डॉ. सुल्तान महमूद राणा
स्वस्थ समाज और अच्छा सामाजिक दृष्टिकोण हमारे मस्तिष्क की तरह हैं. इसलिए इसे बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है.' समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनकी सामाजिकता, सभ्यता और सभ्य सिद्धांतों को स्वीकार करने के लिए बाध्य होगा - यह स्वाभाविक है. देश की संस्कृति, परंपराएं और गुण समाज संस्करण के विकास से पहले देश की सभ्यता का भार वहन करते हैं.
सामाजिक पतन के अनेक उदाहरण हैं. अब हम सकारात्मक के बजाय नकारात्मक दृष्टिकोण का पोषण और अभ्यास करते हैं. दुनिया के सभी क्षेत्रों में लोग अब कई चीजों को लेकर नकारात्मक मानसिकता से भरे हुए हैं. विकसित देश अपने बच्चों को उस नकारात्मकता से बाहर निकालने के लिए विभिन्न प्रकार की नैतिक शिक्षा पर जोर दे रहे हैं.
हम आशा करते हैं कि समाज की सारी नकारात्मकता दूर होगी और एक स्वप्निल संसार का निर्माण होगा. दुनिया भर में बाल शिक्षा के विभिन्न तरीके पाए जाते हैं जो प्रत्येक देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संदर्भ के आधार पर विकसित किए जाते हैं. लेकिन सभी देशों का एक ही लक्ष्य है - बच्चों का समग्र विकास सुनिश्चित करना और उन्हें उनके भावी जीवन के लिए तैयार करना.
विश्व के विकसित देशों में बाल शिक्षा के क्षेत्र में विविध दृष्टिकोण अपनाए जा रहे हैं, जो उनके विद्यार्थियों का मानसिक विकास कर रहे हैं और उन्हें भावी जीवन के लिए तैयार कर रहे हैं. फ़िनलैंड, जापान और स्वीडन जैसे देश शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत उदाहरण बनकर सामने आये हैं.
फ़िनलैंड की शिक्षा प्रणाली को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक माना जाता है. क्योंकि यहां बच्चों की नैतिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता है. यहां बच्चों को स्वतंत्र रूप से सोचने और रचनात्मक बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. वहां की शिक्षा प्रणाली बच्चे पर परीक्षा का दबाव कम करती है और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर पढ़ाती है. फिनिश शिक्षा प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता यह है कि बच्चे कक्षा के बाहर प्रकृति के करीब रहकर सीख सकते हैं.
जापान की शिक्षा प्रणाली में बच्चों को मुख्य रूप से शिष्टाचार, सामाजिक जिम्मेदारी और सम्मान सिखाया जाता है. 1990के दशक में, जापान की शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा पर जोर न देने के कारण छात्रों में सामाजिक अलगाव और आत्महत्या की दर बढ़ गई. नैतिक मूल्यों की कमी से पारिवारिक रिश्ते कमजोर होते हैं और छात्रों का तनाव बढ़ता है. बाद में नैतिक शिक्षा को पुनः शुरू करने की पहल की गई, जो आज भी प्रभावी है.
कक्षा में शिक्षकों का अभिवादन करने के लिए, छात्र कक्षा की शुरुआत और अंत में झुकते हैं और विनम्रता से 'ओहियो गोज़ाइमास' (सुप्रभात) या 'अरिगाटो गोज़ाइमास' (धन्यवाद) कहते हैं. यहां मुख्य रूप से बड़ों का सम्मान और विनम्रता की शिक्षा दी जाती है. जापानी स्कूलों में, छात्र कक्षाओं के बाद कक्षाओं और स्कूल के मैदानों की सफाई स्वयं करते हैं. जापानी स्कूलों में टीम वर्क और सहयोग का अभ्यास. मल्टीमीडिया या पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चों की वास्तविक जीवन स्थितियों पर चर्चा की जाती है.
