जब अच्छी खबरें दब जाती हैं

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 20-01-2025
When good news gets buried
When good news gets buried

 

harjinder हरजिंदर

पिछले कुछ साल से जिस तरह का माहौल बन रहा है उसमें अक्सर लगता है कि अच्छाई शायद हमारे समाज से खत्म होती जा रही है. न जाने कितनी बुरी खबरें रोज हमारे पास पहुंचती हैं, लेकिन हम अक्सर अच्छी खबरों की एक झलक को भी तरस जाते हैं. कुछ ही दिन पहले पंजाब से एक खबर मिली तो पता लगा कि अच्छाई और भाईचारे की भावना अभी भी कायम है. यह बात अलग है कि इस दौर में ऐसी खबरों को ज्यादा भाव नहीं मिल रहा.

पहले बात करते हैं उस खबर की. पंजाब के मलेर कोटला जिले में एक गांव है उमरपुर. इस गांव की 30 फीसदी आबादी मुस्लिम है. बाकी ज्यादातर सिख हैं. इतनी आबादी के बावजूद गांव में मुसलमानों के लिए कोई मस्जिद नहीं थी. ऐसे में गांव के ही एक सिख परिवार ने मस्जिद बनाने के लिए अपनी साढ़े पांच विस्वा जमीन दाम में दे दी.

इतना ही नहीं गांव के दो अन्य परिवारों ने मस्जिद बनाने के लिए अपनी तरफ से पैसा भी दान किया.इतवार 12 जनवरी को जब पंजाब के शाही इमाम मुहम्मद उस्मान रहमान लुधियानवी ने इस मस्जिद की नींव रखी तो इसे बनाने का काम भी शुरू हो गया.यहां मलेर कोटला की बात करना भी जरूरी है.

पंजाब का यह अकेला ऐसा जिला है जहां मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है. 1947 में विभाजन के समय जब आस-पास के इलाकों से मुसलमानों की एक बड़ी आबादी पाकिस्तान चली गई थी तो पूरे पंजाब में यह अकेली ऐसी जगह थी जहां के मुसलमानों ने भारत में ही रहना स्वीकार किया.

پنجاب : گاوں میں نہیں تھی مسجد ،سکھ خاندان نے دیا  زمین کا عطیہ

यह भी कहा जाता है कि उस समय जब बाकी जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, यह अकेली जगह थी जो शांत थी.. यह भी कहा जाता है कि उस मुश्किल दौर में जो भी यहां आ गया, फिर उसका बाल-बांका भी नहीं हुआ.
खैर, इस इतिहास को छोड़कर लौटते हैं वर्तमान पर.

उमरपुर गांव से जो अच्छी खबर आई वह सिर्फ एक ही राष्ट्रीय स्तर के अखबार में दिखाई दी. बाकी जगह इसे नजरंदाज ही कर दिया गया. इस पर संपादकी नहीं लिखे गए. टीवी चैनलों ने इस पर न कार्यक्रम किए और न ही कोई स्टूडियो डिस्कशन हुए. यह खबर यू-ट्यूब चैनलों में भी नहीं दिखाई दी.. न ही किसी ने इस पर शाॅर्ट वीडियो बनाए. इसे व्हाट्सऐप पर बहुत ज्यादा शेयर किए जाने की खबरें भी नहीं मिली.

अब जरा कल्पना कीजिए कि इसकी जगह कोई नकारात्मक खबर होती. कोई ऐसी घटना जिसमें प्यार की नहीं नफरत की बात होती. तो शायद हर जगह वह खबर सुनाई देती. हर अखबार में दिखती. टीवी चैनल उनके बारे में चीख-चीख कर बताते. उन पर डिबेट होती. यू-ट्यूब पर वह छाई रहती. सोशल मीडिया पर वह वायरल होती और व्हाट्सऐप के जरिये तो वह कईं बार आपके मोबाइल फोन पर पहंुच चुकी होती.

अंग्रेजी की एक कहावत है- सच जब तक अपने घर से निकलने के लिए जूते के तसमें बांध रहा होता है, झूठ पूरे शहर के आठ चक्कर लगाकर लौट आता है. हमारे दौर का सच भी यही है. हमारी बहुत सारी दूसरी दिक्कतों में एक यह है कि हमारे पास ऐसी जगहें ही ज्यादा नहीं बचीं जहां हम अच्छी खबरों को सम्मान से खड़ा करके सबके पास पहंुचा सकें.

हमने बुरी खबरों को तो विस्तार का इन्फ्रास्ट्रक्चर दे दिया है लेकिन अच्छी खबरों के लिए ऐसी व्यवस्था बननी अभी बाकी है. जब तक हम ऐसी व्यवस्था नहीं बना लेते बुरी खबरें ही हमारे दिलों पर राज चलाती दिखाई देंगी.   

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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