झूठ, तनाव और सांप्रदायिक हिंसा का ब्रिटिश संस्करण

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 12-08-2024
The British version of lies, tension and communal violence file photo
The British version of lies, tension and communal violence file photo

 

harjinder sahaniहरजिंदर

इस समय जब हर तरफ बांग्लादेश में हुए तख्ता पलट और वहां हो रही सांप्रदायिक हिंसा की चर्चा है, पिछले हफ्ते ब्रिटेन में जो हुआ उसे मीडिया ने ज्यादा महत्व नहीं दिया. बेशक बांग्लादेश में जो हुआ उससे ज्यादा बड़ी चिंता उपजती है, लेकिन इसी दौरान ब्रिटेन में जो हुआ उसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता.

ब्रिटेन का छोटा सा समुद्र तटीय कस्बा है साउथपॉर्ट. गर्मियों की छुट्टियों में लोग वहां बड़ी संख्या में सैर के लिए पहंुचते हैं. पिछले हफ्ते साउथपॉर्ट में बच्चों के डांस स्कूल में अचानक ही एक नकाबपोश पहुंचा.

उसके हाथ में सब्जी काटने वाला एक घरेलू चाकू था. वहां पहुंचते ही उसने डांस सीख रहीं बच्चियों पर चाकू से वार करने शुरू कर दिए. छह साल, सात साल और नौ साल की तीन बच्चियों ने वहीं दम तोड़ दिया. डांस सीख रहीं कईं और बच्चियां घायल हुईं. जिन लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश की उन्हें गहरे घाव लगे.

यह एक जघन्य कांड था. एक छोटे से कस्बे में इसे लेकर तनाव फैल जाना भी स्वाभाविक ही था. लेकिन देखते ही देखते इस तनाव ने एक अलग तरह के उन्माद का रूप ले लिया.इसके पहले कि पुलिस किसी आरोपी तक पहंुच पाती एक फेक न्यूज़ लोगों के मोबाइल फोन पर पहंुच गई.

जिसे बड़ी संख्या में फारवर्ड भी किया गया. इनमें बताया गया कि वह नकाबपोश ब्रिटेन में शरण लेने वाला एक मुस्लिम था. इन झूठी खबरों में उसका नाम बता दिया गया. यह भी कहा गया कि ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई5 को उस पहले से ही शक था. बाद में पाया गया कि यह नाम पूरी तरह झूठा था.

दो दिन बाद पुलिस ने पास के एक गांव से हमले के आरोप में 17 साल के एक लड़के को पकड़ा. वह नाबालिग था, इसलिए पुलिस ने उसकी कोई भी पहचान उजागर नहीं की. इससे अफवाहों को और ज्यादा बल मिला. बाद में हालांकि पुलिस को उसका नाम बताना पड़ा ताकि मुस्लिम वाली अफवाह शांत हो सके लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

घटना के अगले ही दिन हजारों लोगों की भीड़ साउथपोर्ट की मस्जिद के बाहर जमा हो गई. पथराव होने लगा. मस्जिद में बुरी तरह तोड़-फोड़ हुई. भीड़ को रोकने के लिए जब वहां पुलिस पहंुची तो पुलिस पर भी पथराव हुआ.

50 से ज्यादा पुलिस वाले घायल हो गए. पुलिस की गाड़ी को भी भीड़ ने जला दिया. यह हिंसा मुस्लिम समुदाय के कब्रिस्तान तक पहुंच गई.बात यहीं रूक जाती तो इसे उन्माद की एक स्थानीय घटना मान लिया जाता जिस पर सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा कर काबू पर लिया गया.

लेकिन फेक न्यूज़ पूरे ब्रिटेन में फैल गई और जगह-जगह से तनाव की खबरें आने लगीं. कईं जगह दंगे भी हो गए. आधिकारिक आंकड़ें बताते हैं कि इस घटना के बाद पूरे ब्रिटेन में 56 जगहों पर या तो दंगे हुए या फिर दंगों जैसी हालात बन गए.

हर जगह ‘पाकीज़ आउट‘ यानी पाकिस्तानियों बाहर जाओ जैसे नारे भी सुनाई पड़े. लेकिन निशाना सभी मुस्लिम थे. चाहे वे पाकिस्तान के हों या कहीं और के. लिवरपूल में तो हालात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गए.

अब ब्रिटेन में इन दंगों को अति-दक्षिणपंथी लोगों की कारस्तानी माना जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि कुछ ही समय पहले हुए चुनाव में इन ताकतों को करारी हार मिली थी. इसी हताशा में वे उन्माद को हवा दे रहे हैं.

ये बात शायद बेबुनियाद भी नहीं, लेकिन चिंता की बात यह है कि ऐसी ताकतें आम लोगों को भड़का कर उन्हें हिंसा के लिए तैयार करने में कामयाब हो रही हैं. चिंता की बात यह भी कि ऐसी अति-दक्षिणपंथी ताकतों का दबदबा इस समय अलग-अलग तरह से पूरी दुनिया में ही बढ़ रहा है.

हफ्ते का अंत आने से पहले ही कुछ अच्छे दृश्य भी दिखाई दिए. लिवरपूल समेत कई शहरों में लोगों ने सांप्रदायिक एकता और डायवर्सिटी के समर्थन में जुलूस निकाले. इन जुलूसों में भारी संख्या में लोग जुटे. दंगों के लिए जितने लोग बाहर निकले थे उससे कहीं ज्यादा.

ये जुलूस ब्रिटिश अल्पसंख्यकों के लिए एक आश्वासन की तरह थे. ऐसे आश्वासन अगर तनाव, उन्माद और दंगों के पहले भी मिलते रहते तो शायद यह नौबत ही न आती. 

  (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


ALSO READ मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर राजनीति और सच