कमजोर सुर की मजबूत आवाज

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 20-01-2024
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shah taj

शाह ताज खान

 पत्रकारिता के इतिहास की स्मृति के रूप में परिभाषित करने वालों का मानना है कि इसके सीने में सभ्यता और संस्कृति का विवेक मौजूद है. यह भी कहा जाता है कि पत्रकारिता मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में घटित घटनाओं और स्थितियों की प्रत्यक्ष जानकारी का नाम है.

इसके संबंध में एक विचार यह भी है कि यह राष्ट्रों के उत्थान और पतन पर बात करती है. यह विश्व इतिहास की दैनिक पत्रिका है जो प्रतिदिन लिखी-पढ़ी जाती है. इस बात से इनकार नहीं कि पत्रकारिता अपने युग का एक हिस्सा है और समाज का दर्पण. देश की आजादी से पहले पत्रकारिता का दायरा और शैली अलग थी.

स्वतंत्रता के बाद पत्रकारिता मिशन नहीं रही. इसके अर्थ में बदलाव और विस्तार हुआ है. पत्रकारिता भी अब अखबारों तक सीमित नहीं . दायरा व्यापक हुआ है. खबरें अब अखबार, ऑडियो-वीडियो से निकलकर सोशल मीडिया पर आ गई मौजूद हैं.

पत्रकारिता न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों को महत्व देती है. यह पाठकों तक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक दृष्टिकोण पहुंचाने की जिम्मेदारी संभाल रही है.

समाचार अब असीमित हो गए हैं. वैसे, समाचार का कार्य वही है जो कल था. यानी आसपास होने वाली घटनाओं की सूचना देना. यह मानव मस्तिष्क को प्रशिक्षित और व्यक्तित्व निर्माण में भी भूमिका निभाती है.

मौजूदा दौर में मीडिया के बढ़ते दायरे ने खबरों को पंख दिए हैं. पत्रकार की जिम्मेदारियां भी बढ़ी हैं. खबरें अब सुबह का इंतजार नहीं करतीं.सोशल मीडिया ने समाचारों को समय की कैद से मुक्त किया है.

विभिन्न आधुनिक मंचों पर लगातार देखी जाने वाली घटनाएं, चाहे वे समाचार हों या न हों, पत्रकारों का नहीं, समाचार योग्य कार्यक्रम का चयन दर्शकों द्वारा किया जा रहा है. सोशल मीडिया इसका बेहतर उदाहरण हैं. ऐसे अशांत युग में, आवाज द वाॅय जैसे प्लेटफार्मों ने अनर्गल समाचारों पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी संभाली है.

पिछले कुछ समय से पत्रकारिता की दुनिया में जो खो गया है, उस पर ध्यान केंद्रित किया है. छोटी-छोटी बातें, सकारात्मक पहलू को आवाज द वॉयस में जगह दी जा रही है. उसने उन आवाजों को मंच दिया है जिनमें खबर बनने की सलाहियत नहीं.

एक आम नागरिक के लिए ये उसकी जिंदगी की सबसे अहम खबर थी. जब आम चीजों ने आवाज द वॉयस का खूबसूरत और अनोखा लिबास पहना तो खबर को खास बनने में देर नहीं लगी. मैंने भी अपने काम से योगदान दिया.

मेरे अपने शहर पुणे की गली, मोहल्लों की खबरों को इसमें तरजीह दी गई. अनोखी खबरें और व्यक्तित्व ने आम लोगों को प्रेरित किया. यही आवाज की कामयाबी भी है.बिजली की गति से खबरें आ रही हैं.

अच्छी, बुरी, सही, गलत, नकारात्मक, सकारात्मक. हर जगह खबर ही खबर है. आलम है कि खबर को खबर बनने का समय ही नहीं. ऐसे समय में यह जरूरी है कि ऐसी खबरों को प्रमुखता दी जाए जो समाज को जोड़ने का काम करती हैं.

एकता और सहमति की भाषा बोलती हैं. आज दुनिया में खबरों की कोई कमी नहीं . आवाज द वॉयस खबरों की इस विस्तृत दुनिया से उन खबरों को चुनता है, जो समाज को जोड़ने का काम करती हैं. खबरों के इस चयन में आवाज द वॉयस सफल है या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगी. मगर यह कहा जा सकता है कि आज इसकी बहुत जरूरत है.

( लेखिका महाराष्ट्र की वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं )