बजट से क्या उम्मीद बांधे अल्पसंख्यक

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 22-07-2024
What should minorities expect from the budget?
What should minorities expect from the budget?

 

harjinderहरजिंदर

सरकार जब बजट पेश करने जा रही होती है तो उसके बारे में सोचने के दो ही तरीके होते हैं- या तो उससे उम्मीद बांधी जाए, या उसे लेकर आशंकाएं पाली जाएं. मंगलवार को संसद में जो बजट पेश होगा उसे लेकर ये दोनों ही चीजें हो सकती हैं और दोनों के ही अपने कारण भी हैं.

अगर हम मोदी सरकार के पिछले पूर्ण बजट को लें जो एक फरवरी 2023 में पेश हुआ था. इस बजट में अल्पसंख्कों के लिए किए जाने वाले प्रावधानों में 38 फीसदी की कटौती की गई थी. यह कटौती तकरीबन सभी तरह की योजनाओं में हुई थी.

यहां तक कि उन योजनाओं में भी जिनका मकसद अल्पसंख्यकों में शिक्षा का प्रसार और उनका सशक्तीकरण था। इसके लिए होने वाला प्रावधान जो पहले 2515 करोड़ रुपये था उसे घटाकर 1689 करोड़ रुपये कर दिया गया.

इसी तरह से अल्पसंख्यक नौजवानों के कौशल विकास यानी स्किल डेवलपमेंट के लिए पहले जो 492 करोड़ रुपये का प्रावधान था उसे साढ़े सात गुना से भी ज्यादा घटाकर सिर्फ 64 करोड़ रुपये के मामूली रकम तक पहंुचा दिया गया था.

कटौतियों की यह फेहरिस्त बहुत लंबी है और इसने उन सभी अल्पसंख्यकों को चिंता की लकीरें दे दी थीं जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पीछे हैं.अब हम आते हैं उस अंतरिम बजट पर जिसे वित्तमंत्री निर्मला सीतरमण ने एक फरवरी 2024 को संसद में पेश किया.

इस बजट में भी अल्पसंख्यकों के लिए होने वाले प्रावधानों में कटौती हुई लेकिन वह उतनी बड़ी नहीं थी जितनी कि वह पिछले साल में थी. यह कटौती सिर्फ 125 करोड़ रुपये की थी.

इस कटौती का जो कारण था वह काफी महत्वपूर्ण था. सरकार ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को बंद कर दिया था इसलिए यह रकम कम हो गई। इसके अलावा वक्फ बोर्डों के विकास के लिए जो प्रावधान था उसे भी कम कर दिया गया.

इस प्रावधान में वक्फ बोर्डों के कंप्यूटराीकरण पर होने वाला खर्च भी शामिल था और यह मान लिया गया कि बोर्डों ने इसके लिए कंप्यूटरों की खरीद वगैरह कर ली होगी इसलिए अब इसे कम किया जा सकता है.

इसके अलावा अन्य मदों में कटौती बहुत ज्यादा नहीं थी.अंतरिम बजट में आमतौर पर न तो प्रावधान बढ़ाए जाते हैंे और न ही घटाए जाते हैं. महंगाई के दबाव को एडजस्ट करने के लिए थोड़ी बहुत कमीबेशी जरूर की जाती है.

इसलिए अंतरिम बजट में जो होता है उससे सरकार की नीति को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता. उसके लिए हमें पूर्ण बजट का इंतजार करना होता है.मंगलवार को संसद में पेश होने वाला नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट इसी लिहाज से महत्वपूर्ण होने वाला है.

भले ही यह गंठबंधन सरकार का बजट होगा लेकिन यह एक ऐसी सरकार का बजट भी होगा जिसमें एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है. साथ ही यह ऐसी पार्टी की अगुवाई वाले गंठबंधन का बजट होगा जिसमें एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. अगर बजट में अल्पसंख्यकों को विशेष ध्यान रखा गया तो ये सारे तर्क बेकार भी साबित हो सकते हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



ALSO READ कश्मीर ने दी चिंता की नई लकीरें