यदि कोई सहपाठी अनुपस्थित है, तो कोई अन्य व्यक्ति उसके नोट्स या कार्य उठाता है और वितरित करता है. यह मित्रता, सहानुभूति और जिम्मेदारी सिखाता है. यदि कोई बच्चा गलती करता है तो उसे सीधे माफी मांगना सिखाया जाता है और अपनी गलती स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
जापान में नैतिक शिक्षा सिद्धांत के माध्यम से नहीं, बल्कि व्यावहारिक कार्रवाई के माध्यम से सिखाई जाती है. स्वच्छता, अनुशासन, सम्मान और जिम्मेदारी की शिक्षा देने से बच्चों के व्यक्तित्व और सामाजिक व्यवहार का विकास होता है. यह उन्हें जीवन के हर चरण में व्यावहारिक और नैतिक निर्णय लेने में मदद करता है.
स्वीडन एक विकसित देश है जहां बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता और मानसिक विकास को विशेष महत्व दिया जाता है. नैतिक शिक्षा बच्चों को सही और गलत के बीच अंतर करना सिखाती है, उनमें नैतिक मूल्यों और समाज के प्रति जिम्मेदारी पैदा करती है. वहां, बच्चे स्कूल में कक्षा की समस्याओं को हल करने के लिए एक साथ चर्चा करते हैं और निर्णय लेते हैं.
जैसे कि कैसे हर कोई एक साथ खेल खेलते हुए अधिक आनंद ले सकता है. बच्चों को राय व्यक्त करने का अधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है. पर्यावरण जागरूकता और सतत विकास का महत्व पर्यावरणीय जिम्मेदारी स्कूल की गतिविधियों में, बच्चे प्लास्टिक के उपयोग को कम करना, पुनर्नवीनीकरण सामग्री और अपशिष्ट पृथक्करण के साथ परियोजनाएं बनाना सीखते हैं.
बच्चों को स्कूल परियोजनाओं पर समूहों में काम करने की अनुमति दी जाती है, जहाँ जिम्मेदारियाँ साझा की जाती हैं. खेल के मैदान में फ्रेंडशिप बेंच का उपयोग किया जाता है, जहां बच्चा अकेलापन महसूस होने पर बैठता है. अन्य बच्चे वहां जाते हैं और उससे मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हैं.
स्कूल के भोजन के बाद, बच्चों को अपनी ट्रे साफ़ करने और कक्षा को साफ़ करने की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहा जाता है. कक्षा में विभिन्न संस्कृतियों पर चर्चा की जाती है और विभिन्न त्योहारों का परिचय दिया जाता है. शिक्षक बच्चों को समस्या-समाधान की रणनीतियाँ सिखाते हैं, जैसे दूसरों की बात ध्यान से सुनना और शांति से अपनी स्थिति समझाना.
रूस में सोवियत काल के पतन के बाद नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा को कम महत्व दिया गया. उस समय पर्यावरण की स्थिति नकारात्मक हो गयी. लेकिन आजकल रूस में बच्चों को नैतिक शिक्षा बहुत गंभीरता से दी जाती है और इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है. यह शिक्षा उनमें सामाजिक व्यवहार, देशभक्ति, सम्मान की भावना और नैतिक जिम्मेदारी विकसित करने में मदद करती है.
रूस में नैतिक शिक्षा आधिकारिक तौर पर प्राथमिक विद्यालय (6-7वर्ष) में शुरू होती है. हालाँकि, इसकी मूल अवधारणाएँ पारिवारिक वातावरण और प्रारंभिक बचपन शिक्षा केंद्रों में सिखाई जाती हैं. जब से बच्चे किंडरगार्टन में प्रवेश करते हैं, तब से उनका ध्यान सामाजिक और नैतिक व्यवहार पर केंद्रित होता है. इसके परिणामस्वरूप युवा पीढ़ी में मूल्यों की कमी होती है और समाज में भ्रष्टाचार और अपराध में वृद्धि होती है.
सिंगापुर एक बहु-जातीय देश है, जहां सामाजिक एकता और सहिष्णुता का अभ्यास आवश्यक है और बच्चों को चरित्र और नागरिकता शिक्षा (सीसीई) नामक एक विशिष्ट विषय पढ़ाया जाता है. स्कूल में प्रत्येक बच्चे को समान महत्व दिया जाता है और जाति, लिंग, धर्म या पृष्ठभूमि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है. बच्चे कम उम्र से ही पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार सीखते हैं. अपशिष्ट पुनर्चक्रण के लिए स्कूल की गतिविधियों में भागीदारी, वहां दैनिक कार्य. इसके अलावा, बच्चों की पर्यावरण जागरूकता और सतत विकास प्रथाओं पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है.
