भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडी में अश्लीलता का बढ़ता प्रयोग और इसके नैतिक प्रश्न

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 13-02-2025
The growing use of obscenity in Indian stand-up comedy and its moral questions
The growing use of obscenity in Indian stand-up comedy and its moral questions

 

अब्दुल्लाह मंसूर

हाल ही में समय रैना के शो 'इंडिया गॉट लेटेंट' में एक बड़ा विवाद हुआ.दरअसल, इस शो के एक एपिसोड में यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया (जिन्हें बीयर बिसेप्स के नाम से भी जाना जाता है) ने एक प्रतियोगी से बेहद अश्लील सवाल पूछा.उन्होंने पूछा कि क्या वह अपने माता-पिता को हर रोज संबंध बनाते देखना पसंद करेंगे या फिर एक बार उनके साथ शामिल होकर इसे हमेशा के लिए रोक देंगे.इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया.लोगों ने इसे अत्यंत आपत्तिजनक और अश्लील बताया.

कई लोगों ने इस तरह के मजाक को परिवार और बच्चों के लिए अनुचित बताया.इस विवाद के बाद मुंबई पुलिस आयुक्त और महाराष्ट्र महिला आयोग में रणवीर अल्लाहबादिया, शो के होस्ट समय रैना और अन्य प्रतिभागियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने यूट्यूब को पत्र लिखकर इस विवादित एपिसोड को हटाने का निर्देश दिया है.असम के मुख्यमंत्री ने भी इस मामले में FIR दर्ज होने की जानकारी दी है.इस पूरे विवाद के बाद रणवीर अल्लाहबादिया ने माफी मांगी है.यह विवाद कॉमेडी की सीमाओं और सम्मान के बीच संतुलन पर सवाल खड़े करता है.

कई लोग मानते हैं कि वायरल होने की चाहत में कलाकार किसी भी हद तक जा रहे हैं, जो समाज के लिए ठीक नहीं है.भारत में स्टैंड-अप कॉमेडी का इतिहास 1980के दशक से शुरू होता है, लेकिन यह 2000के बाद ही मुख्यधारा में आई.शुरुआत में कॉमेडियन मुख्य रूप से अंग्रेजी में प्रदर्शन करते थे और उन्हें बॉलीवुड और पारंपरिक मनोरंजन के बीच अपनी जगह बनानी पड़ती थी.

जॉनी लीवर जैसे कलाकारों ने 1986में चैरिटी शो में प्रदर्शन करके इस कला को लोकप्रिय बनाया.2005में 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' टीवी शो ने स्टैंड-अप कॉमेडी को व्यापक पहचान दिलाई, जिससे राजू श्रीवास्तव और कपिल शर्मा जैसे कलाकार उभरे.2008-2009के आसपास, पापा सीजे और वीर दास जैसे कॉमेडियन विदेशी अनुभव के साथ भारत लौटे और अंग्रेजी में प्रदर्शन करना शुरू किया.

2011 के बाद से, मुंबई, दिल्ली और बैंगलोर में ओपन माइक इवेंट्स की शुरुआत हुई, जिसने नए कलाकारों को मंच प्रदान किया.यूट्यूब और इंटरनेट के प्रसार ने भी इस कला को बढ़ावा दिया.विपुल गोयल, बिस्वा कल्याण राठ, केनी सेबेस्टियन जैसे कई नए कलाकार ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोकप्रिय हुए.

2015 में ऑल इंडिया बकचोद (AIB) द्वारा आयोजित सेलिब्रिटी रोस्ट ने स्टैंड-अप कॉमेडी को मुख्यधारा में ला दिया. हालांकि इसके बाद विवाद भी हुए.आज, भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडियन दुनिया भर में प्रदर्शन कर रहे हैं और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर अपनी जगह बना रहे हैं.यह कला अब न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी करने का एक शक्तिशाली तरीका भी बन गई है

.स्टैंड-अप कॉमेडी की लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं.सबसे पहले, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम ने कॉमेडियन्स को अपना कंटेंट बड़े पैमाने पर दर्शकों तक पहुंचाने का मौका दिया है.दूसरा, भारतीय कॉमेडियन स्थानीय मुद्दों और आम हास्य को मिलाकर ऐसा मजेदार कंटेंट बनाते हैं जो लोगों से जुड़ता है.

