प्रमोद जोशी
भारत और पाकिस्तान के ‘टाइम-ज़ोन’ अलग-अलग हैं. स्वाभाविक है, दोनों की भौगोलिक स्थितियाँ अलग हैं, इसलिए ‘टाइम-ज़ोन’ भी अलग हैं, पर दोनों के स्वतंत्रता दिवस अलग क्यों हैं? एक दिन आगे-पीछे क्यों मनाए जाते हैं, जबकि दोनों ने एक ही दिन स्वतंत्र देश के रूप में जन्म लिया था? इसके पीछे पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की खुद को भारत से अलग नज़र आने की चाहत है.
पाकिस्तान में एक तबका खुद को भारत से अलग साबित करने पर ज़ोर देता है. उन्हें लगता है कि हम भारत के साथ एकता को स्वीकार कर लेंगे, तो इससे हमारे अलग अस्तित्व के सामने खतरा पैदा हो जाएगा. उनकी कोशिश होती हैं कि देश के इतिहास को भी केवल इस्लामी इतिहास के रूप में पेश किया जाए. सरकारी पाठ्य-पुस्तकों में इतिहास का काफी काट-छाँटकर विवरण दिया जाता है.
बेशक, यह न तो पूरे देश की राय है और न संज़ीदा लेखक, विचारक ऐसा मानते हैं, पर एक तबका ऐसा ज़रूर है, जो भारत से अलग नज़र आने के लिए कुछ भी करने को आतुर रहता है. इस इलाके में एकता से जुड़े जो सुझाव आते हैं, उनमें दक्षिण एशिया महासंघ बनाने, एक-दूसरे के यहाँ आवागमन आसान करने, वीज़ा की अनिवार्यता खत्म करने और कलाकारों, खिलाड़ियों तथा सांस्कृतिक-सामाजिक कर्मियों के आने-जाने की सलाह दी जाती है.
1857 की वर्षगाँठ
इन सलाहों पर अमल कौन और कब करेगा, इसका पता नहीं, अलबत्ता 14 और 15 अगस्त के फर्क से पता लगता है कि किसी को न बातों पर आपत्ति है. 2006-07 में जब भारत में 1857 की क्रांति की 150 वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी, तब एक प्रस्ताव था कि भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनों मिलकर इसे मनाएं, क्योंकि ये तीनों देश उस संग्राम के गवाह हैं.
जनवरी 2004 में दक्षेस देशों के इस्लामाबाद में हुए 12 वें शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सुझाव दिया था कि क्यों न हम 2007 में 1857 की 150 वीं वर्षगाँठ तीनों देश मिलकर मनाएं. पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता मसूद खान से जब यह सवाल पूछा गया, तब उन्होंने कहा, इसका जवाब है नहीं.
बहरहाल दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमारा सवाल बनता है कि हम मिलकर एक ही दिन अपना स्वतंत्रता-दिवस क्यों नहीं मनाते?
एक दिन पहले शपथ
भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ, तो पाकिस्तान भी उसी दिन आज़ाद हुए. भ्रम केवल इस बात से है कि पाकिस्तान की संविधान सभा में गवर्नर जनरल और वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन का भाषण और उसके बाद का रात्रिभोज 14अगस्त को हुआ था.
चूंकि भारत ने अपना कार्यक्रम मध्यरात्रि से रखा था, इसलिए यह सम्भव नहीं था कि वे कराची और दिल्ली में एक ही समय पर उपस्थित हो पाते. किसी ने ऐसा सोचा होता, तो शायद दोनों देशों की सीमा पर 14-15की मध्यरात्रि को एक ऐसा समारोह कर लिया जाता, जिसमें दोनों देशों का जन्म एकसाथ होता.
शायद इस वजह से 14अगस्त की तारीख को चुना गया, पर 14अगस्त को पाकिस्तान बना ही नहीं था. शपथ दिलाने से पाकिस्तान बन नहीं गया, वह 15 को ही बना. तब पाकिस्तान ने 15अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाया और कई साल तक 15को मनाया.
