हरजिंदर
कहा जाता है कि बुरी खबरें हमेशा अच्छी खबरों को ओझल कर देती हैं. और यह दुनिया भर में होता है. कोई ऐसा महीना नहीं गुजरता जब अमेरिका से इस्लाम फोबिया की खबरें नहीं आतीं. बेशक तथ्य के रूप में ये खबरें अक्सर सही होती हैं लेकिन हम इसे ही अमेरिकी समाज का पूरा सच मान लेते हैं. जबकि इस चक्कर में हम अमेरिकी समाज के कईं बदलावों को नजरंदाज कर देते हैं.
अमेरिका में मुसलमानों की आबादी तकरीबन 35 लाख है. दुनिया के लगभग हर देश के मुस्लिम इस देश में बसे हुए हैं. इसका यह भी अर्थ है कि दुनिया के किसी खास क्षेत्र या संस्कृति के मुस्लिम वहां कहीं भी बहुमत नहीं बनाते हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि वे सभी अमेरिका की लोकतांत्रिक राजनीति में भी पूरी तरह से सक्रिय हैं. कांग्रेस और सीनेट में जगह बनाने के अलावा कईं जगह उन्होंने स्थानीय चुनाव जीते हैं और वे मेयर भी रहे हैं. उन सबने अमेरिकी समाज की डायवर्सिटी को राजनीतिक स्तर पर मजबूत किया है.
लेकिन 2019 के अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव से इस सिलसिले में जो मोड़ आया है वह पूरी अमेरिकी राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस साल पहली बार ऐसा हुआ कि दो मुस्लिम महिलाएं अमेरिकी कांग्रेस का चुनाव जीतने में कामयाब रहीं.
एक थीं मिशीगन से चुनाव जीतने वाली रशीदा हरबी तालिब और दूसरी थीं मिनेसोटा से चुनाव जीतने वाली इलहान ओमार. रशीदा फिलस्तीनी मूल की हैं और इलहान सोमालियाई मूल की हैं. दोनों उसके बाद से न सिर्फ अमेरिकी कांग्रेस में उन इलाकों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं जो मुस्लिम बहुल नहीं हैं बल्कि मुस्लिम समुदाय और उसमें महिलाओं के बारे में बहुत से मिथक भी तोड़ रही हैं.
इस समय जब अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव चल रहा है तो भारतीय मूल की कमला हैरिस दुनिया के इस सबसे महत्वपूर्ण चुनाव की सबसे प्रमुख दावेदार हैं. ठीक इसी समय यहां स्थानीय निकाय के चुनाव भी होने हैं और भारतीय मूल की एक मुस्लिम महिला उम्मीदवार रेशमा खान काफी चर्चा में हैं.
वे न्यू जर्सी के टीनेक से चुनाव लड़ रही हैं। भारत से एमबीए की डिग्री लेने वाली रेशम इस सदी की शुरुआत में अमेरिका आ गईं थीं और बाद में वे समाज सेवा के काम से भी जुड़ गईं. रेशमा फाॅर टीनेक नाम से उन्होंने अपना जो चुनाव अभियान चलाया है वह काफी चर्चा में है और आप उसका असर पूरे सोशल मीडिया पर भी देख सकते हैं. रेशमा जब अमेरिका में आईं तो उसके कुछ समय बाद ही वहां 11 सितंबर का आतंकवादी हमला हुआ.
यह वह तारीख है जिसके बाद अमेरिका में ही नहीं पश्चिम के बहुत से हिस्सों में इस्लाम फोबिया ने नया जोर पकड़ा. इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने हिजाब पहनना शुरू कर दिया, जबकि इसके पहले तक वे हिजाब से दूर रहती थीं. उनका कहना है कि यह काम उन्होंने इसलिए किया कि ताकि लोगों को यह संदेश दिया जा सके कि मुसलमान भी शांतिप्रिय होते हैं.
रेशमा अकेली नहीं हैं इसी टीनेक से ही नादिया हुसैन भी चुनाव लड़ रही हैं. वे ट्रिनीडाड से आकर अमेरिका में बसी हैं.
रशीदा तालिब, इलहान ओमार, रेशमा खान और नादिया हुसैन ये ऐसे नाम हैं जो न सिर्फ अमेरिकी समाज को बदल रहे हैं बल्कि बाकी दुनिया का मुस्लिम जगत चाहे तो वह भी इनसे काफी कुछ सीख सकता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)