बांग्लादेश में लोकतांत्रिक सुधार का कौन सा रास्ता ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-09-2024
Which path for democratic reform in Bangladesh?
Which path for democratic reform in Bangladesh?

 

ruhinरुहिन हुसैन प्रिंस

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जो एक बड़े छात्र-श्रमिक विद्रोह के माध्यम से बनी थी, ने अपने संचालन की एक महीने की सालगिरह पर सुधारों के लिए छह आयोगों के गठन की घोषणा की.बताया गया है कि आयोग 1अक्टूबर 2024से काम शुरू कर तीन महीने के भीतर रिपोर्ट तैयार करेगा. इस घोषणा के जरिए उनकी सुधार प्रक्रिया शुरू होने की खबर है.

सीपीबी सहित विभिन्न वामपंथी, लोकतांत्रिक राजनीतिक दल, जो शुरू से ही आंदोलन में रहे हैं, सरकार से अपने सुधारों और चुनाव रोडमैप की घोषणा करने का आह्वान कर रहे हैं.इस आयोग के गठन की घोषणा के रोडमैप के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन एक विचार उपलब्ध है.

सरकार के मुताबिक, तीन महीने के भीतर आयोग की रिपोर्ट आने के बाद प्रमुख राजनीतिक दलों समेत समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों से चर्चा की जाएगी. कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी और फिर फैसले को अंतिम रूप दिया जाएगा.यह याद रखना चाहिए कि राजनीतिक दलों को सुधार कार्य की एक मुख्य जिम्मेदारी निभानी होती है.

राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों के लक्ष्यों को लोगों के सामने प्रस्तुत करके और लोगों की सहमति प्राप्त करके इन गतिविधियों को आगे बढ़ाएंगे.तो सवाल यह है कि क्या सुधारों का प्रस्ताव देने से पहले राजनीतिक दलों से बात की जाए.वे इस गतिविधि में शामिल होंगे या नहीं ?

इस प्रश्न का अभी तक पूरी तरह से उत्तर नहीं दिया गया है.यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इन सुधारों का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी जिस सरकार ने ली है, वह कोई नियमित सरकार नहीं है यानी चुनाव के माध्यम से लोगों की सहमति से बनी सरकार है.

फिर, यह कोई क्रांतिकारी सरकार नहीं है जो किसी विशिष्ट लक्ष्य को ध्यान में रखकर क्रांति का आयोजन करती है और उस क्रांति को जीत लेती है.यह अंतरिम सरकार है. लेकिन यह किसी भी अन्य समय की अंतरिम सरकार से अलग है.यानी सैकड़ों लोगों के खून के बदले में आयोजित अभूतपूर्व जन तख्तापलट से बनी सरकार.

विभिन्न चर्चाओं के माध्यम से जो बात पहले ही सामने आ चुकी है वह यह है कि यदि तानाशाही व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के बाद मतदान के माध्यम से सरकार बनाई जाती है तो वह तानाशाही व्यवस्था को उखाड़ नहीं फेंकती है.भ्रष्टाचार से लूट होती है.

सत्तावाद की स्थापना करता है, सत्ता को लम्बा खींचने के लिए सत्तावादी व्यवस्थाओं को कायम रखने का प्रयास करता है.जिसके लिए अत्याचार का आधार जड़ बनी हुई है.इस बुनियाद को एक दिन में नहीं उखाड़ा जा सकता. लेकिन इसे शुरू करना होगा. अंतरिम सरकार इसकी रूपरेखा तैयार करने का काम शुरू करे- यही लोगों की अपेक्षा है.

देश में सर्वमान्य चुनाव के लिए भी कई संस्थागत सुधारों की जरूरत है.इसलिए सभी लोग सरकार के सुधार कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में हर तरफ से सहयोग पर विचार कर रहे हैं.सहयोग की बात हो रही है.यह याद रखना चाहिए कि इसके लिए सक्रिय लोकतांत्रिक राजनीतिक दलों की सहमति और भागीदारी की आवश्यकता है.

