हरजिंदर
एक सदी पहले प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनीतिशास्त्री और अर्थशास्त्री ने एक किताब लिखी थी- ‘ए ग्रामर आॅफ पाॅलिटिक्स‘, यानी राजनीति का व्याकरण. जब उन्होंने यह किताब लिखी तो दुनिया भर में बहुत सारे लोग, अपनी-अपनी तरह से, राजनीति को एक नई भाषा देने की कोशिश में जुटे हुए थे और वे इससे आगे इसे जोड़कर एक नया व्याकरण देना चाहते थे.
यह उस दौर की बात है जब लोकतंत्र की राजनीति एक नए दौर को गढ़ने में जुटी थी. नई भाषा और व्याकरण तो उसके सामने बहुत छोटी चीज थी. लोगों को जोड़ना, उनमें मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ाना उस दौर की लोकतांत्रिक राजनीति के मकसद थे.
तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है. जोड़ने की जगह तोड़ने और मुहब्बत की जगह नफरत से राजनीति की सीढ़िया बनाई जाने लगी हैं. भाषाओं को गढ़ने वाले दौर से हम उस दौर में पहंुच गए हैं जहां कुछ लोग भाषाओं को खत्म करने के लिए ही कमर कस लेते हैं.
जब हम नफरत की राजनीति की बात कहते हैं तो इसका अर्थ हमेशा ही सांप्रदायिक दंगे नहीं होता. इसका मतलब हमेशा ही एक दूसरे के खिलाफ जहर उगलना नहीं होता. इसका मतलब किसी समुदाय या संप्रदाय का मजाक उड़ाना ही नहीं होता. कईं बार ऐसे बहुत छोटे-छोटे कदम भी हमें नफरत की ओर ले जाते हैं जिनके बारे में यह तर्क दिया जा सकता है कि इसमें हर्ज ही क्या है.
दिसंबर के दूसरे हफ्ते में ऐसी ही छोटी सी बात हुई राजस्थान में. बात भले ही छोटी है, लेकिन आगे पीछे जोड़कर देखें तो डर लगेगा कि यह समस्या नफरत से पैदा हुई है और अंत में नफरत को ही बढ़ाने का काम करेगी.
प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने एक सरकारी चिट्ठी जारी की.
इसमें कहा गया है कि अब से प्रदेश का पुलिस विभाग उर्दू शब्दों का इस्तेमाल नहीं करेगा. उर्दू शब्दों की जगह सिर्फ हिंदी शब्दों का ही इस्तेमाल किया जाएगा.अभी कुछ ही दिन पहले तक व्हाट्सएप पर एक पोस्ट चल रही थी. इसमें कहा गया था कि हमें उर्दू की जगह हिंदी शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए.
किस उर्दू शब्द की जगह कौन सा हिंदी शब्द होगा यह भी बताया गया था. व्हाट्सएप पर इस तरह की बेतुकी और नफरती पोस्ट चलती रहती हैं . आमतौर पर लोगों ने उन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है. लेकिन क्या राजस्थान पुलिस ने इसे गंभीरता से ले लिया ?
वैसे भी शायद देर सवेर यह होना ही था. खासकर इन दिनों जब तर्क का इस्तेमाल लगातार कम होता जा रहा है. अब इस तरह की बातें कहीं सुनाई नहीं देतीं कि हिंदी और उर्दू एक ही दौर में और एक ही जगह एक साथ विकसित हुईं थीं.
दोनों का जन्म खड़ी बोली से ही हुआ था और इससे भी बड़ी बात यह कि दोनों ही शुद्ध रूप से भारत की सरजमीं पर विकसित हुई भाषाएं हैं. पहले इस तरह की बातें बार-बार दोहराई जाती थीं. अब एक भाषा को दूसरी के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है. उससे भी बड़ी बात यह है कि राजस्थान में इस पर सरकारी मुहर भी लग गई है.
हम जब बोलते हैं या लिखते हैं तो जो भाषा हमारे मुंह से निकलती है. उसमें कहां हिंदी है और कहां उर्दू यह समझना और दोनों भाषाओं के शब्दों को अलग-अलग छांटना मुश्किल हो जाता है. आप शुद्ध हिंदी या फिर शुद्ध उर्दू सिर्फ जिद्द की वजह से ही बोल सकते हैं. सहज ढंग से इसे बोलना मुश्किल है. लेकिन अब सरकारी आदेश है तो राजस्थान पुलिस को यह जिद्द भी अपनानी ही पड़ेगी.
जिस समय देश में सदभाव, भाईचारे और मुहब्बत का नया व्याकरण विकसित करने की जरूरत है हम नफरत की भाषा विकसित कर रहे हैं.उर्दू के बारे में एक बात कही जाती है. इस भाषा की यही सिफत है कि इसका इस्तेमाल आप मुहब्बत के लिए तो कर सकते हैं लेकिन जंग के लिए नहीं कर सकते. लेकिन उर्दू के खिलाफ जंग तो छेड़ी ही जा सकती है, राजनीति आजकल ऐसी ही जंग छेड़ रही है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)