सलीम समद
पिछले सप्ताह तीन महत्वपूर्ण घटनाएं सामने आई हैं, जिन्होंने एक बार फिर रोहिंग्या शरणार्थी संकट को वैश्विक ध्यान का केंद्र बना दिया है. इस संकट के दुष्परिणामों का सामना कर रहे लाखों शरणार्थियों की स्थिति पर हाल के घटनाक्रमों ने गंभीर चिंताएं उठाई हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव की बांग्लादेश यात्रा
पहली घटना में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में स्थित रोहिंग्या शिविरों का दौरा किया. बांग्लादेश में एक लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं, जो म्यांमार में हिंसा से भागकर यहां पहुंचे थे.
गुटेरेस ने इन शिविरों का दौरा करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस संकट से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए और रोहिंग्याओं के लिए अधिक समर्थन की तत्काल आवश्यकता है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने "ग्राउंड ज़ीरो" के रूप में कॉक्स बाजार का दौरा किया और चेतावनी दी कि शरणार्थी शिविरों में सहायता में कटौती से मानवीय आपदा का खतरा बढ़ सकता है.
महासचिव ने इफ़्तार कार्यक्रम में रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ समय बिताया, हालांकि यह उल्लेखनीय था कि शरणार्थियों के समान मेनू पर नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि रोहिंग्याओं की म्यांमार में सुरक्षित और स्थिर वापसी के प्रयासों को तेज करना बेहद जरूरी है, हालांकि वह यह नहीं बता सके कि ये प्रयास कब तक सफल होंगे.
बांग्लादेश का सामना और म्यांमार की नकारात्मक प्रतिक्रिया
दूसरी महत्वपूर्ण घटना म्यांमार की सरकार का कठोर रवैया था, जिसे वैश्विक मंचों पर आलोचना का सामना करना पड़ा। म्यांमार की सेना ने 2017 में लाखों रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार किए, जिनमें नरसंहार, बलात्कार और हत्या की घटनाएं शामिल थीं.
इसके बाद, बांग्लादेश में पलायन की एक बड़ी लहर देखी गई. म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं को नागरिकता से वंचित कर दिया और उन्हें "बंगाली मुसलमान" के रूप में पहचानने से इनकार किया.
फिलहाल, म्यांमार की सेना और विद्रोही समूह, अराकान आर्मी (AA), के बीच संघर्ष जारी है. हाल ही में, AA ने एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें बांग्लादेश से बातचीत करने की इच्छा जताई, लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी पर कोई बातचीत न करने की शर्त रखी.
यह स्थिति बांग्लादेश के लिए जटिल हो गई है, क्योंकि उसने म्यांमार के सैन्य जुंटा को बातचीत करने के लिए वैध प्राधिकृत पार्टी के रूप में मान्यता नहीं दी है.
वित्तीय संकट और मानवीय स्थिति की और गिरावट
तीसरी महत्वपूर्ण घटना संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा उठाई गई चेतावनी थी कि बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए खाद्य सहायता पर गंभीर संकट आ सकता है. WFP ने बताया कि धन की कमी के कारण, अगले महीने से राशन में आधी कटौती की जा सकती है, जिससे शरणार्थियों के जीवन पर भारी असर पड़ सकता है.
इस संकट के दौरान, रोहिंग्याओं के लिए खाद्य राशन $6 प्रति व्यक्ति प्रति माह तक घटने का अनुमान है, जो कि उनके लिए एक गंभीर चुनौती होगी, खासकर रमजान के महीने में.
इसके अलावा, इस संकट के कारण सुरक्षा की स्थिति भी बिगड़ सकती है. महिलाओं और बच्चों के लिए शोषण, तस्करी और हिंसा के मामले बढ़ सकते हैं, जबकि बच्चों की शिक्षा और श्रम की स्थिति भी गंभीर हो सकती है.
रोहिंग्या उग्रवादी समूहों की गतिविधियां
बांग्लादेश के लिए एक और गंभीर चिंता का विषय रोहिंग्या उग्रवादी समूहों की गतिविधियां हैं. हाल ही में, फोर्टीफाई राइट्स नामक मानवाधिकार संगठन ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में सक्रिय उग्रवादी समूहों के खिलाफ जांच की सिफारिश की गई थी.
इन समूहों में सबसे प्रमुख संगठन अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ARSA) है, जो म्यांमार सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है.हाल ही में, बांग्लादेश सुरक्षा बलों ने ARSA के प्रमुख अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी को गिरफ्तार किया.
यह गिरफ्तारी एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि ARSA के हमले म्यांमार में 2017 में हुए नरसंहार को उत्प्रेरित करने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. फोर्टीफाई राइट्स ने इस गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश से अपील की कि वह इन उग्रवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करें और युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाए.
निराशाजनक भविष्य और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी
रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति अब भी बेहद दयनीय है. बांग्लादेश सरकार ने शरणार्थियों के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस संकट को उठाया है, लेकिन कई देशों से सीमित या कोई मदद नहीं मिली है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अब यह समझने की जरूरत है कि यह संकट केवल बांग्लादेश या म्यांमार का नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का संकट है.
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को चाहिए कि वे इस संकट पर तत्काल प्रतिक्रिया दें, ताकि लाखों शरणार्थियों को मानवीय सहायता मिल सके और उन्हें एक सुरक्षित और स्थिर भविष्य की उम्मीद मिले.
(सलीम समद बांग्लादेश में स्थित एक पुरस्कार विजेता स्वतंत्र पत्रकार हैं)