तारीख बदली
कुछ साल बाद जाकर पाकिस्तान ने अपने स्वतंत्रता दिवस को बदला. पहले स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद अली जिन्ना ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा, ‘स्वतंत्र और सम्प्रभुता सम्पन्न पाकिस्तान का जन्मदिन 15अगस्त है.’तब फिर वह 14 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाता है? 14 अगस्त, 1947 का दिन तो भारत पर ब्रिटिश शासन का आखिरी दिन था. वह दिन पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस कैसे हो सकता है?
पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगाँठ के मौके पर जुलाई 1948 में जारी डाक टिकटों में भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता पाकिस्तानी दिवस बताया गया था. पहले चार-पाँच साल तक 15अगस्त को ही पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया.
अलग होने का दिखावा
अपने को भारत से अलग दिखाने की प्रवृत्ति के कारण पाकिस्तानी शासकों ने अपने स्वतंत्रता दिवस की तारीख बदली, जो इतिहास सम्मत नहीं है. पाकिस्तान के अनेक संज़ीदा लेखक और विचारक इस बात से सहमत नहीं हैं, पर एक कट्टरपंथी तबका भारत से अपने अलग दिखाना चाहता है. स्वतंत्रता दिवस को अलग साबित करना भी इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है.
11 अगस्त, 2015 को पाक ट्रिब्यून में प्रकाशित अपने लेख में सेवानिवृत्त कर्नल रियाज़ जाफ़री ने लिखा, कट्टरपंथी पाकिस्तानियों को स्वतंत्रता के पहले और बाद की हर बात में भारत नजर आता है. यहाँ तक कि लोकप्रिय गायिका नूरजहाँ के वे गीत, जो उन्होंने विभाजन के पहले गए थे, उन्हें रेडियो पाकिस्तान से प्रसारित नहीं किया जाता था. ऐसे लोग मानते हैं कि आजाद तो भारत हुआ था, पाकिस्तान नहीं. पाकिस्तान की तो रचना हुई थी. उसका जन्म हुआ था.
सत्ता का हस्तांतरण
भारत के स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत अंग्रेजी राज से आधुनिक भारत को सत्ता का हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को हुआ था. अधिनियम में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को दो नए देश भारत और पाकिस्तान जन्म लेंगे. मध्यरात्रि से तारीख बदलती है. ज़ाहिर है कि वह तारीख 15 अगस्त थी.
पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून में 22 सितम्बर, 2015 को प्रकाशित एक लेख में आईटी यूनिवर्सिटी, लाहौर के प्राध्यापक याकूब खान बंगश ने लिखा, ‘ब्रिटिश संसद से पास हुए प्रस्ताव के अनुसार 15अगस्त, 1947को दो नए देशों का जन्म होना था. इसलिए इसमें दो राय नहीं कि वह दिन 15 अगस्त का ही होना चाहिए.
14 अगस्त, 1947 को माउंटबेटन वायसरॉय थे, इसीलिए कराची में हुए समारोह में वे और जिन्ना साथ-साथ बैठे थे. उस वक्त तक जिन्ना गवर्नर जनरल बने नहीं थे. इस तरह कहा जा सकता है कि 14अगस्त को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस समारोह शुरू हुए थे, पर वह वैधानिक रूप से स्वतंत्र 15 अगस्त को ही हुआ. इसीलिए जिन्ना ने अपने पहले प्रसारण में स्वतंत्रता की तारीख 15अगस्त बताई थी.
यह कहा जाए कि पाकिस्तान का जन्म रमजान की 27 वीं तारीख को हुआ, तो वह भी सही नहीं क्योंकि 14अगस्त को 26वीं तारीख थी. इसके बाद पाकिस्तान में 14से 15अगस्त तक समारोह मनाए जाने लगे. सन 1950में जाकर आधिकारिक रूप से फैसला किया गया कि अब 15अगस्त को समारोह नहीं होंगे.’
