बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा: मोहम्मद यूनुस सरकार की निष्क्रियता का नतीजा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 11-12-2024
The plight of Hindus in Bangladesh: Mohammad Yunus is the result of government inaction
The plight of Hindus in Bangladesh: Mohammad Yunus is the result of government inaction

 

अब्दुल्लाह मंसूर

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों की हालिया घटनाओं ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों के लिए वाकई कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचा है ?अगस्त 2024में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों में तेजी आई है.हाल में बांग्लादेश के इस्कॉन संगठन के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और उनके वकील पर हमले ने देश में बढ़ते धार्मिक असहिष्णुता के माहौल को उजागर किया.

इन घटनाओं के बीच यह सवाल उठता है कि बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए क्या कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं या यह समुदाय केवल एक राजनीतिक खेल का शिकार बनकर रह जाएगा ?

1947 में भारत विभाजन के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 28%थी.आज यह घटकर 7.95%रह गई है.इतने बड़े पैमाने पर आबादी में गिरावट का सीधा कारण धार्मिक उत्पीड़न, हिंसा, आर्थिक शोषण और राजनीतिक भेदभाव है.

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1971में जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से आजादी हासिल की, तब पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों ने हिंदुओं को अलगाववादी मानकर अत्याचार किए.इन घटनाओं में हत्याएं, बलात्कार और संपत्तियों की लूटपाट शामिल थीं.

आजादी के बाद भी हिंदुओं के हालात में सुधार नहीं हुआ.2001से 2006के बीच बीएनपी-जमात गठबंधन की सरकार के दौरान हिंदुओं पर हमले चरम पर थे.इन हमलों के कारण हजारों हिंदू भारत पलायन करने को मजबूर हुए.

हाल की घटनाओं ने बांग्लादेश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया है.मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के गठन के बाद से कट्टरपंथी गुटों की गतिविधियां बढ़ी हैं.

यूनुस, जो अपने माइक्रोक्रेडिट मॉडल और सामाजिक उद्यमिता के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता रहे हैं, अब राजनीतिक विवादों के केंद्र में हैं.उनकी सरकार पर आरोप है कि उनके अधिकांश प्रशासनिक अधिकारी जमात-ए-इस्लामी और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के समर्थक हैं.यह वही संगठन हैं जो बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को समाप्त कर इस्लामिक राज्य बनाने की कोशिश में लगे हैं।

कट्टरपंथी गुटों का प्रशासन और न्यायपालिका में बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है.यूनुस सरकार के कार्यकाल में जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया है.विश्वविद्यालयों में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार तेज हो गया है.

हिंदू समुदाय, जो पहले से ही असुरक्षित महसूस कर रहा था, अब और अधिक निशाने पर है.मंदिरों पर हमले, हिंदू महिलाओं का अपहरण और जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाएं आम हो गई हैं.यूनुस सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं.आलोचक यह भी मानते हैं कि सरकार की निष्क्रियता ने कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दिया है.

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बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझना जरूरी है.1947के बाद से हिंदुओं के साथ भेदभाव और उत्पीड़न की लंबी परंपरा रही है.1964से 2013के बीच लगभग 11मिलियन हिंदुओं ने बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण ली.

यह आंकड़ा बताता है कि कैसे धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव ने एक पूरे समुदाय को अपनी मातृभूमि छोड़ने पर मजबूर कर दिया.ग्रामीण इलाकों में हिंदुओं की जमीन हड़पने की घटनाएं आम हैं.यह आर्थिक शोषण उनके सामूहिक पलायन का एक बड़ा कारण रहा है.

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है.भारत के लिए यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव उसकी सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकता है.

भारत सरकार ने बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.इसके साथ ही, अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भी बांग्लादेश सरकार से धार्मिक सहिष्णुता बनाए रखने की अपील की है.एमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की निंदा की है.

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मोहम्मद यूनुस सरकार ने हिंदुओं की सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए हैं.मंदिरों और हिंदू बहुल इलाकों में सुरक्षा बढ़ाई गई है.कुछ मामलों में दोषियों पर कानूनी कार्रवाई भी हुई है.लेकिन इन प्रयासों को नाकाफी माना जा रहा है.प्रशासनिक निष्क्रियता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इन प्रयासों को कमजोर कर रही है.

बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है.कानूनी सुधार के तहत अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए.हिंदुओं को राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाना चाहिए.

आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए.शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करते हुए धार्मिक सहिष्णुता और बहुलवाद को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.मीडिया को भी सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए.

भारत को भी इस दिशा में अपनी भूमिका निभानी होगी.बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करते हुए भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा प्राथमिकता में रहे.अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत को बांग्लादेश के हिंदुओं की समस्याओं को जोर-शोर से उठाना होगा.

भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों पर कट्टरपंथी गुटों की बढ़ती गतिविधियों का गहरा प्रभाव पड़ रहा है.शेख हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के संबंध मजबूत हुए थे, लेकिन उनकी सत्ता से बेदखली के बाद हालात बिगड़ गए हैं.

जमात-ए-इस्लामी जैसे गुटों ने अंतरिम सरकार के माध्यम से भारत विरोधी भावनाओं को हवा दी है.यह स्थिति न केवल बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए, बल्कि भारत की सुरक्षा और कूटनीति के लिए भी खतरा है.यूनुस सरकार का रवैया भारत के साथ संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है.

शेख हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छे संबंध थे, लेकिन अब इस स्थिति में बदलाव आ गया है.यूनुस सरकार ने भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के बजाय, भारत विरोधी गतिविधियों को नज़रअंदाज़ किया है। कट्टरपंथी गुटों के प्रभाव में यह सरकार भारत को एक शत्रु के रूप में प्रस्तुत कर रही है.

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बांग्लादेश में मौजूदा स्थिति इस बात का संकेत है कि देश एक गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट में फंसा हुआ है.यूनुस सरकार की निष्क्रियता और कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव न केवल अल्पसंख्यकों को असुरक्षित बना रहा है, बल्कि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लिए भी खतरा है.भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए संतुलित और दूरदर्शी नीति अपनानी होगी ताकि दोनों देशों के बीच स्थिरता और सहयोग बना रहे.

बांग्लादेश की सरकार और समाज को यह समझना होगा कि धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव न केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह पूरे देश की प्रगति और स्थिरता के लिए भी खतरा है.धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने के लिए एक दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है.

यह जरूरी है कि बांग्लादेश के हिंदू समुदाय को उनकी सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों की गारंटी दी जाए.इसके साथ ही, सभी धार्मिक और सामाजिक समूहों के बीच सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.बांग्लादेश को एक ऐसे देश के रूप में विकसित होना चाहिए जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग समान अधिकारों और अवसरों के साथ शांति और समृद्धि में जीवन व्यतीत कर सकें.

( लेखक यूट्यूबर हैं.यह इनके विचार हैं )