जहां होगा दिल्ली की किस्मत का फैसला

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 13-01-2025
जहां होगा दिल्ली की किस्मत का फैसला
जहां होगा दिल्ली की किस्मत का फैसला

 

harjinder हरजिंदर

भारत में चुनाव वह समय होता है जब यहां अल्पसंख्यकों की सबसे ज्यादा चर्चा होती है. कितने मुसलमान, कितने ईसाई, कितने सिख इसके गुणा-भाग होने लगते हैं. रणनीति बनने लगती है कि कैसे उन्हें लुभाया जाए और उनके वोट हासिल किए जाएं.

अब जब दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है तो ये समीकरण बिठाए जाने लगे हैं कि मुस्लिम वोटों का रुख इस बार कैसे रहेगा. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही यह दावा कर रहे हैं कि दिल्ली के मुसलमान इस बार उन्हें ही वोट देंगे। बेशक दोनों ही दावों पर शक करने वाले भी बहुत हैं.

इसी बीच हैदराबाद के असद्दुदीन ओवेसी अपनी पार्टी एआइएमआईएम के साथ दिल्ली के मैदान में कूद पड़े हैं. जिस तरह से वे टिकट बांट रहे हैं उससे यह तो कोई नहीं कह रहा कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार जीत ही जाएंगे, लेकिन उनके तरीके में यह कोशिश तो नजर आ रही है कि दिल्ली की मुस्लिम राजनीति के समीकरणों को तहस नहस कर दिया जाए.

अगर हम 2011 की जनगणना के हिसाब से देखें तो दिल्ली की आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 13 फीसदी के आस-पास है. इस लिहाज से उनके वोटों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं बनती. लेकिन मतदान के नजरिये से यह समुदाय इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसका विस्तार पूरी दिल्ली में समान रूप से नहीं है और कुछ इलाकों में समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है.

दिल्ली की 70 में 10 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां के चुनाव नतीजों में मुस्लिम समुदाय एक महत्वपूर्ण और अक्सर निर्णायक भूमिका निभाता है. 2013 के विधानसभा चुनाव में इनमें से पांच सीटें कांग्रेस को मिलीं थीं, तीन बीजेपी को और एक आप को.

दो साल बाद जब दुबारा विधानसभा चुनाव हुए तो समीकरण बदल गया और आप को इनमें से नौ सीटों मिलीं, बीजेपी को एक। पांच साल 2020 के चुनाव में ये सारी सीटें आप के खाते में जुड़ी। दोनों बार कांग्रेस को कुछ नहीं मिला.

भारत में वोटिंग या उसकी गणना धर्म और जाति के आधार पर नहीं होती इसलिए हम यह नहीं जान पाते कि किस समुदाय के कितने लोगों ने किसे वोट दिए। लेकिन कुछ संस्थाएं सर्वेक्षणों के जरिये यह जानने की कोशिश जरूर करती हैं.

इन सर्वे के नतीजे कितने सटीक होते हैं यह कह पाना हमेशा कठिन होता है. लेकिन ये सर्वे भी यही कहते हैं कि दिल्ली में कभी मुसलमानों का जो समर्थन कांग्रेस को मिलता था वह पिछले दो चुनावों में पूरी तरह आप के पास आ गया है. लेकिन क्या इस बार के चुनाव में भी यही होगा?

आप पिछले दस साल से दिल्ली की सत्ता में है और इतने समय में लोगों की थोड़ी-बहुत नराजगी किसी भी सरकार से बन ही जाती है. कांग्रेस दावा कर रही है कि इस बार वह अपने आधार क्षेत्र को फिर से हासिल कर लेगी. अपने इस दावे को पुख्ता ठहराने के लिए उसके पास तर्क भी हैं.

दिल्ली महानगर परिषद के पिछले चुनावों में कांग्रेस ने कईं ऐसे वार्ड जीतने में कामयाबी हासिल कर ली थी जहां मुस्लिम मतदाता काफी संख्या में हैं. पार्टी का कहना है कि इस बार वह सिलसिला और आगे बढ़ेगा.

सचमुच ऐसा होगा यह कहना मुश्किल है. दिल्ली की एक खासियत यह है कि यहां कि जनता लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव में अलग-अलग तरह की सोच के साथ वोट देती है. यह यहां काफी समय से हो रहा है इसलिए इस बार ऐसा नहीं होगा यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.

इस बीच एक अंग्रेजी अखबार के संवाददाता ने दिल्ली के इन इलाकों का दौरा करके लोगों को राय जानने की कोशिश की तो लोगों की सोच एक अलग तरह से सामने आई. उनका कहना है कि इन इलाकों में जो लोग कांग्रेस के प्रति हमदर्दी रखते हैं वे भी आप को ही वोट देना चाहते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि बीजेपी को दिल्ली में फिलहाल कांग्रेस नहीं आप ही हरा सकती है.

इस रिपोर्ट से आप यह भी समझ सकते हैं कि इस बार भी इन इलाकों में बीजेपी को ज्यादा वोट मिलने वाले नहीं हैं.आठ फरवरी को जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे तो सबसे ज्यादा नजर इन दस सीटों पर ही रहेगी. हो सकता है कि दिल्ली में अगली सरकार किसकी बनेगी इसका फैसला भी इन्हीं सीटों से हो.

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

ALSO READ क्या कहते हैं बढ़ते नफरत के ये आंकड़ें