राकेश तिवारी
वर्ष 1944 में समाप्त हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व तीसरे विश्वयुद्ध में प्रवेश कर चुका है. बम, मिसाइलों, टैंकों की गर्जना से आज के मनुष्य की आत्मा लगभग मूर्छित हो चुकी है. बम, तोपों और मिसाइलों की कान फोडू और परेशान कर देने वाले युद्ध घोष के बीच हमारी संवेदनाएं लगभग शून्य पर हैं. हम अपनी बीवी अपने बच्चे, अपना मकान, अपनी दुकान की खोल में सिमटे शुतुरमुर्ग अवस्था में जी रहे हैं.
आपको याद होगा कि दिल्ली असेंबली में बम धमाका करने के बाद शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा था, ‘‘अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत ऊंची होनी चाहिए. जब हमने बम गिराया तो हमारा इरादा किसी को मारना नहीं था. हमें ब्रिटिश सरकार को देश छोड़ने के बारे में बताना था. हमें आजादी चाहिए थी.’’
कुछ इसी तरह हम आपकी चेतना को जगा सके तो इसकी सार्थकता होगी. 1947के बाद से भारत को तोड़ने की योजना बद्ध कोशिशें की जा रही हैं, यह कोई ढकी छुपी बात नहीं है. यह निर्विवादित तथ्य है कि भारत को तोड़ कर खालिस्तान बनाने के लिए पाकिस्तान, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कैनेडा से गम्भीर और योजनाबद्ध प्रयास किए जा रहे हैं.
लगभग 20 वर्षों बाद खालिस्तानी आतंकवाद भारत में अमृतपाल सिंह जैसे देश विरोधी ताकतें खुल कर सामने आई हैं.यहां हमें इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला जिसकी फांस अनेक सिक्ख धर्मावलंबियों के दिल में उनकी वर्तमान पीढ़ियों तक बनी हुई है.
इसका दर्द उन्हें रह रह कर सालता है कि क्या इसका बदला लिया ? इससे भी ज्यादा दुर्भाग्य और गंभीर बात यह है कि शायद एक सोची समझी साजिश के तहत 80के दशक में आतंकवादियों द्वारा जिस तरह से भारत में सिख और हिंदुओं को मारा गया, उसकी कोई बात नहीं करता, क्यों ? यह अपने आप में शोध का विषय है.
अब बात करते हैं उस मूल मुद्दे की जिसके कारण खालिस्तान पर खासा चर्चा की जरूरत है ? मुझे कनाडा में रहते 30वर्ष से ज्यादा हो गए हैं. मैं यह जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि कनाडा में खालिस्तान के नए एपिसोड की शुरुआत 15 सितंबर 2022से हुई.
उसके बाद गौरी शंकर मंदिर, राम मंदिर, भारत माता मंदिर पर हमले किए गए. यह सूची अभी और आगे बढ़ेगी, क्योंकि खालिस्तान का स्वरूप विश्वव्यापी होता जा रहा है. इसके पंजे में ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस मिडिल ईस्ट सहित विश्व के कई सुदूर देश आ चुके हैं.
बावजूद इसके भारत सरकार के कई अति उत्साही लोगअभी तक खालिस्तान के मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे, जबकिवर्ष 2016से पहले इसकी आग भारत और भारत के बाहर बुझ सी गई थी. इसी बीच भारत से बाहर पैदा सिक्खों की एक जमात 18 से 50 वर्ष के लोगों में गुरुद्वारों और शिक्षालयों में भारत विरोधी इतिहास बताते रहे.
ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है. इन्ही लोगों ने कनाडा में भारत की शहीद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को याद करने के लिए प्रदर्शन किया था और लिखा कि हमने बदला ले लिया.2020 में जब राजनाथ सिंह के गृह मंत्री थे तब उन्हें तमाम गोपनीय और खुले संदेश के माध्यम से अगाह कर दिया गया था, जो किन्हीं कारणों इसे दरकिनार कर दिया गया.
खुशी की बात है कि देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर भारत सरकार और भारतीय मीडिया की नींद 2022 में टूट गई. वर्ष 2023 के मध्य में मेरी मुलाकात लेखक-पत्रकार तारिक फराह और अमेरिका निवासी लेखक और चिंतक राहुल मल्होत्रा की पुस्तक ‘लेक इन द गंगा’ के बारे में हुई थी.
तब उन्होंने भी खालिस्तान की बढ़ती समस्या पर बड़ी बेबाकी से अपने विचार रखते हुए कहा माना था कि खालिस्तान के मुद्दे को भारत सरकार उस गम्भीरता से नहीं ले रही जैसे लेना चाहिए. यहां तक कि इंदिरा गांधी की हत्या के मुद्दे पर निकाली गई झांकी पर प्रख्यात कैनेडियन पत्रकार (सीबीसी चैनल) तेरी मलेरी आतंकवाद और खालिस्तान के मुद्दे पर कनाडा सरकार की गंभीर आलोचना कर चुके हैं.
1947 के बाद से भारत और पाकिस्तान चार युद्ध लड़ चुके हैं. मेरा मानना है कि खालिस्तान के हिंसक आंदोलन को पाकिस्तान और अन्य देशों प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समर्थन मिल रहा है, जिसका भारतीय और भारत प्रेमियों द्वारा प्रतिकार आवश्यक है.
नोट: लेखक कनाडा के ब्रैम्पटन से प्रकाशित हिंदी टाइम्स के मुख्य संपादक हैं. यह लेख उनकी पत्रिका से लिया गया है, जिसे यहां संपादित कर प्रकाशित किया गया है. इसमें लेखक के अपने विचार हैं.