इस संबंध में हमने साफ तौर पर कहा है कि सरकार को जरूरी संस्थागत सुधार शुरू करने चाहिए. सक्रिय राजनीतिक दल इस कार्य में समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करें.साथ ही चुनाव प्रणाली में आमूल-चूल सुधार के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों सहित राजनीतिक दलों को अभी से प्रत्यक्ष चर्चा शुरू करने दें.क्योंकि निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से निर्वाचित प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपना इस सरकार के मुख्य कार्यों में से एक है.

इस लोकप्रिय विद्रोह की आकांक्षाओं में से एक लोकतांत्रिक परिवर्तन था.यह लोकतांत्रिक परिवर्तन एक दिन में पूरा नहीं होगा.यह बहुआयामी कार्य के माध्यम से किया जाना चाहिए.उनमें से एक है स्थानीय सरकार के चुनावों सहित नेशनल असेंबली चुनावों में सभी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना और समय पर चुनाव कराना.जिस प्रकार राजनीतिक दलों की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने की जरूरत है, उसी प्रकार सभी गतिविधियों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत है.

इसके लिए लोकतांत्रिक माहौल की जरूरत है. उस माहौल को बनाने के लिए विभिन्न सुधार कार्य शुरू करने होंगे.यह काम एक दिन में पूरा नहीं होगा.इसे सतत प्रक्रिया से करना होगा.हम इस संबंध में सरकार के पारदर्शी दृष्टिकोण की अपेक्षा करते हैं.

छात्रों-मजदूरों-भीड़ के खून से जो क्रांति हुई, वह एक महीने में नहीं हुई. यह प्राथमिक जीत अवामी लीग सरकार के लंबे कुशासन के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक दलों और विभिन्न वर्गों के लोगों के निरंतर संघर्ष की निरंतरता में हासिल की गई है.पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार प्राप्त होने तक संघर्ष जारी रहना चाहिए.इसी निरंतरता में हर कोई विभिन्न मुद्दों पर सुधार और चुनाव प्रणाली में आमूल-चूल सुधार चाहता है.

स्थानीय सरकार को मजबूत करने, उसे हस्तक्षेप से मुक्त करने और उसे स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अनुमति देने की मांग लंबे समय से चली आ रही है.साथ ही आनुपातिक प्रणाली लागू कर चुनावी व्यवस्था में आमूल-चूल सुधार कर राष्ट्रीय संसद चुनाव पर भी चर्चा होनी चाहिए.

हमने 90 के दशक से ही विभिन्न तरीकों से इस संबंध में वैकल्पिक प्रस्ताव रखे हैं.2007-2008में, चुनाव सुधार परामर्श के दौरान वैकल्पिक प्रस्ताव लिखित रूप में प्रस्तुत किए गए थे.तब से, ये सिफारिशें चुनाव आयोग, राष्ट्रपति और सरकार के विभिन्न हलकों द्वारा कई बार दी गई हैं.

हाल ही में, अन्य राजनीतिक दलों सहित विभिन्न हलकों से चुनाव प्रणाली में सुधार के लिए अधिक मांगें उठाई गई हैं.इन मांगों के औचित्य पर धैर्यपूर्वक विचार-विमर्श कर चुनाव प्रणाली में सुधार सुनिश्चित करना आवश्यक है.ये कोई मुश्किल काम नहीं लगता.

अगर मौजूदा सरकार और राजनीतिक दलों की मंशा अच्छी हो तो लगता है कि कई मुद्दों पर सहमति बन सकती है, जहां तक खबरें अखबारों के जरिए आ चुकी हैं.इस तरह के जो बहुत महत्वपूर्ण काम हैं, उन्हें सामने लाना और चर्चा शुरू करना जरूरी है.इस पर चर्चा शुरू होने से ही अगले चुनाव की योजना नजर आ सकती है.

हमें यह याद रखना होगा कि ये कार्य उतने आसान नहीं हैं जितना हम इन्हें समझते हैं.बहुत लंबे समय से अलोकतांत्रिक शासन ने हमारी सोच को सुन्न कर दिया है.इसके अलावा, अराजनीतिकरण की ताकतें, जो गिरी हुई निरंकुश व्यवस्थाओं, सांप्रदायिक बुराइयों के साथ तबाही मचा रही हैं, इस काम में बाधा डालने की कोशिश करेंगी.हमें इन पर काबू पाकर आगे बढ़ने की जरूरत है.'

