प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को बेहतर बनाने की ज़रूरत

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-11-2024
There is a need to improve the infrastructure of primary education
There is a need to improve the infrastructure of primary education

 

mamtaममता

इसी सप्ताह राजधानी जयपुर में राइजिंग राजस्थान समिट के तहत एजुकेशन समिट का आयोजन किया गया, जहां पर शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा सहित कौशल व उद्यमिता विभाग के साथ निवेशकों ने 28 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा के एमओयू साइन किया. इससे सरकारी स्कूलों में सोलर सिस्टम की स्थापना, आईसीटी लैब, स्मार्ट क्लासरूम, फर्नीचर, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में बेहतर डाइनिंग हॉल तैयार करने में मदद मिलेगी.

साथ ही स्कूली छात्रों को स्वेटर, जूते उपलब्ध कराए जाएंगे. वहीं, प्रदेश में जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के विकास, स्कूलों में ब्लॉक लेवल पर खेल के स्टेडियम, ऑनलाइन परीक्षा सुविधा केंद्रों की स्थापना और लड़कियों के लिए सैनिक एकेडमी की स्थापना भी की जाएगी. राज्य सरकार के इस पहल से स्कूलों की स्थिति में सुधार की उम्मीद है. लेकिन शिक्षा की पहली सीढ़ी कहे जाने वाले प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति में अभी भी बहुत काम करने की ज़रूरत महसूस हो रही है.

राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां प्राइमरी स्तर पर संचालित सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी है. अजमेर स्थित नाचनबाड़ी गांव ऐसा ही एक उदाहरण है. जिला मुख्यालय से करीब पांच किमी दूर घूघरा पंचायत स्थित इस गांव में अनुसूचित जनजाति कालबेलिया समुदाय की बहुलता हैं.

पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार गांव में लगभग 500 घर हैं. यहां संचालित एकमात्र प्राथमिक विद्यालय में पूरी तरह से बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. मात्र 2 कमरों में संचालित इस स्कूल में करीब 45 बच्चे पढ़ते हैं. इस संबंध में गांव के एक अभिभावक सदानाथ कहते हैं कि उनकी दो बेटियां हैं और दोनों गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाती हैं.

लेकिन स्कूल में सुविधाओं की कमी के कारण वह अक्सर स्कूल जाने से मना करती हैं. वह कहते हैं कि स्कूल में शौचालय की स्थिति ठीक नहीं है. वह बच्चों के इस्तेमाल के लायक नहीं है. इसके अतिरिक्त स्कूल में पीने के साफ़ पानी की भी कमी है. एक हैंडपंप लगा हुआ है जिससे अक्सर खारा पानी आता है. जिसे पीकर बच्चे बीमार हो जाते हैं.

वह कहते हैं कि प्राथमिक शिक्षा बच्चों की बुनियाद को बेहतर बनाने में मददगार साबित होती है. लेकिन जब सुविधाओं की कमी के कारण बच्चे स्कूल ही नहीं जायेंगे तो उनकी बुनियाद कैसे मज़बूत होगी? उन्हें आगे की शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई आएगी.

एक अन्य अभिभावक 55 वर्षीय भेरुनाथ कालबेलिया बताते हैं कि उनके समुदाय में पहले की अपेक्षा शिक्षा की स्थिति सुधरी है लेकिन बालिका शिक्षा का स्तर अभी भी बहुत कम है. लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने के प्रति बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं.

गांव के प्राथमिक विद्यालय में लड़कियां पांचवीं तक पढ़ती हैं. लेकिन स्कूल में सुविधाओं की कमी के कारण पढ़ाई के प्रति उनकी दिलचस्पी भी कम हो जाती है. वह बताते हैं कि पांचवीं तक पढ़ाने के लिए स्कूल में दो शिक्षक हैं. जिन पर पढ़ाने के साथ साथ स्कूल के विभागीय कार्यों को भी समय पर पूरा करने की ज़िम्मेदारी होती है.

यही कारण है कि वह पढ़ाने से अधिक कागज़ी कार्रवाइयों को पूरा करने में अधिक समय देते हैं. जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है. उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है. भेरुनाथ कहते हैं कि पांचवीं से आगे उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को घूघरा जाना होता है.

