हरजिंदर
पर्यावरण जितनी तेजी से बदल रहा है उसमें किसी एक जगह की घटना में पूरी दुनिया के लिए खतरे के संकेत देखे जा सकते हैं. पिछले कुछ दिनों में हज यात्रा के दौरान गर्मी ने जो तबाही मचाई उससे हम सब को संभल जाना चाहिए.
पिछले कुछ दिनों में अराफात से मीना के बीच हज यात्रियों को जिस तरह गर्मी का सामना करना पड़ा वैसा पहले कभी नहीं हुआ. इतिहास में पहले कईं बार हज यात्राएं महामारियों की वजह से प्रभावित और बाधित हुई हैं लेकिन सिर्फ गर्मी एक हजार के लगभग लोगों की जान ले लेगी, ऐसा कुछ दिन पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था.
इस दौरान वहां जो हुआ वह सिर्फ सऊदी अरब का सच नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया का बदलता हुआ यथार्थ है. दुनिया के तकरीबन हर कोने से इन दिनों बेतहाशा गर्मी पड़ने की खबरे आ रही हैं.
अराफात और मीना के बीच जो अधिकतम तापमान रिकॉर्ड किया गया वह था 51.8 डिग्री सेंटीग्रेड, लेकिन दिल्ली के मंगेशपुर में 28 मई को जो तापमान रिकॉर्ड किया गया वह तो इससे भी एक डिग्री अधिक था.
हमारी दिक्कत यह है कि हम इस तरह की भीषण घटना को भी एक दिन को प्रकोप मानकर चुप हो जाते हैं. ऐसे ही अगले किसी मौके के इंतजार में बैठ जाते हैं. यही सऊदी अरब में हुआ. यही भारत में हुआ और यही पूरी दुनिया में हो रहा है. इतना बड़ा हादसा हो गया . सऊदी सरकार ने तो इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया भी नहीं दी.
ऐसा नहीं है कि यह सब अचानक हो गया हो. आंकड़े बताते हैं कि सउदी अरब में हर साल औसत तापमान 0.4 डिग्री सेंटीग्रेट की दर से बढ़ रहा है. यानी जहां हम पहुंच गए हैं वहां हमें एक न एक दिन तो पहुंचा ही था.
सऊदी अरब पर्यावरण को बचाने के लिए किस हद तक गंभीर है? इसे लेकर दोनों तरह की बाते कहीं जा सकती हैं. दुनिया के तमाम दूसरे देशों की तरह से ही यह मुल्क भी कभी पर्यावरण के लिए पहल करता दिखता है तो कभी इसके लिए उसे जो करना चाहिए उससे पीछे हटता हुआ भी दिखता है.
इस साल दिसंबर की शुरुआत में रियाद में विश्व पर्यावरण सम्मेलन कॉप-16 होना है. यूएन द्वारा आयोजित किया जाने वाला यह अब तक सबसे बड़ा पर्यावरण सम्मेलन होगा. इसमें 197 पक्ष शामिल होंगे.
सऊदी अरब में आयोजित होने वाला यह अब तक का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन तो होगा ही. इसे लेकर सऊदी अरब काफी उत्साहित भी दिख रहा है. वह इस कोशिश में है कि इस सम्मेलन में कुछ ठोस फैसले किए जाएं और सम्मेलन सफल हो.
दूसरी तरफ जब दुनिया के तमाम पर्यावरण विशेषज्ञ यह कहते हैं कि फासिल्स ईंधन का इस्तेमाल तेजी से कम करने के लिए सभी देशों को कोशिश करनी चाहिए तो सऊदी अरब न सिर्फ समस्या को लेकर चुप्पी लगा लेता है, बल्कि इस तरह के तर्कों की आलोचना भी करता है.
जिस समय हज यात्रियों के साथ यह हादसा हुआ उससे कुछ ही दिन पहले जी-7 देशों ने सऊदी अरब और चीन समेत दुनिया के अमीर देशों से यह अपील की थी कि वे दुनिया को पर्यावरण के संकट से बचाने के लिए अपनी जेब ढीली करें.
सऊदी अरब ने इस अपील पर चुप्पी साध ली, वैसे ही जैसे उसने हज यात्रा वाले हादसे पर मौन धारण कर लिया था.मामला सिर्फ सऊदी अरब या हज यात्रा के हादसे का नहीं है, यह पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है. खुद हमारे सर पर भी इसकी तलवार लटक रही है. यह समय हाथ पर हाथ धर कर बैठने का नहीं है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)