रामबाबू अग्रवाल
नशा एक अभिशाप है. यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है. नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तंबाकू व धूमपान, चरस, स्मैक, ब्राउन शूगर जैसे घातक मादक दवाओं व पदार्थो का उपयोग किया जा रहा है. इन पदार्थो के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक हानि पहुंचने के साथ सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है. साथ ही स्वयं व परिवार की सामाजिक स्थिति को भी नुकसान पहुंचता है. वह नशे से अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है.
नशा अब एक अंतरराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गई है. बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग व विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. पहले नशा छुप-छुप कर किया जाता था लेकिन आजकल समाज में यह स्टेटस सिंबल बन गया है जो अत्यंत घातक है इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पाने में ही मानव समाज की भलाई है.
29 वर्ष की औसत आयु के साथ भारत विश्व का सबसे युवा आबादी वाला देश बन गया है. एक ओर जहां विश्व की सबसे युवा आबादी वाला देश होना हमारे लिए गर्व की बात है तो वहीं दूसरी ओर अधिसंख्यक युवा आबादी के एक बड़े तबके का नशे की फितूर में डुब जाना चिंता का विषय है. व्यापक स्तर पर युवाओ में फैलती नशाखोरी भारत की मुख्य समस्याओं में से एक है.
जिस तरह पश्चमी देशों का समाज नशा को मार्डनें एवं प्रगतिशीलता की निशानी मानता है,ठीक उसी तरह 21वीं शताब्दी के सभी समाज में नशापान स्वीकार्यता व्यापक स्तर पर बढ़ी है. वेश्य व स्वर्ण समाज के लोग भी नशाखोरी के आदी बनते जा रहे हैं.
यह कड़वी सच्चाई है कि भारत की अधिसंख्यक युवा आबादी नशे की लत का बुरी तरह शिकार हो चुकी है. नशा कई तरह का होता है, जिसमें शराब, सिगरेट, अफीम, गांजा, हेरोइन, कोकीन, चरस मुख्य है. नशा एक ऐसी बुरी आदत है, जो किसी इंसान को पड़ जाए तो उसे दीमक की तरह अंदर से खोखला बना देती है. नशा से पीड़ित व्यक्ति मानसिक,आर्थिक एवं शारीरिक रुप से बर्बाद हो जाता है.
शहरों की कहानी ग्रामीण क्षेत्रों से बिल्कुल अलग है. शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी शौक से घ्रूमपान करती है. शहर में नशा से परहेज करने वालों को गंवार एवं अप्रगतिशील तक कहा जाने लगा है. भारत में शराब बिहार सहित कई राज्यों में प्रतिबंधित है. बावजूद इसके भारत में शराब की खपत अप्रत्याशित तरीके से बढ़ी है.
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हैरान कर देने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में शराब की खपत 2005 से 2016 तक दोगुनी हो गयी है. भारत में 2005 में प्रति व्यक्ति रोजाना शराब की खपत 2.4लीटर थी जो अब बढकर 5.7लीटर प्रति व्यक्ति रोजाना हो गयी है. हर रोज भारत में 4.2 लीटर शराब का उपभोग पुरुषों द्वारा और 1.5लीटर शराब का उपभोग महिलाओं द्वारा किया जाता है.
हमारे आदि पुरुष महाराजा अग्रसेन जी ने भी हिंसा का त्याग करने के बाद पूरी प्रजा को केवल शुद्ध सात्विक और शाकाहारी बनने के लिए प्रेरित किया था . उन्होंने सात्विक प्रवृत्ति, अहिंसा और सत्य को सबसे बड़ा धर्म बताया था . हम उनके वंशज हैं, धर्म सेवा कार्यों और मानव सेवा के लिए कुए बावडी और धर्मशालाएं भी बनवाते रहे हैं .
अब जरूरी है कि हम समझ में नशाखोरी के खिलाफ भी प्रेरक बने समाज को अच्छे मार्ग पर ले जाने के लिए और आने वाली पीढ़ी को नशे जैसी बुरी प्रवृत्ति से बचाने के लिए हमको आगे आना ही चाहिए .
एकल परिवार से बढ़ी समस्या
संयुक्त परिवार में संस्कार मिलते थे. बच्चों की सही परवरिश होती थी. परिवार के सभी सदस्यों की नजर रहती थी. एकल परिवार से समस्या बढ़ी है. मौजूदा दौर में बच्चे टेलीविजन, कंप्यूटर व मोबाइल में खोकर रह गए हैं. मानसिक दबाव के चलते बच्चों का झुकाव नशे की ओर बढ़ता जा रहा है. बच्चों के अकेलेपन व मानसिक दबाव को कम करने के लिए उन्हें खेल गतिविधियों में शामिल करना होगा.
हर वर्ग को समझनी होगी अपनी जिम्मेदारी
आजकल अकसर ये देखा जा रहा है कि युवा वर्ग नशीले पदार्थो की गर्त में दिनोंदिन फंसता जा रहा है. वह तरह-तरह के नशे जैसे तंबाकू, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट व शराब के चंगुल में फंसता जा रहा है. इसके कारण उनका करियर चौपट हो रहा है. दुर्भाग्य है कि आजकल नौजवान शराब व धूमपान को फैशन व शौक के चक्कर में अपना लेते हैं.
इन सभी मादक पदार्थो के सेवन का प्रचलन किसी भी स्थिति में सभ्य समाज के लिए वर्जनीय होना चाहिए. सामाजिक संस्थाओं को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी. इस सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए हर वर्ग को पहल करनी होगी. तभी युवा पीढ़ी को नशे के गर्त में जाने से बचाया जा सकता है.
नशे की प्रवृत्ति में वृद्धि से बढ़े अपराध
समाज में पनप रहे विभिन्न प्रकार के अपराधों का एक कारण नशा भी है. नशे की प्रवृत्ति में वृद्धि के साथ अपराधियों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है. नशा किसी भी प्रकार का हो उससे शरीर को भारी नुकसान होता है. कोकीन, चरस, अफीम ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ हैं, जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपराध कर बैठता है. इस बुराई को छिपाने के बजाय उजागर करना होगा.
सामाजिक तौर पर सोच बदलनी होगी. घर से जागरूकता की शुरुआत करनी होगी. बच्चे पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों से पैसा लेकर मादक पदार्थ खरीद रहे हैं. लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझ कर जानकारी देनी होगी, तभी असामाजिक तत्वों पर लगाम संभव है. बच्चे दिन भर क्या कर रहे हैं? रात को घर देरी से क्यों पहुंच रहे हैं? इन सब बातों पर अभिभावकों को नजर रखनी होगी.
तने पर कार्रवाई से पहले काटनी होंगी जड़ें
मादक पदार्थ इंसान के दिमाग पर बुरा असर डालते हैं. इन सभी मादक द्रव्यों से मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने के साथ समाज, परिवार व देश को भी गंभीर हानि सहन करनी पड़ रही है. किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य खराब होगा तो देश का भी विकास नहीं हो सकता.
नशा एक ऐसी बुरी आदत है जो व्यक्ति को तन-मन-धन से खोखला कर देता है. इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है. इस बुराई को समाप्त करने के लिए शासन के साथ ही समाज के हर तबके को आगे आना होगा. तने पर कार्रवाई करने से पहले जड़ों को काटना होगा. तभी युवा पीढ़ी को बचाया जा सकता है.
नशा समाज के लिए कैंसर से कम नहीं
नशे के लिए समाज की बीमार मानसिकता, अहंकार व संकुचित सोच जिम्मेदार है. जबकि नशा समाज के लिए कैंसर से कम नहीं है. इससे न केवल नशा करने वाला ही प्रभावित होता है, बल्कि उसका परिवार, आस-पड़ोस व पूरा समाज प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित होते हैं. नशे की प्रवृत्ति से लड़ने के लिए सामाजिक स्तर पर स्वस्थ सोच का होना अनिवार्य है.
आजकल टूटते परिवारों की वजह से संयुक्त परिवारों का सामाजिक ताना-बाना भी बिखरता जा रहा है. माता-पिता के नौकरी पेशा होने की वजह से भी बच्चों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है. बच्चे पढ़ाई के अलावा क्या कर रहे हैं उनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखी जाती है.
व्यवस्था पर निर्भर न रहें खुद करें पहल
युवा पीढ़ी को नशीले पदार्थो से बचाने के लिए अभिभावकों को व्यवस्था पर निर्भर रहने के बजाय खुद पहल करनी होगी. नशा कोई भी पहली बार खरीद पर नहीं करता है. नशे की लत का शिकार व्यक्ति खुद व समाज के लिए एक खतरा है.
किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम. सरकार युवा पीढ़ी को नशे की गर्त में धकेलने वालों से अब सख्ती से निपटने के लिए कई तरह के कानून बना रही है. लोग अगर समय पर ऐसे असामाजिक तत्वों की जानकारी दें तभी पूर्ण रूप से लगाम संभव है.
बालाजी सेवा संस्थान पीड़ित मानवता की सेवा में जुटा हुआ है जहां संस्थान के ट्रस्टी और शोभा भाभी कार्यकर्ता समाज में रोगियों और पीड़ितों की मदद करने में जुटे हुए हैं वहीं चाहते हैं कि लोगों में रोग पैदा ना हो इसकी भी व्यवस्था हो इसलिए संस्थान के कार्यकर्ता युवाओं को नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं किसी के साथ जिन लोगों को हमेशा डायलिसिस का सहारा लेना पड़ता है उनके लिए बालाजी सेवा संस्थान विशेष रूप से मददगार के रूप में सामने आया है संस्थान द्वारा डायलिसिस के लिए लगने वाली फीस सहयोग के रूप में मरीज को उपलब्ध कराई जा रही है