रूस के तालिबान को मान्यता देने के अर्थ

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 07-10-2024
What does it mean for Russia to recognise the Taliban?
What does it mean for Russia to recognise the Taliban?

 

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हरजिंदर

याद कीजिए वह दौर जब अफगानिस्तान पर सोवियत संघ या दूसरे शब्दों में कहें तो रूस का कब्जा था. अफगानिस्तान में मास्को की सेना से लड़ने के लिए अमेरिका ने एक गुरिल्ला फौज खड़ी की थी जिसे नाम दिया गया था तालिबान. बाद में दुनिया ने तालिबान को आतंकवादी समूह का दर्जा दे दिया जो अभी कईं मामलों में बरकरार है.

ये समीकरण अब पूरी तरह से पलट गए हैं. इस समय तालिबान का अफगानिस्तान में राज है . उनका सबसे बड़ा दुशमन है अमेरिका. इस बदलाव को अब अफगानिस्तान के सबसे बड़े और सबसे मजबूत पड़ोसी रूस ने भी स्वीकार करना शुरू कर दिया है. रूस ने तालिबान को अब आतंकवादी गुटों की फेहरिस्त से हटाने का फैसला किया है.

वे तालिबान अब रूस से लिए दहशतगर्द नहीं है जिन्हें खड़ा ही रूस के खिलाफ किया गया था.ये कोशिशें काफी समय से दोनों ही तरफ से जारी थी. रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को पिछले काफी समय से कुछ रियायतें देनी शुरू कर दीं थीं. तालिबान सेंट पीटर्सबर्ग इकाॅनमिक फोरम की बैठक में 2022 से ही शामिल हो रहे थे.

जल्द ही इस फोरम की अगली बैठक होने वाली है. यानी इस बार तालिबान एक सरकार के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में शामिल होंगे.पिछले दिनों ही अफगानिस्तान के वित्त मंत्री एक बैठक में भाग लेने मास्को गए थे. उन्हें राजकीय अथिति बनाया गया था.

भला आंतकवादी संगठन के प्रतिनिधि को कोई राजकीय अथिति का दर्जा देता है ? मास्को को इस अंतर्विरोध को देर-सवेर खत्म करना ही था. अब अगर तालिबान सरकार को रूस की मान्यता मिल जाती है तो यह समस्या नहीं रहेगी.

वैसे अपनी ओर से तालिबान भी इसकी कोशिश कर रहे थे. तालिबान सरकार अफगानिस्तान की वायु सुरक्षा के लिए एयर डिफेंस सिस्टम चाहती है. उसे पता है कि रूस के अलावा यह कहीं और से नहीं मिल सकता.

अफगानिस्तान सरकार की ओर से इसे लेकर कईं बयान भी आए थे. यहां तक कहा गया कि अगर रूस यमन के हैती विद्रोहियों और लेबनान के हिजबुल्लाह को हथियार दे सकता है तो वह अफगानिस्तान के तालिबान को क्यों नहीं दे सकता.

तालिबान की दिक्कत यह है कि दुनिया के ज्यादातर देशों में उन्हें अभी भी आतंकवादी संगठन का दर्जा ही हासिल है. ऐसे में रूस उनके लिए एक खिड़की का काम कर सकता है जहां से पूरी दुनिया से जुड़ सकें.

यूक्रेन के साथ लंबी लड़ाई लड़ रहे रूस को भी दुनिया की कईं पाबंदियां झेलनी पड़ रही हैं. अफगानिस्तान के रूप में उसे एक नया बाजार मिल जाएगा. अफगानिस्तान का विदेश व्यापार बहुत कम है. वहां के बाजारों में रूसी उत्पादों के लिए काफी संभावनाएं भी हैं.

लेकिन कुछ चीजें अभी साफ नहीं हैं. अफगानिस्तान में अल कायदा अभी भी तालिबान के साथ है. क्या उसका आंतकवादी संगठन का दर्जा भी मास्को खत्म कर देगा? रूस जिस रास्ते पर चल पड़ा है वहां उसे ऐसे कईं सवालों से जूझना होगा.

इस दोस्ती से कुछ उम्मीदें भी बांधी जा सकती हैं. अफगानिस्तान में इस समय तालिबान का सबसे बड़ा सिरदर्द इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस खोसरान का लगातार बढ़ता प्रभाव है. इस संगठन ने रूस को भी परेशान किया हुआ है . मार्च महीने में तो इसने रूस में एक वारदात भी की थी. क्या तालिबान और रूस का गंठजोड़ आईएसआईएस के आखिरी गढ़ के टूटने की शुरुआत होगा? 

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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