केंद्रीय गृह मंत्री के साथ मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल की पहली आधिकारिक बैठक का मतलब

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-04-2023
केंद्रीय गृह मंत्री के साथ मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल की पहली आधिकारिक बैठक...
केंद्रीय गृह मंत्री के साथ मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल की पहली आधिकारिक बैठक...

 

प्रो. अख़्तरुल वासे
 
4 अप्रैल को जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के नेतृत्व में 16 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की. आमतौर पर इस बैठक का मुसलमानों ने स्वागत किया, लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों ने इस बैठक को तिरस्कार से भी देखा और बैठक के संबंध में जो ख़बर दी गई उसमें  नियाज़ फ़ारूक़ी के एक सच्चे बयान को हवाला बनाकर आलोचनाएँ शुरू हो गईं.

नियाज़ फ़ारूक़ी ने पूरी ईमानदारी से कहा, जो सच भी था, कि गृहमंत्री इस बैठक वैसे बिल्कुल नज़र नहीं आए जैसी उनकी छवि अमूमन बनाई जाती है. फिर क्या हुआ कि कुछ लोगों ने उन्हें मौलाना महमूद मदनी और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को अमित शाह का मुरीद (भक्त) घोषित कर दिया.
 
जबकि सच्चाई यह है कि डेढ़ घंटे से अधिक समय तक चली इस बैठक में गृहमंत्री ने मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल से बेहद शालीनता और निष्ठा के साथ खुलकर बात की और उसी तरह प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों की बातों को भी उन्होंने बेहद धैर्य के साथ सुना.
 
अब यदि केंद्रीय गृहमंत्री इस बैठक में शिष्टता, शालीनता और धैर्य से काम लेते दिखें तो प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का बाहर जाकर दुनिया को यह बताने की कोशिश करना कि उन्होंने हमारी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, कैसे उचित होगा. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था. वास्तव में हमारे यहाँ कुछ लोग ज़ख़्मों की तिजारत के इतने आदी हैं कि वह किसी भी सच्चाई को आसानी से स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिखते.
 
हम पहले भी कई बार अपने लेखों में लिखते रहे हैं कि मुसलमानों और सरकार के बीच बातचीत के दरवाज़े बंद न रहें. हमें और सरकार दोनों को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता के बहुमत से चुनी गई सरकार किसी एक संप्रदाय या पार्टी की नहीं बल्कि सभी की होती है और हमें यह कहने का पूरा अधिकार है कि हम राजनीतिक दल से असहमत हो सकते हैं लेकिन यह यह नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक लाभ के लिए सरकार की ओर ही देखना पड़ता है.
 
सरकार और किसी एक सामाजिक समूह के बीच की यह दूरी तब और गंभीर हो जाती है जब बातचीत के सभी दरवाज़े बंद कर दिए गए हों और यदि सरकार समाज में हिंसा, दुर्व्यवहार और अन्याय पर मौन रहती है तो इससे और अधिक जटिलताएँ पैदा हो जाती हैं.
 
इसलिए सरकार और सभी धार्मिक और भाषाई समूहों के बीच बातचीत ही एकमात्र तरीक़ा है जिससे आप अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, अपने कष्टों का इलाज ढूंढ सकते हैं और अपनी और सरकार की कमियों को ठीक कर सकते हैं.
 
राम नवमी के आस-पास देश में उभरे साम्प्रदायिक हिंसा के दुखद दृश्य, जिस तरह से देश में धार्मिक उन्माद, धमकी और एक-दूसरे पर हमले देखने को मिले, बल्कि नियमित रूप से देखने को मिल रहे हैं, उससे दुखी और चिंतित होना चाहिए.
 
इसलिए इन हालातों में भी पूरी तरह से चुप बैठना और सिर्फ़ अख़बारों में विरोध को छपवा लेना ही काफ़ी नहीं था, बल्कि हालात की मांग थी कि सरकार से खुलकर बात की जाए और ख़ुदा भला करे मौलाना सैयद महमूद असद मदनी का क्योंकि उन्हीं के प्रयासों से ही केंद्रीय गृहमंत्री के साथ मुसलमानों की यह मुलाक़ात संभव हो सकी.
 
इसमें बहुत ही कम समय पर, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, यूपी, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश के प्रतिनिधि शामिल हुए और इसमें अखिल भारतीय जमीयत अहले हदीस के अमीर (अध्यक्ष) मौलाना असग़र अली इमाम मेहदी सलफ़ी, प्रसिद्ध शिक्षाविद् जनाब पी. ए. इनामदार, अंजुमन-ए-इस्लाम महाराष्ट्र के अध्यक्ष डॉ. ज़हीर क़ाज़ी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना मुहम्मद सलमान बिजनौरी साहब, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रमुख सदस्य जनाब कमाल फ़ारूक़ी, मौलाना शब्बीर नदवी साहब, अध्यक्ष , नासेह एजुकेशनल ट्रस्ट बेंगलुरु, जमीयत उलेमा कर्नाटक के अध्यक्ष मुफ़्ती इफ़्तिख़ार अहमद, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र के अध्यक्ष मौलाना नदीम सिद्दीक़ी, जमीयत उलेमा हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष मौलाना अली हसन मज़ाहिरी, मौलाना मुहम्मद इब्राहिम साहिब, अध्यक्ष, जमीयत उलेमा केरल, जमीयत उलेमा तमिलनाडु के महासचिव हाजी हसन अहमद साहिब, प्रो. अख़्तरुल वासे, मौलाना नियाज़ अहमद फ़ारूक़ी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की मजलिस के सदस्य भी शामिल थे.
 
मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में इस प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृहमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि “आज हमारे देश में इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा और उकसाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.
 
देश के आर्थिक और वाणिज्यिक नुक़सान के अलावा देश की बदनामी भी हो रही है. इसलिए, हम भारत सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते हैं कि ऐसी कार्रवाइयों को तुरंत रोका जाए जो लोकतंत्र, न्याय और समानता की मांगों के ख़िलाफ़ हैं और इस्लाम विरोधी हैं.
 
नफ़रत फैलाने वाले तत्वों और मीडिया के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए. विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के आलोक में लापरवाह एजेंसियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए और उपद्रवियों को न्याय के कठघरे में लाया जाना चाहिए.
 
सरकार को इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हर संभव उपाय करना चाहिए. इसके अलावा समान नागरिक संहिता को लेकर प्रतिनिधिमंडल ने गृहमंत्री से कहा कि समान नागरिक संहिता केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है और हमारी विविधता को नज़रअंदाज़ करके जो भी क़ानून बनेगा उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा.
 
प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृहमंत्री को यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ को ख़त्म करने का प्रयास लोकतंत्र की भावना और भारत के संविधान में दी गई गारंटी के ख़िलाफ़ है.जब इस देश का संविधान बन रहा था तब संविधान सभा ने गारंटी दी थी कि मुसलमानों के धार्मिक मामलों, ख़ासकर उनके निजी क़ानूनों से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी.
 
इसी तरह मदरसों की आज़ादी और स्वायत्तता को संविधान के मुताबिक़ मुसलमानों का मूल अधिकार बताते हुए प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृहमंत्री से दो टूक शब्दों में कहा कि हम इस पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं.
 
मदरसों का अस्तित्व देश की संस्कृति के लिए गर्व की बात है. इसके अलावा मौलाना कलीम सिद्दीक़ी, मुहम्मद उमर गौतम और उनके अन्य साथियों की रिहाई की भी मांग की गई थी. इसके अलावा गृहमंत्री ने असम की जबरन निकासी और कश्मीर की मौजूदा स्थिति, संपत्ति की सुरक्षा, कर्नाटक में आरक्षण समाप्त करने, मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पर आपत्ति जताने और इस तरह उन्हें शैक्षिक पिछड़ेपन का शिकार बनाने पर भी ध्यान आकर्षित किया. प्रतिनिधिमंडल ने मौलाना आज़ाद एज्युकेशन स्कॉलरशिप की बहाली पर भी ज़ोर दिया.
 
गृहमंत्री ने हिंसा और नफ़रत की मुहिम पर प्रतिनिधिमंडल की चिंता से सहमति जताई और कहा कि अगर आप प्रशासन द्वारा उठाए गए क़दमों से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप मुझे सूचित करने के लिए स्वतंत्र हैं और मैं इसे ठीक कर दूंगा.
 
मैं संवैधानिक रूप से कार्रवाई करने के लिए बाध्य हूं. उन्होंने कश्मीर मुद्दे को मुस्लिमों का मुद्दा नहीं बनाने पर ज़ोर दिया और कहा कि कश्मीर में रहने वाला हर व्यक्ति चाहे वह मुस्लिम हो, हिंदू हो या सिख हो या बौद्ध हो, उसकी रक्षा और विकास करना हमारी ज़िम्मेदारी है.
 
प्रतिनिधिमंडल में किसी ने भी नहीं सोचा था कि इस बैठक से सारी समस्याएं एक बार में हल हो जाएंगी, कष्टों का निवारण हो जाएगा. लेकिन वैसे भी, यह कम से कम पहली बार है, कि मुसलमानों ने अपने दुखों, अपनी समस्याओं को इस देश के केंद्रीय गृह मंत्री की सेवा में प्रस्तुत किया, उन्होंने उनकी बात सुनी और संविधान और न्याय के पालन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया.
 
हमारा मानना ​​है कि अगर सद्भावना का माहौल बनेगा, अगर समस्याएं दूर होंगी तो बातचीत के अलावा कोई रास्ता नहीं है. यह समय कुछ समझ कर स्थिति को सुधारने का है. यहां एक बात और कह देनी चाहिए कि बात केवल सरकार और कोर्ट से बात करने की नहीं है और उन्हें अपने सुख-दुख में साथी बनाने की बात है. हम यह बार-बार कहते रहे हैं और एक बार फिर कहना चाहते हैं कि हम जिस युग में जी रहे हैं, वह युग विवाद का नहीं है, न बहस का है, संवाद का है. इसलिए:
 
गुफ़्तुगू बंद न हो, बात से बात चले...

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.)