अखबार और टेलीविजन कवरेज का परिणाम है. जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को न्यायिक निर्णय से पहले संभवतः दोषी बताकर उसकी प्रतिष्ठा को बदनाम किया जाता है. मीडिया ट्रायल से इंसान का जीना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे फैसले भीड़ की मानसिकता को बढ़ावा देते हैं.

हाल के दिनों में भारत- बांग्लादेश की मीडिया में यह नकारात्मक चलन मौजूद है. मीडिया नीति का न्यूनतम मानक यह है कि परीक्षण से पहले, दोषी पाए जाने से पहले किसी पर किसी भी नकारात्मक तरीके से आरोप नहीं लगाया जा सकता है. किसी भ्रष्ट व्यक्ति को मुकदमे में साबित होने से पहले बुलाना भी मीडिया ट्रायल है. हालाँकि बांग्लादेश सहित भारत में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.. 

मीडिया नीति का न्यूनतम मानक यह है कि परीक्षण से पहले, दोषी पाए जाने से पहले किसी पर किसी भी नकारात्मक तरीके से आरोप नहीं लगाया जा सकता है. किसी भ्रष्ट व्यक्ति को मुकदमे में साबित होने से पहले बुलाना भी मीडिया ट्रायल है.

17 अक्टूबर 2024 को बांग्लादेश के प्रमुख दैनिक इत्तेफाक ने खबर छापी- 'अवामी लीग नेता मेनन की संपत्ति 25 हजार करोड़ रुपये'. इस पूरी खबर को पढ़ने के बाद पता चलता है कि ये एक शिकायत है. इसके पीछे कोई विश्वसनीय स्रोत नहीं है. वर्कर्स पार्टी के राशेद खान मेनन अवामी लीग अवधि के दौरान कई समय तक मंत्री रहे. उन पर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. लेकिन 25 हजार करोड़ रुपये!

यह स्थिति अभी भी नहीं बदली है. बल्कि यह कहा जा सकता है कि अलग-अलग हकीकतों में मीडिया ट्रायल की परंपरा चल रही है. नकारात्मकता से बचने के लिए सबसे पहले मीडिया ट्रायल और मीडिया की स्वतंत्रता की सीमाओं की स्पष्ट समझ होना जरूरी है.

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि न्यायिक प्रक्रिया और मीडिया में समाचार प्रकाशित करने की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग और विशिष्ट है. न्यायिक प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए. हालाँकि, मीडिया में कई तरह से प्रभावित होने की क्षमता है..

इसके अलावा जनसंचार माध्यमों का प्रमुख लक्ष्य जनमत तैयार करना, आम सहमति बनाना है. न्यायिक अदालत का उद्देश्य अपराध के लिए अनुकरणीय सजा के साथ आरोपी या संभावित अपराधी की अधिकतम सुरक्षा प्रदान करना है. भारत की मीडिया में मीडिया ट्रायल की प्रथा बंद होनी चाहिए.  

राहत मिन्हाज, सहायक प्रोफेसर, जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, जगन्नाथ विश्वविद्यालय