जुड़वाँ भाई
सवाल है कि यह फैसला क्यों किया गया? बंगश ने लिखा कि सरकारी दस्तावेजों में कारण नहीं बताया गया है, पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वजह है ‘हमारे स्थायी दुश्मन’ भारत से खुद को अलग दिखाने की मनोकामना. इसके बाद उन्होंने लिखा है, इसके पहले हमें भारत के साथ अपने गर्भनाल के रिश्ते को तोड़ना होगा.
तमाम बातों के लिए पाकिस्तान को भारत के साथ जोड़कर ही देखा जाएगा. पर पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश है और एक वास्तविकता है. उसे स्वतंत्र देश की तरह व्यवहार करना चाहिए. हरेक बात में भारत-विरोध या गैर-भारतीयता साबित करने की कोशिश अनुचित है.
उन्होंने लिखा, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश किस तारीख को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बात उसके निवासी जानते हैं. सच यह है कि 15से 14करके हमने तारीख बदली. यह बात हमारी असुरक्षा को बताती है.
सिर्फ शपथ
इस लेख के बाद इसी अखबार में 15 अगस्त, 2016 को Tashkeel Ahmed Farooqui and Ismail Sheikh की एक रिपोर्ट ‘वॉज़ पाकिस्तान क्रिएटेड ऑन ऑगस्ट 14 ऑर 15 ?’ शीर्षक से प्रकाशित हुई. इसमें कहा गया, हालांकि काफी लोग मानते हैं कि पाकिस्तान 14 अगस्त को आजाद हुआ, पर ऐतिहासिक तथ्य कुछ और कहते हैं.
इसमें एक वरिष्ठ पत्रकार को उधृत करते हुए वही बातें कही गई हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि यदि माउंटबेटन दिल्ली के स्वतंत्रता दिवस के बाद वापस पाकिस्तान में आकर शपथ दिलाते, तो वह भी सम्भव नहीं था, क्योंकि तबतक वे भारत के गवर्नर जनरल बन चुके होते.
जिन्ना की आड़
पाकिस्तान के नेता कहते हैं कि जिन्ना चाहते थे कि स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाया जाए, पर इस बात के समर्थन में किसी प्रकार के दस्तावेज नहीं हैं. पाकिस्तानी अखबारों और रिसालों में यह सवाल बार-बार उठाया जाता है कि आखिर स्वतंत्रता दिवस की तारीख बदलने के पीछे कारण क्या है.
डॉन की वैबसाइट में 12 अगस्त, 2015 को अख्तर बलोच ने एक लम्बा लेख लिखा है, जिसमें इस बात पर हैरत प्रकट की गई है कि दुनिया में कोई और ऐसा मुल्क है, जिसने अपनी आजादी की तारीख को ही बदल दिया हो? उन्होंने अपने लेख में इतिहासकार केके अजीज की किताब ‘मर्डर ऑफ हिस्ट्री’ का हवाला देते हुए लिखा है, वायसरॉय माउंटबेटन व्यावहारिक रूप से सत्ता-हस्तांतरण समारोह को 14अगस्त, 1947को ही संचालित कर सकते थे, पर इसका मतलब यह नहीं कि पाकिस्तान उस रोज आजाद हो गया. वह 15अगस्त को ही आजादी हुआ था.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी मोहम्मद अली ने सन 1967 में अपने संस्मरणों को ‘इमर्जेंस ऑफ पाकिस्तान’ के नाम से प्रकाशित किया. इसका उर्दू अनुवाद ‘ज़हूर-ए-पाकिस्तान’ नाम से प्रकाशित हुआ है. इसमे उन्होंने लिखा है, 15अगस्त, 1947को ‘रमज़ान-उल-मुबारक’ का आखिरी शुक्रवार (जुमातुल विदा) था, जो इस्लाम के सबसे पवित्र दिनों में एक है. उस रोज़ कायदे आज़म पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने. उसी रोज पाकिस्तान का झंडा फहराया गया.