जो नाचनबाड़ी से करीब दो किमी दूर है. लेकिन गांव के प्राथमिक स्कूल में ही शिक्षा का स्तर बेहतर नहीं है तो बच्चे आगे की पढाई में कैसे दिलचस्पी लेंगे? भेरुनाथ की 15 वर्षीय बेटी पूजा 9वीं कक्षा की छात्रा है. वह बताती है कि गांव में उसके उम्र की करीब 13 किशोरियां है. जिनमें केवल 6 लड़कियां ही आगे की पढ़ाई के लिए घूघरा जाती हैं.

हालांकि सभी ने पांचवीं तक गांव के स्कूल में ही पढ़ाई की, जहां सुविधाओं की काफी कमियां थीं. वह कहती है कि बुनियादी स्तर पर कमज़ोर शिक्षा के कारण हमें आगे की पढ़ाई में काफी मेहनत करनी पड़ रही है.वहीं छोटूनाथ बताते हैं कि स्कूल में शिक्षक नियमित रूप से आते हैं लेकिन अक्सर विभाग के कागज़ी कामों में व्यस्त होने के कारण वह बच्चों को पढ़ाने में बहुत अधिक समय नहीं दे पाते हैं. जिससे बच्चे पढ़ने की जगह स्कूल में केवल समय काट कर आ जाते हैं.

इससे उनकी शैक्षणिक गतिविधियां बहुत अधिक प्रभावित हो रही हैं. गांव के अधिकतर अभिभावक नाममात्र के शिक्षित हैं. इसलिए वह अपने बच्चों को घर में भी पढ़ा नहीं पाते हैं. इन कमियों की वजह से नाचनबाड़ी गांव के बच्चों की बुनियादी शिक्षा ही कमज़ोर हो रही है, जिससे उन्हें आगे की कक्षाओं में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

अधिकतर बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं. वह कहते हैं कि इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव बालिकाओं की शिक्षा पर पड़ता है. बुनियाद कमज़ोर होने के कारण उच्च शिक्षण संस्थाओं में उन्हें मुश्किलें आती हैं. छोटूनाथ बताते हैं कि शिक्षक और अन्य कर्मचारी को मिलाकर इस स्कूल में पांच पद खाली हैं. यदि इन्हें भर दिया जाए तो शिक्षक पूरी तरह से बच्चों पर ध्यान दे सकते हैं. इससे उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी. 

गांव के सामाजिक कार्यकर्ता वीरमनाथ कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के प्रभावित होने के कई कारण हैं. सबसे बड़ी वजह इन स्कूलों में कई वर्षों तक शिक्षकों के पद खाली रहते हैं. जिसके कारण स्कूल में मौजूद एक शिक्षक के ऊपर अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों को पढ़ाने और समय पर सिलेबस खत्म करने की जिम्मेदारी तो होती ही है.

साथ में उन्हें ऑफिस का काम भी देखना होता है. बच्चों की उपस्थिति, मिड डे मील और अन्य ज़रूरतों से संबंधित विभागीय कामों को पूरा करने में ही उनका समय निकल जाता है. जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है. वह कहते हैं कि इन सरकारी स्कूलों में गांव के अधिकतर आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहद कमजोर परिवार के बच्चे ही पढ़ने आते हैं.

जो परिवार आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत बेहतर होते हैं वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना पसंद करते हैं. वीरमनाथ कहते हैं कि पूरे राज्य के सरकारी स्कूलों के सभी पदों को मिलाकर करीब एक लाख से अधिक पद खाली हैं. जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर जल्द भरने की जरूरत है.

इन खाली पदों के कारण शिक्षा कितना प्रभावित हो रही होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. हालांकि जिस प्रकार से राज्य सरकार इस दिशा में काम कर रही है इससे आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही इन कमियों को दूर कर लिया जाएगा.

इसी सप्ताह केंद्र सरकार ने पीएम विद्यालक्ष्मी योजना शुरू करने की घोषणा की है. इसके तहत जो भी छात्र अच्छे उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला लेता है, उसे बैंक और वित्तीय संस्थान बिना किसी गारंटी या जमानत के लोन देंगे. इस योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार के छात्रों को आर्थिक मदद देना है ताकि पैसे की तंगी की वजह से वह उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाए.

यह लोन पूरी फीस और पढ़ाई से जुड़े दूसरे खर्चों को पूरा करने के लिए होगा. शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम मील का पत्थर साबित होगा. लेकिन सबसे पहले प्राथमिक स्तर की शिक्षा को बेहतर बनाने की आवश्यकता है क्योंकि यह शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों का पहला कदम होता है. ऐसे में बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं से लैस कर इस कदम को मज़बूत बनाया जा सकता है. (चरखा फीचर्स)