भारत को मोहन भागवत के संदेश पर ध्यान क्यों देना चाहिए ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-12-2024
भारत को मोहन भागवत के संदेश पर ध्यान क्यों देना चाहिए ?
भारत को मोहन भागवत के संदेश पर ध्यान क्यों देना चाहिए ?

 

salmanहाजी सैयद सलमान चिश्ती

भारत, जो अपनी विविधता और सह-अस्तित्व की भावना के लिए विश्वभर में जाना जाता है, सदियों से विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं का संगम रहा है. इसी विविधता में एकता और सामंजस्य ने हमें एकजुट रखा है. हाल में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत का बयान, जो समावेशिता और एकता को बढ़ावा देने की वकालत करता है, हमारे लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है. यह बयान भारत को विभाजनकारी ताकतों से ऊपर उठने और शांति व सह-अस्तित्व के वैश्विक नेता के रूप में उभरने के लिए प्रेरित करता है.

मोहन भागवत ने राम मंदिर को हिंदुओं की आस्था और एकता का प्रतीक मानते हुए इस बात पर जोर दिया कि अन्य मंदिर-मस्जिद विवादों को उभारना गलत है. उनका कहना कि "भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि सह-अस्तित्व कैसे संभव है," हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सिद्धांत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की याद दिलाता है..

भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदुओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित करने के नाम पर विवाद पैदा करना अनुचित है. यह बयान परिपक्व और जिम्मेदार नेतृत्व की आवश्यकता को दर्शाता है. जब दुनिया धार्मिक संघर्षों से जूझ रही है, तब यह संदेश न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक समाज के लिए भी एक प्रेरणा है.
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अजमेर शरीफ दरगाह और झूठे विवाद का उदाहरण

हाल ही में अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर एक झूठा विवाद खड़ा करने का प्रयास हुआ, जो देश में बढ़ती चुनौतियों का उदाहरण है. हिंदू सेना और अन्य कट्टरपंथी समूहों द्वारा गरीब नवाज़ हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) के पवित्र स्थान की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश चिंताजनक है.

अजमेर शरीफ दरगाह, जो समावेशिता और करुणा का प्रतीक है, हर धर्म और जाति के लोगों को आकर्षित करता है. इस पवित्र स्थान को विवादों में घसीटना न केवल इसकी आध्यात्मिक गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि भारत की विविधता और एकता की छवि को भी धूमिल करता है.

विकास और एकता पर ध्यान देने की जरूरत

ऐसे झूठे विवाद हमारी ऊर्जा और ध्यान को वास्तविक राष्ट्रीय प्राथमिकताओं—जैसे शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और बुनियादी ढांचे के विकास—से भटकाते हैं. यह हमारी वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुंचाता है. “विश्वगुरु भारत” का सपना तभी साकार होगा, जब हम अपने समाज में व्याप्त विभाजनकारी ताकतों को समाप्त करेंगे और एकता व सद्भाव के मूल्यों को अपनाएंगे.

भारत की सांस्कृतिक धरोहर हमें सिखाती है कि विविधता में एकता केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक सिद्धांत है. हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ की शिक्षाएँ, खासकर वहदत-उल-वजूद की अवधारणा, यह बताती हैं कि पूरी सृष्टि एक ही ईश्वर से उत्पन्न हुई है.

जब हम इस एकता को स्वीकारते हैं, तो विभाजनकारी ताकतें कमजोर पड़ जाती हैं..व्यावहारिक रूप से, एकता न केवल सामाजिक स्थिरता लाती है, बल्कि आर्थिक प्रगति का भी मार्ग प्रशस्त करती है. एक विभाजित समाज अपनी पूरी क्षमता कभी प्राप्त नहीं कर सकता।

भारत को आज यह सुनिश्चित करना होगा कि:

पवित्र स्थलों और आध्यात्मिक परंपराओं की पवित्रता बनाए रखी जाए.
समाज में संवाद और समझ को बढ़ावा देने वाली बातचीत को प्रोत्साहित किया जाए.
शिक्षा प्रणाली में एकता और सह-अस्तित्व के संदेश को शामिल किया जाए.
संविधान में निहित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को सख्ती से लागू किया जाए.

भारत का भविष्य और विश्व नेतृत्व

भारत तभी वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है, जब वह अपने भीतर की चुनौतियों का सामना साहस, बुद्धिमत्ता और करुणा से करे. हमें अपने संतों, गुरुओं और सूफी परंपराओं से प्रेरणा लेकर एक ऐसा देश और दुनिया बनानी होगी, जहां शांति, प्रेम और न्याय का वास हो..आइए, हम मिलकर उस भारत का निर्माण करें, जो विश्व को सह-अस्तित्व और सद्भाव का मार्ग दिखाए.

लेखक गद्दीनशीन, दरगाह अजमेर शरीफ, चेयरमैन, चिश्ती फाउंडेशन