तीसरा, ये शो लोगों को हंसाकर उनके रोजमर्रा के तनाव को कम करने में मदद करते हैं.चौथा, कई कॉमेडियन अपने शो में समाज के गंभीर मुद्दों पर भी बात करते हैं, जिससे इन विषयों पर खुली चर्चा होती है.पांचवां, छोटे कॉमेडी क्लब्स ने नए कलाकारों को मौका दिया है.अंत में, लोग अब टीवी, यूट्यूब या लाइव शो के जरिए कहीं भी कॉमेडी का मजा ले सकते हैं.

लेकिन इसके साथ ही अश्लीलता का इस्तेमाल भी बढ़ा है.कई कॉमेडियन गालियों और डबल मीनिंग वाले जोक्स का सहारा लेते हैं.पहले लोग ऐसी बातों से शर्माते थे, पर अब उन्हें इसमें कोई बुराई नहीं लगती.बार-बार ऐसी चीजें देखने-सुनने से लोगों की आदत बन जाती है.

अब तो छोटे बच्चे भी ऐसी बातें करने लगे हैं.गालियां देना या दूसरों का मजाक उड़ाना मामूली बात हो गई है.फिल्मों में हीरो-हीरोइन के बीच गंदे इशारे दिखाए जाते हैं.टीवी शो में भी डबल मीनिंग वाले डायलॉग होते हैं.

यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर भी ऐसे वीडियो खूब वायरल होते हैं.इससे समाज पर बुरा असर पड़ रहा है.लोगों की जुबान बिगड़ रही है.औरतों की इज्जत कम हो रही है। बच्चों के दिमाग में गलत बातें भर रही हैं.पर अफसोस की बात है कि अब ये सब नॉर्मल मान लिया गया है.

खासकर युवाओं पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है.अध्ययनों से पता चला है कि यौन मजाक के संपर्क में आने वाले बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याएं ज्यादा होती हैं.इससे गंदी भाषा और अश्लील व्यवहार को सामान्य मानने की आदत पड़ सकती है.

बच्चों में हास्य की समझ कम हो सकती है और वे अच्छे-बुरे मजाक में फर्क नहीं कर पाएंगे.इंटरनेट पर ऐसे वीडियो आसानी से मिलने से बच्चे गलत सामग्री देख सकते हैं.इससे बच्चों की जिंदगी से खुशी कम हो सकती है.

नौजवानों में रोस्टिंग का चलन बढ़ गया है.मजाक के नाम पर लोग एक-दूसरे को गाली देते हैं और चुभते हुए बोल बोलते हैं.पहले ये सिर्फ मशहूर कॉमेडियन करते थे, अब हर कोई करने लगा है.इस खेल में अक्सर औरतों और कमजोर लोगों को निशाना बनाया जाता है.

दोस्तों के बीच भी ये बात आम हो गई है.इससे रिश्तों में प्यार कम हो रहा है.जवान लड़के-लड़कियां अपने दिल की बात कहने से डरने लगे हैं.उन्हें लगता है कि कहीं उनका मजाक न उड़ा दिया जाए.ये सब मिलकर समाज को बुरी तरह से बदल रहा है.

लोगों के दिलों में दूसरों के लिए इज्जत कम हो रही है.औरतों को सिर्फ एक चीज की तरह देखा जा रहा है.हमें इस बारे में सोचना होगा.हालांकि, अच्छा मजाक कई तरह से फायदेमंद होता है.यह लोगों को सोचने पर मजबूर करता है और उनकी समझ बढ़ाता है.इससे अलग-अलग उम्र और संस्कृति के लोग एक-दूसरे को समझ पाते हैं.

अच्छा मजाक लोगों को सिखाता भी है और उनका हौसला भी बढ़ाता है.ऐसा मजाक हमेशा याद रहता है, चाहे जमाना कितना भी बदल जाए.इससे लोगों का तनाव कम होता है और दिमागी सेहत अच्छी रहती है.लोगों की आपसी दोस्ती भी मजबूत होती है, खासकर बुजुर्गों के लिए यह बहुत जरूरी है.

भारत जैसे बहुसांस्कृतिक समाज में कॉमेडियनों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी और नुकसान के बीच संतुलन बनाना एक नाजुक काम है.इसके लिए उन्हें कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है.सबसे पहले, उन्हें अपने दर्शकों की विविधता को समझना चाहिए.

भारत में अलग-अलग धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति के लोग हैं, इसलिए किसी एक समूह पर टिप्पणी दूसरे को नाराज कर सकती है.कॉमेडियनों को अपने मजाक में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए.वे ऐसे विषयों पर ध्यान दें जो सबको जोड़ते हों, न कि अलग करते हों.