चौधरी मोहम्मद अली ने अपनी किताब में लिखी बात को कभी अस्वीकार नहीं किया, जबकि उनके दौर में ही देश ने 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाना शुरू कर दिया था.
15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का उद्घाटन करते हुए मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा, 15अगस्त स्वतंत्र, संप्रभु पाकिस्तान का जन्मदिन है. जिन्ना के इस भाषण का प्रसारण 14-15की रात के 12बजे के बाद हुआ था. माउंटबेटन की आधिकारिक जीवनी के लेखक फिलिप ज़ीग्लर ने भी लिखा है कि पाकिस्तान का जन्म 15अगस्त को हुआ था.
प्राचीन पाकिस्तान !
सितंबर, 2018 में पाकिस्तानी इतिहासकार हारून खालिद का एक लेख पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने लाहौर के एक संग्रहालय का जिक्र किया था. इस संग्रहालय में प्राचीन काल की वस्तुएं भी रखी गईं हैं. इस खंड का नाम है ‘प्राचीन पाकिस्तान.’ इसमें सिंधु घाटी से लेकर मौर्य साम्राज्य, कुषाण और महाराजा रंजीत सिंह के खालसा साम्राज्य की सामग्री भी हैं. लेखक को ‘प्राचीन भारत’ के स्थान पर ‘प्राचीन पाकिस्तान’ का इस्तेमाल अटपटा लगा. वस्तुतः यह नए पैदा होते राष्ट्रवाद को रेखांकित करता है.
भारत माने केवल आधुनिक भारतीय गणराज्य नहीं है. आधुनिक भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश सभी ‘प्राचीन भारत’ की विरासत हैं. ‘प्राचीन भारत’ इनका साझा इतिहास है. भारत में भी हम लोग खुद को ‘प्राचीन भारत’ के एकमात्र वारिस मानते हैं, जबकि यह अधूरा और भ्रामक सत्य है.
‘इंडिया’ नाम पर आपत्ति
बताते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना ने आधुनिक भारत के ‘इंडिया’ नाम पर आपत्ति व्यक्त की थी. उनका कहना था कि इसे ‘हिन्दुस्तान’ कहना चाहिए. पर हिन्दुस्तान के भी अलग-अलग संदर्भ हैं. एक प्राचीन और दूसरा आधुनिक.
सही या गलत पाकिस्तान इतिहास की एक विसंगति है. अति तब होती है, जब पाकिस्तान के कुछ लेखकों को हिंद महासागर के नाम पर आपत्ति होती है. वे इसे दक्षिण एशिया महासागर का नाम देना चाहते हैं. सवाल है कि क्या आधुनिक राजनीति इस तरीके से हमारे दिलो-दिमाग़ पर हावी होगी ?
जिन्ना को शायद अंदेशा था कि ‘इंडिया’ शब्द की व्यापक परिधि से पाकिस्तान अलग छिटक जाएगा. जिन्ना के उत्तराधिकारियों ने स्वतंत्रता दिवस जैसी रेखाओं को गाढ़ा करके हासिल क्या किया? जब हम किसी एक रेखा पर मिलते हैं, तो उसके पीछे जाकर अपनी एकता को भी देख पाते हैं, पर जब दिलचस्पी एकता में है ही नहीं, तो अलगाव के तरीके खोजे जाते हैं.
पाकिस्तान के जन्म के बाद से ही इस अलगाव को बढ़ाने की कोशिशें हुईं और भारत में भी, पर वैश्विक और ऐतिहासिक संदर्भों में जब भारतीय इतिहास का जिक्र होगा, तो वह केवल भारत की आधुनिक राजनीतिक सीमाओं के भीतर का इतिहास नहीं हो सकता. और न वह किसी संप्रदाय विशेष का इतिहास होगा.
इस भेद की शुरूआत स्वतंत्रता दिवस से ही शुरू होती है. पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में सच्चाई है, पर वह 14 और 15 अगस्त के फर्क तक सीमित नहीं है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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