भारत में एकता, मिश्रित आबादी वाले आवासीय क्षेत्र की जरूरत

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 18-05-2024
Imperative of Mixed Residential Colonies for India's Unity
Imperative of Mixed Residential Colonies for India's Unity

 

atirआतिर खान

भारत में औपनिवेशिक युग, विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के तहत, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सदियों से चले आ रहे सह-अस्तित्व को खंडित कर दिया गया. और अपने पीछे कलह की एक ऐसी विरासत छोड़ दी, जो समाज को विभाजित करती रही.

अंग्रेजों द्वारा लागू की गई ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को गंभीर स्थायी नुकसान पहुंचाया. भारत के विभाजन के निशान अभी भी मौजूद हैं, जिससे असुरक्षाएं बनी हुई हैं, जो अधिक सामंजस्यपूर्ण भविष्य की दिशा में प्रगति में बाधा डालती हैं.

चुनौतियों के बावजूद, भारत ऐतिहासिक रूप से विविध संस्कृतियों का मिश्रण रहा है, जिसके मूल में सह-अस्तित्व और पारस्परिक सम्मान के सिद्धांत हैं. इस सांस्कृतिक समागम ने राष्ट्र की एक विशिष्ट पहचान को जन्म दिया है.

भारत हमेशा से एक गहरा धार्मिक देश रहा है, जहां लोग अपने मतभेदों के बावजूद सह-अस्तित्व में थे, लेकिन उन्होंने मिश्रित इलाकों में रहते हुए एक-दूसरे की धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं के साथ तालमेल बिठाना, समायोजित करना और सम्मान करना सीखा.

पुरानी दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित स्थान इस सद्भाव का प्रतीक हैं, जहां चांदनी चौक की एक ही सड़क पर मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों के सह-अस्तित्व में धार्मिक विविधता का स्पष्ट प्रतिनिधित्व होता है. यह आत्मसातीकरण ही था, जिसने भारतीयता, उर्दू नामक एक नई भाषा, महान काव्य और संगीत परंपराओं को जन्म दिया. रजवाड़े और रियासतें प्रतिभा को धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर संरक्षण देते थे. स्वतंत्रता-पूर्व भारत की धर्मनिरपेक्ष विरासत ऐसी ही थी.

ऐसा कहा जाता है कि वो ऐसा समय था,जब लोगों को समृद्ध अनुभव प्राप्त हुए, जहां उन्होंने एक-दूसरे से सीखा, शिल्प कौशल कौशल, व्यापार और वाणिज्य की चतुराई का आदान-प्रदान किया. हालांकि यह एक धीमी गति से चलने वाली दुनिया थी, और आधुनिक दुनिया की बिजली की गति के संपर्क में नहीं थी. लेकिन लोग खुश थे. लेकिन आज अगर हम देश की आबादी के बड़े वितरण पर नजर डालें, तो पाएंगे कि हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय एक-दूसरे से दूर हो गए हैं.

स्वतंत्रता के बाद एकीकृत राष्ट्रीय दृष्टिकोण की अनुपस्थिति ने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ने दिया, जिससे समुदायों का अलगाव हुआ. राजनीतिक नेता अक्सर अल्पकालिक चुनावी लाभ के लिए इन विभाजनों को बढ़ा देते हैं. हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को नुकसान उठाना पड़ा और अब वे डर और असुरक्षा से प्रेरित होकर विशेष बस्तियों में चले गए हैं.

यह अलगाव तेजी से मजबूत हो गया है, खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मुंबई, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में. समय के साथ यह अंतर और भी बड़ा होता जा रहा है. और यदि इसे अनदेखा कर दिया गया, तो यह ज्यादा हानिकारक होगा, जितना आज दिखाई देता है.

तेजी से तकनीकी प्रगति और वैश्वीकरण के आलोक में, जहां लोगों को अलग-थलग किया जा रहा है, वहां जमीनी स्तर पर एकीकरण को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है. मिश्रित आवास पहल सांप्रदायिक विभाजन को पाटने के लिए एक आशाजनक समाधान प्रदान करती है.

इन प्रस्तावित एकीकृत पड़ोसों को निवासियों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों और पूजा स्थलों जैसी सांप्रदायिक सुविधाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए. सभी समुदायों के प्रतिनिधियों वाली प्रबंधन समितियां समावेशिता और निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकती हैं.

ऐसे क्षेत्रों को ‘मॉडल एकीकृत विहार’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है और शुरुआत में इस परियोजना को प्रायोगिक आधार पर एक जिले में शुरू किया जा सकता है. किसी भी नीतिगत सुधार के लिए अनुभवों की बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए और उन्हें रिकॉर्ड किया जाना चाहिए.

अगले चालीस वर्षों में इस अवधारणा के सफल कार्यान्वयन से समग्रता सुनिश्चित होगी और यह सुनिश्चित होगा कि सभी भारतीय पहचानें आम राष्ट्रीय पहचान में विलीन हो जायेंगी.

इस परियोजना को करने की आवश्यकता इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि पिछले 77 वर्षों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को एक गंभीर परियोजना के रूप में संबोधित नहीं किया गया है. दोनों समुदायों का प्रदर्शन केवल व्यावसायिक आवश्यकताओं तक ही सीमित हो गया है. इस बढ़ती दूरी ने एक-दूसरे को समझने की उनकी क्षमता को कम कर दिया है.

इन पहलों को संस्थागत बनाने और उनकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए विधायी समर्थन आवश्यक हो सकता है. सिंगापुर जैसे देशों के सफल मॉडलों से प्रेरणा लेकर भारत चुनौतियों पर काबू पा सकता है और विविधता में एकता की अपनी क्षमता को मजबूत कर सकता है. आज के समय में मिश्रित आवास इलाके बनाने का विचार बेतुका, काल्पनिक और कुछ लोगों के लिए प्रशंसनीय भी लग सकता है. लेकिन यह वास्तव में समय की मांग है.

निष्कर्षतः, मिश्रित आवासीय कॉलोनियां सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने और साझा राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने की दिशा में एक ठोस कदम का प्रतिनिधित्व करती हैं. विविधता को अपनाकर और समावेशन को बढ़ावा देकर, भारत विकास के लिए अधिक एकजुट और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.