साथ ही, उन्हें अपने शब्दों के प्रभाव के बारे में सोचना चाहिए.कभी-कभी मजाक में कही गई बात गलत तरीके से समझी जा सकती है.कॉमेडियनों को खुद पर भी हंसना सीखना चाहिए.अपने समुदाय या खुद पर मजाक करने से दूसरों को लगता है कि आप किसी को निशाना नहीं बना रहे.

वे सामाजिक मुद्दों पर बात करें, लेकिन बिना किसी व्यक्ति या समूह को अपमानित किए.सेंसरशिप भी एक बड़ा मुद्दा है.इसका मतलब है कि कॉमेडियन को अपने मजाक पर रोक लगानी पड़ती है.कभी-कभी सरकार या कानून ऐसा करने को कहते हैं, तो कभी कॉमेडियन खुद ही ऐसा करते हैं.

इससे उनकी बोलने की आजादी पर असर पड़ता है.वे अपने मन की बात नहीं कह पाते.लेकिन दूसरी तरफ, सेंसरशिप से लोगों की भावनाएं भी नहीं आहत होतीं.कई बार कॉमेडियन ऐसे मजाक करते हैं जो किसी धर्म या समुदाय को बुरा लग सकता है.सेंसरशिप ऐसा होने से रोकती है.इसलिए सेंसरशिप और बोलने की आजादी के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, ताकि कॉमेडियन अपनी बात कह सकें और लोगों की भावनाएं भी न आहत हों.

भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है.लेकिन यह अधिकार बिल्कुल बेरोक-टोक नहीं है.अनुच्छेद 19(2) के तहत इस पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं.

इन प्रतिबंधों का मकसद देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या नैतिकता की रक्षा करना है.इसके अलावा, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिए उकसाने वाले भाषण पर भी रोक लगाई गई है.

इन सीमाओं का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था अपनी अभिव्यक्ति व्यक्ति की आड़ में दूसरों के अधिकारों या समाज के हित को नुकसान नहीं पहुंचा सकता.उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला या नफरत फैलाने वाला भाषण नहीं दे सकता.इसी तरह, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता.

ये प्रतिबंध इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ किया जाए.हालांकि, कई बार इन प्रतिबंधों की व्याख्या को लेकर विवाद भी होते रहे हैं.कुल मिलाकर, संविधान एक संतुलन बनाने की कोशिश करता है जहां लोगों को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी हो, लेकिन साथ ही समाज के व्यापक हितों की भी रक्षा हो सके.

भारत में स्टैंड-अप कॉमेडी का भविष्य काफी उज्ज्वल दिखाई दे रहा है.कई सुझाव दिए गए हैं जो इस कला को और आगे ले जा सकते हैं.पहला, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल बढ़ेगा जिससे कॉमेडियन दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंच सकेंगे.

दूसरा, क्षेत्रीय भाषाओं में कॉमेडी की मांग बढ़ेगी, जो नए मौके लाएगी.तीसरा, सामाजिक मुद्दों पर बात करने वाली कॉमेडी और लोकप्रिय होगी.चौथा, लाइव शो और वर्चुअल प्रदर्शन दोनों का मिश्रण देखने को मिलेगा.पांचवां, कॉरपोरेट इवेंट्स में कॉमेडी की मांग बढ़ेगी.

अश्लीलता और विवादास्पद सामग्री का बढ़ता इस्तेमाल चिंता का विषय है.कॉमेडियनों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे अपने मजाक के जरिए किसी की भावनाओं को आहत न करें.उन्हें ऐसा हास्य पैदा करना चाहिए जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे, उनकी समझ बढ़ाए और समाज को एकजुट करे.

साथ ही, दर्शकों को भी यह समझना होगा कि हर मजाक को व्यक्तिगत रूप से न लें और अच्छे-बुरे हास्य में फर्क करना सीखें.सरकार और नियामक संस्थाओं को भी इस क्षेत्र पर ध्यान देना होगा.उन्हें ऐसे नियम बनाने होंगे जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करें, लेकिन साथ ही अश्लीलता और हानिकारक सामग्री पर रोक भी लगाएं.

स्कूलों और कॉलेजों में मीडिया साक्षरता पर जोर देना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी सही और गलत कंटेंट में अंतर कर सके.अगर हम इन सभी पहलुओं पर ध्यान दें, तो स्टैंड-अप कॉमेडी भारतीय समाज के लिए एक सकारात्मक ताकत बन सकती है.यह हमें हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर सकती है, हमारी समझ बढ़ा सकती है और समाज को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है.

लेकिन इसके लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा - कॉमेडियन, दर्शक, मीडिया और सरकार सभी को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी.

(लेखक यूट्यूबर हैं और यह उनके अपने विचार हैं)