हनिया हसन
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो मनुष्य के संपूर्ण जीवन को मार्गदर्शन प्रदान करता है – चाहे वह आध्यात्मिक हो, सामाजिक हो या नैतिक। इस मार्गदर्शन के केंद्र में ईश्वर (अल्लाह) की आज्ञाओं का पालन करना और उनके द्वारा बताए गए कर्मों से बचना है.
इस्लाम में जहाँ अच्छे कर्मों को प्रोत्साहन दिया गया है, वहीं कुछ पाप ऐसे माने गए हैं जो अत्यंत घातक और गंभीर हैं. इन्हें अकबैरुज़-ज़ुनूब (بعض الكبائر) अर्थात् "सबसे बड़े पाप" कहा जाता है.
इनमें से सात पाप ऐसे हैं जिन्हें कुरान और हदीस में स्पष्ट रूप से “विनाशकारी” और “अक्षम्य” बताया गया है यदि इनके लिए तौबा न की जाए. ये पाप न केवल व्यक्ति की आत्मा को कलुषित करते हैं, बल्कि समाज और मानवता के ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाते हैं.
शिर्क को इस्लाम में सबसे बड़ा और अक्षम्य पाप माना गया है. इसका अर्थ है अल्लाह के साथ किसी और को पूज्य, ईश्वरत्व के योग्य या उसकी शक्ति में साझेदार ठहराना. यह सीधे तौर पर इस्लाम के मूल सिद्धांत "तौहीद" (एकेश्वरवाद) का उल्लंघन है.
📖 कुरान कहता है:
“निश्चय ही अल्लाह उसे क्षमा नहीं करता कि उसके साथ किसी को साझी ठहराया जाए, और वह इससे नीचे के (पापों) को जिसे चाहे क्षमा कर देता है.”
(सूरह अन-निसा 4:48)
शिर्क करने वाला व्यक्ति जब तक तौबा न कर ले, उसकी कोई भी इबादत या नेक अमल स्वीकार नहीं किया जाता.
इस्लाम में सिहर या जादू को भी अत्यंत गंभीर पाप माना गया है. जादू लोगों को धोखे में डालता है, उनकी सोच को नियंत्रित करता है और कभी-कभी यह दूसरों को शारीरिक या मानसिक हानि भी पहुँचा सकता है। कुरान इसे शैतानी कार्यों में से एक कहता है.
📖 कुरान कहता है:
“...और वे लोगों को जादू सिखाते थे... और वे उसे सीखते थे जिससे पति और पत्नी के बीच जुदाई हो जाए...”
(सूरह अल-बक़रह 2:102)
जादू और उससे संबंधित कर्म सीधे तौर पर ईश्वर में विश्वास को कमजोर करते हैं और अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं.
3. किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या करना
इस्लाम में जीवन को पवित्र माना गया है। किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या करना ऐसा पाप है जिसकी तुलना पूरी मानवता की हत्या से की गई है। यह समाज में भय, अराजकता और अपराध फैलाने का कारण बनता है।
📖 कुरान में कहा गया है:
“जिसने किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या की... तो उसने मानो समस्त मानवता की हत्या कर दी.”
(सूरह अल-मायदा 5:32)
इस पाप के लिए कड़ी सजा बताई गई है, और अगर इसका पश्चाताप न किया जाए तो यह नरक का कारण बन सकता है.
रिबा, अर्थात ब्याज, को कुरान में एक विनाशकारी पाप कहा गया है. यह आर्थिक असमानता को बढ़ावा देता है, समाज में गरीबों का शोषण करता है और धनिकों को और अमीर बनाता है.
📖 कुरान में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“...जो ब्याज खाते हैं, वे (क़ब्र से) नहीं उठेंगे, परंतु जैसे वह उठता है जिसे शैतान ने छू कर पागल बना दिया हो...”
(सूरह अल-बक़रह 2:275)
इस्लाम ब्याज की जगह व्यापार, साझेदारी और दया पर आधारित आर्थिक मॉडल को बढ़ावा देता है.
अनाथों की देखभाल करना इस्लाम में एक नेक कार्य माना गया है, और इसके विपरीत, उनका धन हड़पना अत्यंत गंभीर अपराध है. अल्लाह ने अनाथों के अधिकारों की रक्षा को अत्यंत महत्त्व दिया है.
📖 कुरान में कहा गया है:
“निश्चित ही जो लोग अनाथों का धन अन्यायपूर्वक खाते हैं, वे अपने पेट में आग भरते हैं...”
(सूरह अन-निसा 4:10)
इससे पता चलता है कि अनाथों के साथ अन्याय करने का परिणाम दंडात्मक और विनाशकारी होता है.
जब एक मुसलमान अल्लाह की राह में जिहाद के लिए जाता है और फिर डर या लालच के कारण युद्ध के मैदान से भाग जाता है, तो यह भी बड़ा पाप माना गया है. यह न केवल कायरता है, बल्कि दूसरों की जान को खतरे में डालना भी है.
📖 कुरान में कहा गया है:
“...जो युद्ध के दिन पीठ फेरता है, वास्तव में उसने अल्लाह का क्रोध ओढ़ लिया...”
(सूरह अल-अनफाल 8:15-16)
इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि समुदाय और विश्वास की रक्षा के लिए संघर्ष से भागना अत्यंत निंदनीय कृत्य है.
इस्लाम में इज़्ज़त और प्रतिष्ठा की बहुत महत्ता है। किसी महिला पर व्यभिचार का झूठा आरोप लगाना उसकी इज़्ज़त को नष्ट करता है और सामाजिक प्रतिष्ठा को गिराता है। यह न केवल एक अपराध है, बल्कि इसका दंड दोज़ख की आग बताया गया है.
📖 कुरान कहता है:
“जो लोग पवित्र महिलाओं पर दोष लगाते हैं और चार गवाह नहीं लाते, उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी गवाही कभी स्वीकार न करो...”
(सूरह अन-नूर 24:4)
इससे स्पष्ट होता है कि इस्लाम में झूठे आरोपों के लिए कोई सहनशीलता नहीं है.
इस्लाम केवल इन पापों की निंदा नहीं करता, बल्कि उनसे बचने के उपाय भी बताता है:
तौहीद (एकेश्वरवाद) में अडिग रहना
ईमानदारी और सच्चाई को अपनाना
प्रलोभनों और लालच से दूर रहना
न्याय और करुणा से समाज में जीना
नियमित तौबा (पश्चाताप) करना और अल्लाह से क्षमा मांगना
📌 ध्यान दें: इन पापों में से कुछ, जैसे शिर्क, बिना तौबा किए क्षमा नहीं होते। लेकिन इस्लाम की सुंदरता यही है कि अगर कोई सच्चे दिल से पश्चाताप करता है और सुधार की राह अपनाता है, तो अल्लाह अत्यंत क्षमाशील और दयालु है.