यदि हमें अपनी नकारात्मकता से मुक्त होना है तो हमें बच्चों की नैतिक शिक्षा को महत्व देना होगा. नैतिक विकास में कई विषयों का सुधार बहुत जरूरी है. नैतिक मूल्य किसी भी व्यक्ति को अपने और दूसरों के प्रति जवाबदेह बनाते हैं. कटु सत्य तो यह है कि हम जानते हुए भी अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं.
बूढ़े माता-पिता आजकल बच्चों के लिए बोझ बनते जा रहे हैं. रिश्तेदारों से कोई रिश्ता नहीं रहता. कोई आपसी ईमानदारी नहीं है, दिल. आपका ख्याल नहीं रख रहा. ऐसी विकट परिस्थितियों में सामाजिक उत्तरदायित्व का स्थान आज अत्यंत डांवाडोल है. लोग अब भविष्य की ख़ुशी की आशा में अपनी जड़ों को नकारने से नहीं हिचकिचाते. असीमित गिरावट को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए, अन्यथा लोगों द्वारा अर्जित ज्ञान और शिक्षा का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा.
वर्तमान में बांग्लादेश में ऐसी कोई संस्था नहीं है जहां अनैतिक गतिविधियां शून्य कोटा पर आ गई हों. हाल ही में हम देश के लगभग हर संस्थान में विभिन्न प्रकार के अन्याय और असामाजिक गतिविधियों का कोई न कोई उदाहरण देख रहे हैं. जिनमें से कुछ पहले ही गंभीर स्तर पर पहुंच चुके हैं.
आमतौर पर यह माना जाता है कि शिक्षक रोल मॉडल होंगे, उनका व्यवहार दूसरों के लिए अनुकरणीय होगा. शिक्षकों से विद्यार्थी ही नहीं समाज भी बहुत कुछ सीखता है. लेकिन हमारा नैतिक और सामाजिक पतन इस स्तर तक पहुंच गया है कि अब शिक्षक भी तरह-तरह के अनैतिक कार्यों में लिप्त हो रहे हैं. कई शिक्षक अब आदर्श आदर्श नहीं बन पा रहे हैं.
मैंने अक्सर सुना है कि स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के कुछ शिक्षक विद्यार्थियों को विभिन्न प्रलोभन देकर उनके साथ अनैतिक संबंध बना लेते हैं. छात्र भी अक्सर असहाय होते हैं और ऐसे अनैतिक कृत्यों का विरोध नहीं कर पाते. इनमें से कुछ हमारे सामने तब आते हैं जब स्थिति चरम सीमा पर पहुंच जाती है. लेकिन यह तय है कि ज्यादातर अनैतिक गतिविधियों की जानकारी हमें नहीं हो पाती. बेशक, कुछ मामलों में इन घटनाओं की स्पष्ट सच्चाई का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन इन्हें ठीक से रोक पाना संभव नहीं है.
हमें यह याद रखना होगा कि किसी देश का बुनियादी ढांचा विकास ही एकमात्र विकास नहीं है. सामाजिक मूल्यों और नैतिकता का निर्माण और विकास करके सभी स्तरों और सभी प्रकार के दुष्कर्मों को रोकना संभव है. सरकार की ओर से इस तरह की मूल्य अभ्यास पहल संस्थागत रूप से टिकाऊ प्रक्रिया में सामाजिक गिरावट को रोक सकती है. अब समय आ गया है कि सामाजिक जागरूकता पैदा करने के लिए न केवल जनसंचार माध्यमों का उपयोग किया जाए, बल्कि इस संबंध में विशिष्ट पहल भी की जाए.
मेरा मानना है कि देश को सामाजिक पतन से बचाने के लिए राज्य को ढांचागत विकास के स्तर को टिकाऊ बनाने और युवाओं की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए. यह भी राज्य की जिम्मेदारियों में से एक है. सिर्फ भाषण ही नहीं, इस संबंध में बेहद सतर्क भूमिका निभाने की पहल की जा सकती है.
(डॉ. सुल्तान महमूद राणा. प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान)