डॉ फरीदुल आलम
पाकिस्तान में हालात ठीक नहीं चल रहे हैं. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी का सरकार विरोधी रुख हिंसक होने और सरकार द्वारा दमनकारी कदम उठाए जाने के बाद, पीटीआई, जिसने घोषणा की थी कि वह इमरान खान की रिहाई के बिना आंदोलन का मैदान नहीं छोड़ेगी, अचानक पीछे हट गई.
उनकी ओर से आंदोलन को अस्थायी तौर पर स्थगित करने की घोषणा करते हुए कहा गया है , ' सरकार बड़े पैमाने पर दमनकारी गतिविधियों के जरिए राजधानी इस्लामाबाद को बूचड़खाने में तब्दील करना चाहती है.' इस तर्क के साथ पार्टी ने बताया है कि अगले कार्यक्रम की घोषणा पार्टी प्रमुख इमरान खान से चर्चा के बाद की जाएगी.
इस बीच इमरान खान के सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने अपने समर्थकों को मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखने का आदेश दिया है. इमरान की पत्नी बुशरा बीबी इस आंदोलन के नेताओं में से एक है. उन्होंने इमरान खान को लिए बिना न लौटने की कसम भी खाई, लेकिन आखिरकार उन्हें अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा.
बताया जा रहा है कि इस आंदोलन में लाखों कार्यकर्ता और समर्थक जुटे हैं, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की अनुपस्थिति ने आंदोलन की सफलता में बड़ी बाधा बनकर काम किया है. पाकिस्तान के एकमात्र खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में इमरान की पार्टी पीटीआई ने सरकार बना ली. इस्लामाबाद की ओर पीटीआई समर्थकों के आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से मुख्यमंत्री अली अमीन खान गंडापुर और बुशरा बीबी ने किया.
इसका गंतव्य शहर का डी-चौक क्षेत्र था , जहां प्रधानमंत्री कार्यालय , संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट सहित देश की सबसे महत्वपूर्ण इमारतें स्थित हैं.सरकार ने शहर के प्रवेश द्वार बंद कर दिये.बैरियर में कम से कम 700 शिपिंग कंटेनर रखे गए थे.
विरोध कार्यक्रम की मुख्य तीन मांगें इमरान खान की रिहाई, सरकार का इस्तीफा और संविधान के विवादास्पद 26वें संशोधन को रद्द करना है.पुलिस और बॉर्डर गार्ड रेंजर्स के सदस्यों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां और आंसू गैस छोड़ी.8लोगों के हताहत होने की खबर है , जिनमें 4रेंजर्स और 2पुलिसकर्मी शामिल हैं.
हालांकि सेना को हाई अलर्ट पर रखा गया है, लेकिन उनकी गोलीबारी में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है. इस विरोध कार्यक्रम के विफल होने के बाद राजधानी के प्रमुख स्थानों समेत पूरे देश में सेना तैनात कर दी गई है.
बताया गया है कि जब डी-चौक की ओर मार्च को सुरक्षा बलों ने रोका तो कई प्रदर्शनकारी भाग गए.एक समय इसके नेता बुशरा बीबी और अली अमीन खान भी गंडापुर से भाग गए.बाद में उन्होंने बयान जारी कर सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना की.
पूरे मामले से जो बात निकलकर सामने आ रही है वह यह है कि इस आंदोलन कार्यक्रम पर पार्टी के भीतर ठोस निर्णय का अभाव था. पूरा आंदोलन मात्र 4दिनों में परवान चढ़ गया.हालाँकि इमरान खान के कार्यकर्ता और समर्थक महीनों से उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के फैसलों की तुलना में व्यक्तिगत भावनाओं को अधिक महत्व देने के कारण एक आंदोलन कार्यक्रम को सफलता नहीं मिल रही है.
विरोध कार्यक्रम की तीन मुख्य मांगें हैं इमरान खान की रिहाई , सरकार का इस्तीफा और संविधान के विवादास्पद 26वें संशोधन को रद्द करना.उपरोक्त दो मांगों के अलावा , इस 26वें संशोधन के संबंध में पार्टी की स्थिति यह है कि देश के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया संसद के हाथों में सौंप दी गई है.
जैसा कि हम जानते हैं, सरकार की एक प्रणाली में चाहे न्यायाधीशों की नियुक्ति की यह प्रक्रिया संसद , सरकार , स्वयं अदालतों या राष्ट्रपति में निहित हो , सरकार का हमेशा अप्रत्यक्ष प्रभाव होता है.इसे मुख्य रूप से अन्य दो मांगों को वैध बनाने के लिए भी आंदोलन का एक विषय बनाया गया है.
यह सच है कि इमरान खान इस समय लोकप्रियता के मामले में काफी अच्छी स्थिति में हैं.इसका सबूत पाकिस्तान की जनता ने पिछले आम चुनाव में दे दिया है. पार्टी चिन्ह और उनकी पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद उनकी पार्टी ने स्वतंत्र चुनावों में सबसे बड़ी संख्या में सीटें (101) जीतीं.उनके निष्कासन का एकमात्र कारण पाकिस्तान की राजनीति में सबसे प्रभावशाली ताकतों में से एक, सेना से समर्थन का नुकसान था.
पाकिस्तान का पिछला इतिहास बताता है कि निहित स्वार्थों को लेकर टकराव के कारण सेना और राजनीतिक दलों के बीच संबंध लंबे समय से अच्छे नहीं रहे हैं.इसका सबूत हम पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ की 2-टर्म और 3-टर्म अधूरी सरकार में देख चुके हैं.
सेना के साथ-साथ देश की राजनीति में भी अमेरिकी प्रभाव है , जिसका समर्थन हमेशा सेना को मिलता रहता है.इमरान खान की सत्ता से बाहर होने में यही सबसे अहम फैक्टर था.पाकिस्तान के हालिया हालात को लेकर अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा , ' संयुक्त राज्य अमेरिका ने हमेशा मानवाधिकार , लोकतंत्र और शांतिपूर्ण सभा का समर्थन किया है.'
संयुक्त राज्य अमेरिका की समग्र प्रतिक्रिया इस बयान तक ही सीमित थी.इस मामले को विभिन्न तरीकों से समझाया जा सकता है.इस तरह की व्याख्या यह है कि सरकार द्वारा उठाए गए कदम लोगों की सुरक्षा और स्थिरता के हित में हैं , जबकि यह भी सच है कि लोगों को सरकार के कार्यों के खिलाफ इकट्ठा होने की आजादी है.
इन तथ्यों से परे , वास्तविक सच्चाई यह है कि सरकार को अभी भी देश की सेना और कानून प्रवर्तन बलों का भारी समर्थन प्राप्त है , जिसके माध्यम से इतने सख्त रुख के बावजूद सरकार की नींव बरकरार है.सरकार की यह घोषणा कि देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले बल अब प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली चलाने के आदेश दे रहे हैं, सरकार के सख्त रुख को दर्शाता है.
इसके विपरीत, विपक्षी पीटीआई के पास फिलहाल इस तरह से अपनी ताकत दिखाने की क्षमता नहीं दिख रही है. पाकिस्तान में सरकार बने अभी सिर्फ 8महीने ही हुए हैं. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पीएमएल) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के बीच गठबंधन सरकार अच्छी स्थिति में बनी हुई है.
याद रखना चाहिए कि ये दोनों पार्टियां इमरान खान की पीटीआई से भी ज्यादा ताकतवर हैं. आंदोलन कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन के लिए सार्वजनिक महत्व के मुद्दों का होना वांछनीय है , जिनकी इस मामले में कमी थी. साथ ही पार्टी की सहमति भी अनुपस्थित दिखाई दी.
कुल मिलाकर, किसी आंदोलन के लिए संगठनात्मक समन्वय कितना महत्वपूर्ण है, पीटीआई के हालिया असफल आंदोलन ने एक बार फिर साबित कर दिया है.लेकिन सरकार की तरफ से भी इसे लेकर निश्चिंत होने की कोई वजह नहीं है , क्योंकि जनता के समर्थन और सहानुभूति के मामले में इमरान खान अभी भी काफी आगे हैं.
डॉ.फरीदुल आलम,प्रोफेसर , अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग , चटगांव विश्वविद्यालय