सरकार को याद रखना चाहिए कि इन गतिविधियों में लोगों की भागीदारी के बिना उद्देश्य सफल नहीं होगा.इसलिए लोगों के दैनिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान को महत्व दिए बिना ये चर्चाएँ सफल नहीं होंगी.हालाँकि हाल के दिनों में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई है, लेकिन दैनिक आवश्यकताओं की कीमतों को नियंत्रण में नहीं लाया जा सका है.

बहुचर्चित भ्रष्ट सिंडिकेट को तोड़ा नहीं जा सका.देश के कृषि उत्पादन को जारी रखने के लिए कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत को कम करने तथा उत्पादक सहकारी क्रेता सहकारी समितियों का गठन कर किसानों एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने तथा उत्पादित उत्पादों की कीमत में राहत लाने की कोई पहल नहीं देखी गई है.

बिजली की स्थिति खराब हो गयी है. इस संबंध में कोई विशेष मार्गदर्शन नहीं है. देश की कानून-व्यवस्था की स्थिति ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है.इससे संक्रमण अभी भी ठीक से निर्देशित नहीं है.'भीड़ न्याय' के नाम पर जगह-जगह अराजकता देखने को मिलती है.हालांकि इस आंदोलन में किसी भी पार्टी को जीत नहीं मिली है, लेकिन अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग पार्टियों का दबदबा देखने को मिल रहा है.

इस अवसर पर मुक्ति संग्राम के विरोधियों, साम्प्रदायिक राजनीति के धारकों की गतिविधियाँ दिखाई दे रही हैं.मुक्ति संग्राम, इतिहास, परंपरा, मंदिरों, धर्मस्थलों और अन्य संरचनाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले, बर्बरता की जा रही है.जबरन वसूली हाथ बदल रही है. समन्वयकों से अत्यधिक काम लिया जा रहा है.इन मामलों में सरकार की मजबूत स्थिति हर जगह नहीं दिखती. जिससे आम आदमी निराश है। और बुराई को साहस दे रहे हैं.

इस अवसर पर कुछ मंडल मुक्ति संग्राम की उपलब्धियों को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं.हमें इन बातों से सावधान रहना होगा और जनक्रांति की उपलब्धि को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना होगा.वामपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं को इन अन्यायों के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना चाहिए.

विरोध प्रदर्शनों को रोकना चाहिए.इसलिए विभिन्न वर्गों और व्यवसायों के लोगों को एकजुट होकर सड़कों पर अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए.वामपंथी राजनीतिक दल के नेता और कार्यकर्ता आयोजकों की सक्रिय भूमिका के माध्यम से इस कार्य को आगे बढ़ा सकते हैं.

यदि आम जनता और विभिन्न वर्गों तथा व्यवसायों के लोगों के शक्ति संतुलन पर खड़े होकर वर्तमान संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सकता है, तो अंतरिम सरकार से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह सुधारों का प्रस्ताव देकर और चुनाव प्रणाली को अपने पक्ष में सुधार कर स्वीकार्य चुनाव कराएगी। आम लोग.

वहीं दूसरी ओर अगर ऊर्जा संतुलन मजबूत है तो वे अपना काम पूरा करना चाहेंगे.इसके अलावा इस समय विभिन्न प्रकार की निष्क्रियताएं भी सामने आएंगी.अराजनीतिकरण से नकारात्मक शक्तियों की सक्रियता बढ़ेगी.इसलिए, अंतरिम सरकार को विभिन्न राजनीतिक दलों और विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ चर्चा शुरू करनी चाहिए और लोकतांत्रिक सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और चुनाव कराने के उद्देश्य से स्पष्ट कदम उठाने चाहिए.

( लेखक रुहिन हुसैन प्रिंस,महासचिव, बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीबी)हैं )