शांति के लिए नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस, अशांति फैलाने वाले आतंकियों को जेलों से धड़ाधड़ क्यों रिहा कर रहे हैं?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 10-09-2024
 Mohammad Yunus
Mohammad Yunus

 

राकेश चौरासिया

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस हाल ही में गठित बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने जेल में बंद कई आतंकवादियों को रिहा किया है. इनमें सबसे प्रमुख नाम जशीमुद्दीन रहमानी का है, जो अल-कायदा से जुड़े आतंकी संगठन अंसरुल्लाह बंगला टीम (एबीटी) का प्रमुख है. इस संगठन को 2015 में बांग्लादेश में प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर अंसार अल-इस्लाम रखा गया और इसे 2017 में फिर से प्रतिबंधित किया गया.

रहमानी को ब्लॉगर राजीब हैदर की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई थी. इस हत्या ने बांग्लादेश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर व्यापक बहस छेड़ी थी. रहमानी को हाल ही में परोल पर रिहा किया गया है, जो भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह संगठन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकी नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा था. रहमानी की रिहाई के बाद, भारत के विभिन्न हिस्सों में एबीटी से जुड़े कई आतंकियों की गिरफ्तारी हुई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस आतंकी संगठन की गतिविधियाँ भारत में भी फैली हुई हैं.

शेख असलम उर्फ स्वीडन असलम रिहा

आतंकवादी शेख असलम, जिसे स्वीडन असलम के नाम से भी जाना जाता है, को भी ढाका के पास गाजीपुर में काशिमपुर हाई सिक्योरिटी सेंट्रल जेल से जमानत पर रिहा कर दिया गया है. उसे 31 जनवरी 2005 को गिरफ्तार किया गया था, और 2014 में काशिमपुर जेल में आने से पहले उसे विभिन्न जेलों में भेजा गया था. वह कुछ समय के लिए स्वीडन में रहा और वापस आने पर उसने ‘स्वीडन असलम’ नाम अपना लिया. काशिमपुर जेल के अधीक्षक ने कहा कि वह हत्या और हथियार समेत 12 अलग-अलग मामलों में वांछित था. असलम 2000 के दशक की शुरुआत में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली चार-पक्षीय गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान घोषित 23 शीर्ष अपराधियों में से एक है.

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल में आतंकवाद और भारत-विरोधी गतिविधियों पर सख्ती से कार्रवाई की गई थी, लेकिन उनके सत्ता से बाहर होने के बाद इन तत्वों के फिर से उभरने की संभावना जताई जा रही है. हसीना के शासन में आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के कारण कुछ कट्टरपंथी और पाकिस्तान समर्थक गुटों में भारत के प्रति नाराजगी भी बढ़ी थी. उनके हटने के बाद से इन गुटों को फिर से बल मिल रहा है, और यह भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती के रूप में उभर सकता है.

तनाव बढ़ा

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार की इन कार्रवाइयों ने भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है. भारत के कई सुरक्षा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस तरह की घटनाओं से भारत की सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर उन राज्यों में जो बांग्लादेश की सीमा से सटे हुए हैं.

नोबेल पीस अवार्ड पर सवालिया निशान

नोबेल शांति पुरस्कार विश्वभर में एक प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है, जिसे शांति, मानवीय कार्यों, और समाज में सकारात्मक योगदान के लिए दिया जाता है. ऐसे में जब एक नोबेल पुरस्कार विजेता से हिंसा या आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों के पक्ष में फैसले की खबरें आती हैं, तो यह वैश्विक रूप से चिंता का कारण बनता है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया बनने के बाद, मोहम्मद यूनुस द्वारा आतंकवादियों की रिहाई की खबरें विशेष रूप से विवाद का कारण बनी हैं.

मोहम्मद यूनुस की छवि पर असर

मोहम्मद यूनुस, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, ने अपनी पहचान एक समाजसेवी और आर्थिक सशक्तिकरण के समर्थक के रूप में बनाई थी. उन्होंने ग्रामीन बैंक की स्थापना की, जो गरीबों को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करता है. उनकी इस पहल की वैश्विक स्तर पर सराहना की गई और उन्हें ‘गरीबों के बैंकर’ के रूप में जाना जाने लगा. लेकिन अब, उनकी सरकार द्वारा आतंकी तत्वों की रिहाई ने उनकी छवि पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं.

यह सवाल उठता है कि एक ऐसा व्यक्ति, जिसने शांति और विकास के लिए काम किया, वह अब आतंकवादियों की रिहाई का समर्थन कैसे कर सकता है? यह विरोधाभास उनके आदर्शों और उनके कार्यों के बीच एक गहरी खाई को दर्शाता है.

क्या नोबेल समिति को पुनर्विचार करना चाहिए?

नोबेल पुरस्कार एक ऐसी संस्था द्वारा दिया जाता है, जो शांति और मानवता के लिए अभूतपूर्व योगदान को मान्यता देती है. यदि कोई पुरस्कार विजेता उन सिद्धांतों के खिलाफ कार्य करता है, जिनके लिए उसे सम्मानित किया गया था, तो यह आवश्यक हो जाता है कि पुरस्कार समिति उस पर पुनर्विचार करे. मोहम्मद यूनुस द्वारा आतंकवादियों की रिहाई की खबरें उनके द्वारा किए गए शांति प्रयासों को कमजोर करती हैं, और इससे उनकी योग्यता पर गंभीर सवाल उठते हैं.

नोबेल पुरस्कार समिति को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. यदि यह साबित होता है कि उनके नेतृत्व में आतंकवादी तत्वों को रिहा किया गया है, तो इसे पुरस्कार के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन माना जा सकता है. यह आवश्यक है कि समिति इस पर जांच करे और यदि आवश्यक हो, तो उनसे यह पुरस्कार वापस लिया जाए.

क्या पुरस्कार वापसी का विकल्प हो सकता है?

हाल के वर्षों में, कई बार नोबेल पुरस्कार विजेताओं की क्रियाओं पर सवाल उठे हैं. कुछ मामलों में, उनके व्यवहार या निर्णयों ने शांति के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि पुरस्कार को केवल सम्मान के रूप में न देखा जाए, बल्कि इसे उन मूल्यों का प्रतीक माना जाए, जो शांति, मानवता, और विकास के लिए अनिवार्य हैं.

मोहम्मद यूनुस का आतंकवादियों की रिहाई से जुड़ा निर्णय उन मान्यताओं का उल्लंघन करता प्रतीत होता है, जिनके लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. यदि उनके नेतृत्व में आतंकी तत्वों को प्रोत्साहन मिला है, तो इसे एक गंभीर मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए.

मोहम्मद यूनुस जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता से यह उम्मीद की जाती है कि वे शांति, सहिष्णुता, और मानवता के प्रति समर्पित रहें. हालांकि, यदि उनके निर्णयों से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है या अशांति फैलती है, तो यह उनकी जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करता है. नोबेल पुरस्कार समिति को इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और अगर आवश्यक हो, तो उनसे यह सम्मान वापस लिया जाना चाहिए ताकि नोबेल पुरस्कार की गरिमा बनी रहे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)