दुनिया ने सुनी, खुलकर साँस लेते नए कश्मीर की कहानी

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 08-03-2024
The world heard the story of the new Kashmir breathing freely.
The world heard the story of the new Kashmir breathing freely.

 

permodप्रमोद जोशी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर जाकर केवल भारत को ही नहीं, सारी दुनिया को एक संदेश दिया है कि वे खुद अपनी आँखों से देखें कि अनुच्छेद 370 की जकड़बंदी से मुक्त होने के बाद कश्मीर की वादी का माहौल कितना बदला है. इस तस्वीर को सबसे ज्यादा गौर से पाकिस्तान में, और खासतौर से उसके कब्ज़े वाले कश्मीरी इलाके में देखा गया होगा.  

यह यात्रा लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हुई है, इसलिए इसके राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट हैं, पर कश्मीर में आए सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों की अनदेखी नहीं की जा सकती है. लोकसभा के पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 को हटाने का वायदा किया था. वह वायदा उसी साल पूरा हो गया था, पर उसके व्यावहारिक-निहितार्थ पिछले साढ़े चार साल में देखने को मिले हैं.

खुला माहौल

श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम से प्रधानमंत्री ने कश्मीर के बढ़ते कदमों का जो संदेश दिया है, वह पूरी दुनिया में पहुँचेगा. दुनिया का मीडिया कश्मीर के सकारात्मक पक्ष को भी देखेगा. पिछले साल जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जी-20 की बैठकों के साथ भारत ने कश्मीर की इस दूसरी तस्वीर को दुनिया के सामने रखा था. उसी क्रम में प्रधानमंत्री की यह यात्रा है.

कश्मीर की इस यात्रा के राष्ट्रीय-सुरक्षा से जुड़े पहलू हैं, पर ज्यादा महत्वपूर्ण है सार्वजनिक जीवन. कश्मीर आज उन बंधनों से मुक्त है, जो अगस्त, 2019 के पहले थे. आम नागरिक आज राज्य में खुली साँस ले सकता है. तीन दशक से ज्यादा समय से चल रही हिंसा की लहर काफी हद तक नियंत्रित है. बंद पड़े स्कूल, सिनेमाघर और खेल के मैदान फिर से खुल गए हैं.

इससे पहले प्रधानमंत्री पिछले महीने जम्मू के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का उद्घाटन किया था. 2019 में उसकी आधारशिला भी उन्होंने ही रखी थी. इस दृष्टि से उनकी श्रीनगर का सांकेतिक महत्व है. 2019 में एक नए कश्मीर की बुनियाद रखी गई थी, जिसके सकारात्मक परिणाम दिखाने का आज मौका था.

उन्होंने 'विकसित भारत, विकसित जम्मू-कश्मीर' कार्यक्रम के तहत 6400 करोड़ रुपए से ज्यादा की परियोजनाओं का उद्घाटन किया. 1000 युवाओं को नियुक्ति-पत्र दिए और युवा उद्यमियों से उनकी कामयाबी के किस्से और समस्याएं सुनीं.

मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया

देखना यह भी होगा कि कश्मीर की इस नई सफलता-कथा को दुनिया किन निगाहों से देखती है. खासतौर से मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया क्या है. एक ज़माना था, जब माना जाता था कि पाकिस्तान को मुस्लिम देशों का समर्थन प्राप्त है. बेशक भाईचारा बना रहना चाहिए, पर गलत बातों के लिए नहीं.

सच यह है कि जब भारत ने अगस्त 2019 में कश्मीर से 370 को हटाया, तब सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत दूसरे मुस्लिम देशों ने खामोश रहना उचित समझा. खाड़ी देश चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधरें. ये तभी सुधरेंगे, जब माहौल सकारात्मक और सहयोग का होगा, क़त्लो-ग़ारत की आँधियाँ रुकेंगी.

