क्या कोई सिरोली के इस फैसले से सीखेगा ?

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 07-04-2025
Will anyone learn from Siroli's decision?
Will anyone learn from Siroli's decision?

 

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 हरजिंदर

आज की बेसब्र पीढ़ी हो सकता है कि इसमें भरोसा न करें, लेकिन माना यही जाता है कि लोकतंत्र आखिर में सब कुछ बदल देता है. बेशक इसमें समय लगता है. लंबा समय लगता है . अक्सर बहुत सी निराशाओं के बाद उम्मीद की एक किरण दिखाई देती है. इसका एक उदाहरण देखने के लिए हमें हरियाणा के नूंह जिले में जाना होगा.

यह वही जिला है जहां दो साल पहले एक बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ था. बहुत दिनों तक मीडिया में इसकी खबरें चलती रहीं. 2024 में हरियाणा विधानसभा के चंुनाव थे .दंगों को उससे भी जोड़कर देखा गया. बहुत सी खबरों में बताया गया कि चुनाव के लिए इन दंगों के जरिये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है.

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हालांकि चुनाव से काफी पहले ही स्थिति सामान्य हो गई . हमें नहीं पता कि जब विधानसभा चुनाव हुए तो इस ध्रुवीकरण का उनके नतीजों पर क्या और कितना असर रहा.
अब चलते हैं इसी देश के सबसे पिछड़े जिलों में गिने जाने वाले नूंह के एक गांव सिरोली में. 

नूंह के कईं दूसरे गांवों की तरह ही यह भी मुस्लिम बहुल गांव हैं. गांव के राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अनुसार यहां लगभग 3,296 मुस्लिम मतदाता हैं और हिंदू  मतदाताओं की संख्या लगभग 250 है.

यहां लगभग शब्द का इस्तेमाल इसलिए कि चाहे लोकसभा के चुनाव हों, विधानसभा के या फिर ग्राम पंचायत के, मतदाता सूचियों का वर्गीकरण धर्म के आधार पर नहीं होता.

यह जरूर है कि मतदाता सूचियों में नाम से किसी के धर्म को समझा जा सकता है और अक्सर उसी से इसकी गिनती होती है. इस हिसाब से यह संख्या सही हो सकती है लेकिन यह आधिकारिक नहीं है.

यहां दो साल पहले ग्राम पंचायत का जो चुनाव हुआ उसमें 15 सरपंच चुने जाने थे. इनमें 14 मुसलमान चुने गए और एक हिंदू. और हां इन 15 में आठ महिलाएं हैं. इस ग्राम पंचायत में सरपंच का पद महिला के लिए आरक्षित है. 

पहले यहां सहाना नाम की एक मुस्लिम महिला को सरपंच बनाया गया था. उसके शिक्षा प्रमाणपत्र में कोई गड़बड़ी पाई गई, इसलिए उसे बर्खास्त कर दिया गया. पिछले सप्ताह उसकी जगह नई सरपंच का चुनाव होना.

जिस तरह की राजनीतिक सोच हमारे यहां है उसमें कोई भी सोच सकता है कि किसी मुस्लिम को ही सरपंच चुना जाएगा. लेकिन जो हुआ उसकी दिल्ली में बैठे लोग तो शायद कल्पना भी नहीं कर सकते.पंचों की बैठक में तय हुआ कि नीलिमा चैहान गांव की सरपंच होंगी. सबसे बड़ी बात है कि उन्हें सरपंच चुनने का फैसला सर्वसम्मति से हुआ.

चुनाव के बाद जब कईं जगह इस पर हैरत व्यकत की गई तो नीलिमा केा इस पर कोई आश्चर्य नहीं था. उसने कहा कि उनके गांव में इस तरह की कोई दिक्कत नहीं है. यहां दोनों ही समुदायों में पूरा भाईचारा है.क्या सिरोली का यह फैसला देश के राजनेता सुन रहे हैं ? 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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