यूएई की भूमिका

कश्मीर का माहौल सामान्य बनाने में खाड़ी के देश संयुक्त अरब अमीरात की बड़ी भूमिका है. अमीरात ने कई तरीकों से माहौल को सामान्य बनाने में भूमिका अदा की है. माना जाता है कि फरवरी 2021 में जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी रोकने के लिए जो समझौता हुआ था, उसके पीछे यूएई की भूमिका थी.

इस बात की पुष्टि उन्हीं दिनों अमीरात के वॉशिंगटन स्थित राजदूत युसुफ अल ओतैबा ने कही थी. अनुच्छेद 370 की वापसी को यूएई ने भारत का आंतरिक मामला माना था. इतना ही नहीं उन्होंने कश्मीर में पूँजी निवेश बढ़ाया. जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट, इंडस्ट्रियल पार्क, आईटी टावर्स, फूड लॉजिस्टिक्स, मेडिकल कॉलेज और स्पेशियलाइज्ड हॉस्पिटल जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करने में यूएई ने पहल की है.  

ज़ाहिर है कि उन्हें भरोसा है कि कश्मीर में स्थितियाँ सुधरेंगी. और प्रधानमंत्री मोदी के सकारात्मक संदेश को सबसे बड़ा समर्थन वहीं से मिलेगा. भारत और अमीरात के रिश्तों की गहराई को हम प्रधानमंत्री की पिछले महीने की यात्रा में देख सकते हैं. यूएई ही नहीं, क़तर सरकार ने जिस तरह से भारत के आठ नौसैनिक अधिकारियों के मामले में राहत दी, उससे भी यह बात साबित होती है.

बदलती धारणाएं

खाड़ी के देशों में वैचारिक बदलाव भी आ रहा है. वहाँ की सरकारें भविष्य को देखते हुए अपने यहाँ केवल आर्थिक ही नहीं सांस्कृतिक बदलाव भी कर रही हैं. सऊदी अरब ने विज़न-2030 के तहत आधुनिकीकरण का कार्यक्रम तैयार किया है. इन कार्यक्रमों में भारत की भागीदारी भी है.

एक ब्लॉक के रूप में देखें, तो गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. दोनों के बीच 154 अरब डॉलर का व्यापार और 14 अरब डॉलर का सर्विस कारोबार हो रहा, जो लगातार बढ़ रहा है.

भारत और पश्चिम एशिया के बीच कॉरिडोर की जो घोषणा पिछले साल सितंबर में दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी, वह भी रिश्तों की बुनियाद में है. दोनों पक्ष अरब सागर के पश्चिमी इलाके में शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं.

सहयोग का माहौल

केवल खाड़ी देशों तक बात सीमित नहीं है. भारत और अफगानिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आ रहा है. हालांकि वहाँ के तालिबानी शासन को दुनिया ने मान्यता नहीं दी है, पर भारत ने मानवीय-सहायता के साथ शुरुआत की है, और वहाँ अधूरी पड़ी परियोजनाओं पर फिर से काम चालू करने पर बातें चल रही हैं. अफगानिस्तान की दिलचस्पी भी सहयोग बढ़ाने में है.

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि दृढ़ निश्चय के साथ किए गए फैसलों के प्रभाव दूरगामी होते हैं. पिछले साढ़े चार साल में कश्मीर की स्थिति में जबर्दस्त बदलाव आया है. हाल में एक वीडियो देखने को मिला, जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोग कह रहे थे कि भारत ने श्रीनगर तक ट्रेन चला दी, हमारे यहाँ क्या हुआ?

पिछले साल चेन्नई में हुई एक गोष्ठी में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा, विभाजन न हुआ होता तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश होता. यहाँ बात जनसंख्या की नहीं है. आर्थिक-दृष्टि से भी हम चीन से आगे होते, क्योंकि पिछले सात दशकों में हुई लड़ाइयों पर अपनी ऊर्जा नहीं लगाते.

बहरहाल विभाजन वास्तविकता है, उसे स्वीकार करना होगा, पर इस बात को भी स्वीकार कीजिए कि दक्षिण एशिया में सहयोग का माहौल बनाकर हम अपने-अपने देशों की जनता का ही भला करेंगे. देखना होगा कि पाकिस्तान की नई सरकार किस दिशा में कदम बढ़ाने वाली है.

पाकिस्तान पर प्रभाव

मोदी की श्रीनगर-यात्रा का सबसे बड़ा असर किसी भी दूसरे देश से ज्यादा पाकिस्तान पर पड़ेगा. पाकिस्तानी शासकों को अब समझ में आ रहा है कि अवाम को ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का सब्ज़बाग़ दिखाने से न उन्हें कुछ मिला और न मुल्क का भला हुआ.

5 अगस्त 2019 को जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया, वहाँ के सत्ताधारियों को फौरन समझ में नहीं आया कि क्या करें और क्या कहें. पर उसके डेढ़ साल बाद फरवरी, 2021 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा कि अनुच्छेद 370 भारत का अपना मामला है. उसे लेकर हमें कठोर रेखा नहीं खींचनी चाहिए.  

पाकिस्तान की राजनीति, सेना और मीडिया हर जगह भारत को ‘दुश्मन हमसाया’ कहा जाता है. अपनी जनता को इस हद तक भड़काने के बाद वे भारत से बात नहीं कर सकते. राजनीति और सेना में कोई भी खुलेआम भारत के साथ दोस्ती की बात कहने की सामर्थ्य नहीं रखता है.

आर्थिक-समस्या

उस वक्त जब भारत में अनुच्छेद 370 को लेकर कुछ लोग संशय में थे, जनरल बाजवा ने पाकिस्तानी एयरफोर्स एकेडमी में कहा कि यह वक्त है कि हमें हरेक दिशा में शांति के प्रयास करने चाहिए. उन्हें यह बात समझ में आ रही थी कि पाकिस्तान की समस्या आर्थिक है, जिसका समाधान भारत-पाकिस्तान के बेहतर रिश्तों के साथ जुड़ा है.

वह वही वक्त था जब नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद करने का समझौता हुआ. इतना ही नहीं जनरल बाजवा ने कहा कि अब अतीत को भुला कर आगे बढ़ने का समय आ गया है. हमें कश्मीर के मसले को पीछे रखकर भारत से बात करनी चाहिए.

इसके कुछ समय बाद ही मार्च, 2021 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के दो दिन के इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग का उद्घाटन करते हुए कहा कि हम भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.

बैकरूम बातचीत

भारत और पाकिस्तान के बीच एक अरसे से बैकरूम बातचीत चलती रहती है. पिछले साल दो पाकिस्तानी पत्रकारों हामिद मीर और जावेद चौधरी ने खबरें दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल 2021 में हिंगलाज माता के मंदिर की यात्रा पर जाने को तैयार हो गए थे. इसके बाद उनकी इमरान खान से मुलाकात होती और कश्मीर में यथास्थिति को बनाए रखने की कोई घोषणा होती. इस सिलसिले में जानकारी देने वाले सूत्रों का कहना है कि बीस

साल तक के लिए कश्मीर को पीछे कर दिया जाता.बहरहाल उस वक्त इमरान खान ने हाथ खींच लिया और यह यात्रा नहीं हो पाई. इन दोनों पत्रकारों की बात कितनी सही या गलत थी, इसपर टिप्पणी करने के बजाय केवल इस बात पर गौर करें कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की कोशिशें बार-बार हुई हैं, कोशिशें हुईं, पर उनका अंत नाटकीय हुआ.

बहरहाल कश्मीर के बदलती कहानी को पाकिस्तान सकारात्मक निगाहों से देखने लगे, तो उससे बड़ी सफलता कोई नहीं हो सकती.

 ( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )


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